रांची: झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर ने दिनांक 08 फरवरी 2013 को होटल अशोका में ‘‘झारखंड में पंचायत राज’’ दो साल के अनुभव विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों, पंचायत राज विशेषज्ञों एवं विभागीय अधिकारियों ने दो साल के अनुभवों को साझा किया।
राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के निदेशक श्री आर. पी. सिंह ने सर्ड परिसर में स्थापित झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर को राज्य में पंचायत सशक्तिकरण एवं खासकर महिला प्रतिनिधियों के क्षमतावर्द्धन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
इस दौरान राज्य के पूर्व मुख्य सचिव डा. ए.के. सिंह ने पंचायत राज पर दो साल के समाचारों के संकलन पर आधारित प्रकाशन का विमोचन किया।
कार्यशाला में यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जाब जकारिया ने पंचायत प्रतिनिधियों से स्पष्ट कहा कि आप कोई एनजीओ या प्राइवेट संगठन नहीं बल्कि खुद सरकार हैं। इस तरह आप प्रोटोकोल में संबंधित पदाधिकारियों एवं प्रशासन से ऊपर हैं। जिस तरह एक सरकार केंद्र में और दूसरी सरकार राज्य में होती है, ठीक उसी तरह तीसरी सरकार गांवों में है और पंचायत प्रतिनिधि उस सरकार को चलाने वाले हैं। अगर आपने इस बात को समझ लिया तो इतने से ही आपका सशक्तिकरण हो जायेगा। आपके पास आज जितने भी अधिकार और दायित्व हैं, उन्हें समझने की कोशिश करें तो आप काफी सफल हो सकते हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों को सुधारने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। आप चाहें तो स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों पर पूरा नियंत्रण कर सकते हैं और अपने गांव की सूरत बदल सकते हैं। इसलिए आपको खुद सरकार की तरह व्यवहार करना चाहिए। इसके साथ ही आप ग्राम सभा में अपने गांव का विजन जरूर बनाएं। शिक्षा, मनरेगा, एनआरएलएम इत्यादि में आपका क्या सपना है, इसे तैयार करें। इसी तरह, आप अपने गांव की उपलब्धियों को भी सामने लाएं। आज बहुत से गांव कुपोषण मुक्त हैं। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है। इन चीजों को आप प्रोजेक्ट करें। केरल में एक पंचायत का वार्षिक बजट पांच से दस करोड़ तक होता है। जबकि वहां एक पंचायत की जनसंख्या मात्र लगभग एक हजार होती है।
श्री जकारिया ने अपने विचारों का निष्कर्ष बताते हुए पुनः तीन बिदंुओं पर जोर डाला -
1. सरकार की तरह आचरण करें - (बिहेव लाइक गवर्नमेंट)
2. अपने सपनों की सूची बनाएं - (विजन)
3. अपनी उपलब्धियां सामने लाएं - (सक्सेस स्टोरीज)
कार्यशाला का संचालन करते हुए डाॅ0 विष्णु राजगढि़या, राज्य समन्वयक, ‘‘झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर ने पंचायत प्रतिनिधियों को सुझाव दिया कि दो साल की अवधि में जो समस्याएं आयीं, उन पर चर्चा करने के बजाय आपने उनका किस प्रकार हल निकाला तथा आपकी उपलब्धियां क्या रहीं और आपके सामने क्या संभावनाएं हैं, इस पर चर्चा करना ज्यादा सार्थक होंगा।
कार्यशाला में श्री गणेश प्रसाद, पूर्व निदेशक पंचायती राज ने कहा कि समीक्षा एवं आलोेेेेचना के द्वारा ही नई व्यवस्था का सृजन होता है। सेवा की पहचान नियम और शक्ति है। समाज में यदि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार पर फोकस कर विकास की दिशा में कार्य किया जाए और जनता को जागरूक किया जाए तो हक और अधिकार प्रतिबिम्बित होती है और यह अधिकार पंचायती राज के पास है। प्रशिक्षण यदि रोचक तरीके से दिया जाए तो अधिक जानकरी ली और दी जा सकती है। उन्होंने महाराष्ट्र में प्रशिक्षण की प्रक्रिया एवं गिरिडीह के तिसरी प्रखंड में मनरेगा के उत्तम कार्यों की जानकारी दी।
श्री वेद प्रकाश सिंह, पूर्व निदेशक, पंचायती राज ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि झारखंड में पंचायती राज चुनाव विलम्ब से होने के कारण शक्तियों के हस्तान्तरण में भी कठिनाई हो रही है। पंचायती नियमावली में भी पारदर्शिता की आवश्यकता है। उच्च स्तरीय कमिटी एवं कम्पोसिट रूल फ्रेमिंग के द्वारा ही एक्ट को सशक्त किया जा सकता है। इलेक्ट्रोनिक फंड ट्रांसफर की व्यवस्था एवं सूचना तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए। पंचायती राज शीघ्र ही सुखद होगा। संघर्ष के बदले समन्वय के साथ काम करने से विकास स्वतः नजर आएगा।
श्री डी0 के0 श्रीवास्तव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने पंचायत राज व्यवस्था को राज्य के लिए एक सकारात्मक संकेत बताते हुए कहा कि कर्तव्य और अधिकार के सही सामंजस्य से विकास होगा। अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि दोनों मिलकर कार्य करें, तभी गांव, शहर एवं देश में विकास होगा। जागरूकता एवं जानकारी की कमी से एवं मार्गदर्शन न कि थोपी हुई व्यवस्था के द्वारा भी संशय की स्थिति आ जाती है, इससे बचना होगा, तभी प्रगति का मार्ग सशक्त होगा। वनोत्पाद को रोजगार से जोड़कर आर्थिक सषक्तीकर ही सकता है। शिक्षा, प्रशिक्षण एवं सशक्तीकरण से कौशल विकास से आत्मविश्वास का सृजन हो सकता है।
सर्ड के निदेशक श्री आर.पी.सिंह ने कार्यक्रम के आयोजन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए सरकार की वत्र्तमान योजनाओं की जानकारी दी और कहा कि जहाँ चाह वहाँ राह होती है। उच्च मनोबल के द्वारा कार्य करने से स्थानीय स्तर पर ही मामलों का निष्पादन हो जाएगा।
विकास भारती के सचिव श्री अशोक भगत ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पंचायती राज के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से वत्र्तमान व्यवस्था की बात करते हुए व्यक्तिगत स्वार्थ से उपर उठकर, राज्यहित में जबावदेही के साथ कार्य करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने झारखंड के ग्रामीण विकास में पंचायती राज के महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा करते हुए बिशुनपुर तथा अन्य क्षेत्र में विकास भारती की गतिविधियों के कारण आने वाले बदलावों की जानकारी दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव, डाॅ ए. के. सिंह ने राज्य में पंचायत चुनाव कराने संबंधी अपने अनुभव साझा करते हुए इसे राज्य के ग्रामीण विकास की बुनियाद की संज्ञा दी। उन्होंने वित्तीय स्वतंत्रता पर बल देते हुए आत्मविश्वास एवं अधिकारों के सही कार्यान्वयन हेतु त्रिस्तरीय कमिटी में प्राण फूंकने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारत में ग्रासरूट डेमोक्रेटी के द्वारा नेतृत्व नजर आने लगी है, लेकिन अब पंचायतों के माध्यम से विकास नजर आएगा।
अमनारी (हजारीबाग) के मुखिया श्री अनूप कुमार ने दो साल के अनुभवों की चर्चा करते हुए कहा कि अधिकारियों द्वारा जनप्रतिनिधियों को नजर अंदाज किया जाता है तथा बिचैलियों के कारण अधिकार और काम करने में परेशानी होती है, अलग-अलग पंचायत एवं प्रखंड के अलग नियम होता है और समन्वय की भावना का अभाव है।
विकास भारती के प्रतिनिधि श्री निखिलेश मैत्री ने पंचायतों से जुड़े अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पंचायतों की सामाजिक जिम्मेवारी है। उन्हें विकासात्मक कार्य करने का दायित्व है न कि राजनीतिक जिम्मेवारी। उन्होंने ग्रामसभा के कार्य में सुधार की आवश्यकता बताते हुए कहा कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में समन्वय की कमी, पंचायत का अपना फंड सृजन करने संबंधी अनुभव के अभाव के कारण विकास की गति धीमी है। उन्होंने आवासीय प्रशिक्षण लगातार कराने पर भी जोर दिया।
धनबाद जिले के तोपचांची प्रखंड की प्रमुख सरिता देवी ने बताया कि पंचातयी राज के बाद अब गांव की समस्याओं की निबटारा गांव में ही हो जाता है। पंचायतों को अब तक अधिकार नहीं मिला है तथा जो मिला है, वह सही ढंग से लागू नहीं हुआ। उन्होंने वार्ड मेम्बर को भी सशक्त करने का सुझाव दिया क्योंकि गांव के सभी सदस्यों से वही सीधे जुड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि पंचायती राज के दो वर्षो के अनुभव से आज गांव में परिवत्र्तन नजर आ रहा है। शिक्षा व्यवस्था के सुधार पर विषेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि शिक्षा मिड डे मील से आरंभ होकर मिड डे मील पर ही समाप्त हो जाती है। शिक्षक को इस प्रक्रिया से अलग रखा जाए।
धनबाद जिले के बाघमारा की मुखिया रिंकु डे ने बताया कि निरीक्षण के दौरान शिक्षकों को अनुपस्थित देखने के बाद उन्होंने किस तरह इस व्यवस्था को दुरूस्त किया। उन्होंने बताया कि महिलाओं को सशक्त करने हेतु समूह द्वारा बचत पर जानकारी देकर पैसा जमा कर एक दूसरे को आर्थिक सहयोग दिया जाता है। इससे सूदखोरी कम हुई है।
जनशिक्षण संस्थान के प्रतिनिधि श्री शिवशंकर उरांव ने कहा कि पंचायत राज अधिनियम एवं नियमावली में पंचायतों के अधिकारों की विस्तृत जानकारी है। इस पर अमल की जरूरत है। जानकारी के अभाव मे विकास में परेशानी हो रही है। इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों के साथ ही अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भी प्रशिक्षण देना होगा।
श्री राजीव कुमार, पेरू सदर, हजारीबाग ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पंचायती राज व्यवस्था के कारण घरेलू झगड़ो के निबटारे की अधिकांश केस का निबटारा अब गांव में हो जाता है थानों तक कम ही मामले जा रहे हैं। बिचैलियों एवं दलाली पर नियंत्रण हुआ है। जन उपयोगी योजना नहीं होने से लागू करने में कठिनाई होती है। नरेगा का स्पष्ट निर्देश प्राप्त नहीं हो पाता है। टैक्स की वसूली होने लगी है। यदि 73 वे संशोधन के आधार पर ही कार्य हो तो विकास दिखने लगेगा।
अनिता गोराई, मुखिया, धनबाद में बताया कि पंचायत प्रतिनिधियों पर रंगदारी के आरोप लगाकर झूठे मुकदमे दर्ज करने की शिकायत आ रही है।
रामगढ़ के दोहाकातू पंचायत की मुखिया कलावती देवी ने बताया कि उनके पंचायत को देश में आधार कार्ड पर आधारित भुगतान के लिए चुना गया है। पंचायत में माईक्रो ए.टी.एम. के माध्यम से भुगतान दिया जाता है। इस बात पर विषेष स्थान दिया जाता है कि भुगतान वही व्यक्ति ले जिसको नामांकित किया गया है।
धनबाद के जिला पंचायती राज पदाधिकारी श्री एन. के. लाल ने पंचायतों की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए बताया कि अब फंड ग्राम पंचायत के माध्यम से बैंक डाकघर एवं आधार बेस्ट भुगतान के माध्यम से निर्गत किए जा रहे हैं। योजनाओं की जानकारी वेव-साइट पर उपलब्ध है। ईगर्वनेंस एवं ई-ट्रांजक्शन की विधि अपनाई जा रही है। पंचायत सचिवालय एवं प्रज्ञा केन्द्र के माध्यम से ग्रामीणों को जानकारी देने की व्यवस्था की जा रही है। जागरूकता एवं प्रचार-प्रसार से विकास को गति दी जा सकती है।
खूंटी की जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती माईलिना टोपनो ने अपने हैदराबाद एवं हिमाचल प्रदेश भ्रमण के दौरान हुए अनुभव साझा करते हुए बताया कि त्रिस्तरीय कमिटी के अंतर्गत समन्वय की कमी ही विकास में बाधक है।
दूसरे सत्र में चर्चा के दौरान यूनिसेफ के कार्यक्रम अधिकारी दीपक डे, यूनिसेफ की न्युट्रीशन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव, पंचायत नामा के संपादक संजय मिश्रा, दैनिक भास्कर के वरीय पत्रकार श्री दिव्यांशु, मंथन युवा संस्थान के समन्वयक सुधीर पाल, पंचायती राज के सहायक निदेशक आर. के. मंडल, श्री के. एल. चैधरी, बालुमाथ के मुखिया अरविंद भगत, महिगांव की ज्योति बहे, हजारीबाग कटकमदाग की मुखिया प्रियंका कुमारी ने सभी प्रतिभागियों के साथ अपने अनुभव बांटे।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 विष्णु राजगढि़या, सर्ड के सहायक निदेशक श्री दीपांकर श्रीज्ञान एवं केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थान के व्याख्याता अजित कुमार सिंह ने किया। कार्यशाला में भारत निर्माण सेवक कार्यक्रम के राज्य समन्वयक डाॅ. एम. पी. सिंह, टीस के प्रो0 ई. टोप्पो, भी उपस्थित थे।
कार्यषाला में मुख्य रूप से एकजुट होकर सकारात्मक सोच के साथ समन्वय स्थापित कर सामूहिक प्रयास से विकास के विचार उभर कर सामने आए। सभी बदलाव चाहते हैं। इस दिशा में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेन्टर को प्रतिभागियों ने एक सशक्त एवं सकारात्मक पहल माना।
राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के निदेशक श्री आर. पी. सिंह ने सर्ड परिसर में स्थापित झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर को राज्य में पंचायत सशक्तिकरण एवं खासकर महिला प्रतिनिधियों के क्षमतावर्द्धन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
इस दौरान राज्य के पूर्व मुख्य सचिव डा. ए.के. सिंह ने पंचायत राज पर दो साल के समाचारों के संकलन पर आधारित प्रकाशन का विमोचन किया।
कार्यशाला में यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जाब जकारिया ने पंचायत प्रतिनिधियों से स्पष्ट कहा कि आप कोई एनजीओ या प्राइवेट संगठन नहीं बल्कि खुद सरकार हैं। इस तरह आप प्रोटोकोल में संबंधित पदाधिकारियों एवं प्रशासन से ऊपर हैं। जिस तरह एक सरकार केंद्र में और दूसरी सरकार राज्य में होती है, ठीक उसी तरह तीसरी सरकार गांवों में है और पंचायत प्रतिनिधि उस सरकार को चलाने वाले हैं। अगर आपने इस बात को समझ लिया तो इतने से ही आपका सशक्तिकरण हो जायेगा। आपके पास आज जितने भी अधिकार और दायित्व हैं, उन्हें समझने की कोशिश करें तो आप काफी सफल हो सकते हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों को सुधारने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। आप चाहें तो स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों पर पूरा नियंत्रण कर सकते हैं और अपने गांव की सूरत बदल सकते हैं। इसलिए आपको खुद सरकार की तरह व्यवहार करना चाहिए। इसके साथ ही आप ग्राम सभा में अपने गांव का विजन जरूर बनाएं। शिक्षा, मनरेगा, एनआरएलएम इत्यादि में आपका क्या सपना है, इसे तैयार करें। इसी तरह, आप अपने गांव की उपलब्धियों को भी सामने लाएं। आज बहुत से गांव कुपोषण मुक्त हैं। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है। इन चीजों को आप प्रोजेक्ट करें। केरल में एक पंचायत का वार्षिक बजट पांच से दस करोड़ तक होता है। जबकि वहां एक पंचायत की जनसंख्या मात्र लगभग एक हजार होती है।
श्री जकारिया ने अपने विचारों का निष्कर्ष बताते हुए पुनः तीन बिदंुओं पर जोर डाला -
1. सरकार की तरह आचरण करें - (बिहेव लाइक गवर्नमेंट)
2. अपने सपनों की सूची बनाएं - (विजन)
3. अपनी उपलब्धियां सामने लाएं - (सक्सेस स्टोरीज)
कार्यशाला का संचालन करते हुए डाॅ0 विष्णु राजगढि़या, राज्य समन्वयक, ‘‘झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर ने पंचायत प्रतिनिधियों को सुझाव दिया कि दो साल की अवधि में जो समस्याएं आयीं, उन पर चर्चा करने के बजाय आपने उनका किस प्रकार हल निकाला तथा आपकी उपलब्धियां क्या रहीं और आपके सामने क्या संभावनाएं हैं, इस पर चर्चा करना ज्यादा सार्थक होंगा।
कार्यशाला में श्री गणेश प्रसाद, पूर्व निदेशक पंचायती राज ने कहा कि समीक्षा एवं आलोेेेेचना के द्वारा ही नई व्यवस्था का सृजन होता है। सेवा की पहचान नियम और शक्ति है। समाज में यदि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार पर फोकस कर विकास की दिशा में कार्य किया जाए और जनता को जागरूक किया जाए तो हक और अधिकार प्रतिबिम्बित होती है और यह अधिकार पंचायती राज के पास है। प्रशिक्षण यदि रोचक तरीके से दिया जाए तो अधिक जानकरी ली और दी जा सकती है। उन्होंने महाराष्ट्र में प्रशिक्षण की प्रक्रिया एवं गिरिडीह के तिसरी प्रखंड में मनरेगा के उत्तम कार्यों की जानकारी दी।
श्री वेद प्रकाश सिंह, पूर्व निदेशक, पंचायती राज ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि झारखंड में पंचायती राज चुनाव विलम्ब से होने के कारण शक्तियों के हस्तान्तरण में भी कठिनाई हो रही है। पंचायती नियमावली में भी पारदर्शिता की आवश्यकता है। उच्च स्तरीय कमिटी एवं कम्पोसिट रूल फ्रेमिंग के द्वारा ही एक्ट को सशक्त किया जा सकता है। इलेक्ट्रोनिक फंड ट्रांसफर की व्यवस्था एवं सूचना तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए। पंचायती राज शीघ्र ही सुखद होगा। संघर्ष के बदले समन्वय के साथ काम करने से विकास स्वतः नजर आएगा।
श्री डी0 के0 श्रीवास्तव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने पंचायत राज व्यवस्था को राज्य के लिए एक सकारात्मक संकेत बताते हुए कहा कि कर्तव्य और अधिकार के सही सामंजस्य से विकास होगा। अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि दोनों मिलकर कार्य करें, तभी गांव, शहर एवं देश में विकास होगा। जागरूकता एवं जानकारी की कमी से एवं मार्गदर्शन न कि थोपी हुई व्यवस्था के द्वारा भी संशय की स्थिति आ जाती है, इससे बचना होगा, तभी प्रगति का मार्ग सशक्त होगा। वनोत्पाद को रोजगार से जोड़कर आर्थिक सषक्तीकर ही सकता है। शिक्षा, प्रशिक्षण एवं सशक्तीकरण से कौशल विकास से आत्मविश्वास का सृजन हो सकता है।
सर्ड के निदेशक श्री आर.पी.सिंह ने कार्यक्रम के आयोजन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए सरकार की वत्र्तमान योजनाओं की जानकारी दी और कहा कि जहाँ चाह वहाँ राह होती है। उच्च मनोबल के द्वारा कार्य करने से स्थानीय स्तर पर ही मामलों का निष्पादन हो जाएगा।
विकास भारती के सचिव श्री अशोक भगत ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पंचायती राज के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से वत्र्तमान व्यवस्था की बात करते हुए व्यक्तिगत स्वार्थ से उपर उठकर, राज्यहित में जबावदेही के साथ कार्य करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने झारखंड के ग्रामीण विकास में पंचायती राज के महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा करते हुए बिशुनपुर तथा अन्य क्षेत्र में विकास भारती की गतिविधियों के कारण आने वाले बदलावों की जानकारी दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव, डाॅ ए. के. सिंह ने राज्य में पंचायत चुनाव कराने संबंधी अपने अनुभव साझा करते हुए इसे राज्य के ग्रामीण विकास की बुनियाद की संज्ञा दी। उन्होंने वित्तीय स्वतंत्रता पर बल देते हुए आत्मविश्वास एवं अधिकारों के सही कार्यान्वयन हेतु त्रिस्तरीय कमिटी में प्राण फूंकने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारत में ग्रासरूट डेमोक्रेटी के द्वारा नेतृत्व नजर आने लगी है, लेकिन अब पंचायतों के माध्यम से विकास नजर आएगा।
अमनारी (हजारीबाग) के मुखिया श्री अनूप कुमार ने दो साल के अनुभवों की चर्चा करते हुए कहा कि अधिकारियों द्वारा जनप्रतिनिधियों को नजर अंदाज किया जाता है तथा बिचैलियों के कारण अधिकार और काम करने में परेशानी होती है, अलग-अलग पंचायत एवं प्रखंड के अलग नियम होता है और समन्वय की भावना का अभाव है।
विकास भारती के प्रतिनिधि श्री निखिलेश मैत्री ने पंचायतों से जुड़े अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पंचायतों की सामाजिक जिम्मेवारी है। उन्हें विकासात्मक कार्य करने का दायित्व है न कि राजनीतिक जिम्मेवारी। उन्होंने ग्रामसभा के कार्य में सुधार की आवश्यकता बताते हुए कहा कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में समन्वय की कमी, पंचायत का अपना फंड सृजन करने संबंधी अनुभव के अभाव के कारण विकास की गति धीमी है। उन्होंने आवासीय प्रशिक्षण लगातार कराने पर भी जोर दिया।
धनबाद जिले के तोपचांची प्रखंड की प्रमुख सरिता देवी ने बताया कि पंचातयी राज के बाद अब गांव की समस्याओं की निबटारा गांव में ही हो जाता है। पंचायतों को अब तक अधिकार नहीं मिला है तथा जो मिला है, वह सही ढंग से लागू नहीं हुआ। उन्होंने वार्ड मेम्बर को भी सशक्त करने का सुझाव दिया क्योंकि गांव के सभी सदस्यों से वही सीधे जुड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि पंचायती राज के दो वर्षो के अनुभव से आज गांव में परिवत्र्तन नजर आ रहा है। शिक्षा व्यवस्था के सुधार पर विषेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि शिक्षा मिड डे मील से आरंभ होकर मिड डे मील पर ही समाप्त हो जाती है। शिक्षक को इस प्रक्रिया से अलग रखा जाए।
धनबाद जिले के बाघमारा की मुखिया रिंकु डे ने बताया कि निरीक्षण के दौरान शिक्षकों को अनुपस्थित देखने के बाद उन्होंने किस तरह इस व्यवस्था को दुरूस्त किया। उन्होंने बताया कि महिलाओं को सशक्त करने हेतु समूह द्वारा बचत पर जानकारी देकर पैसा जमा कर एक दूसरे को आर्थिक सहयोग दिया जाता है। इससे सूदखोरी कम हुई है।
जनशिक्षण संस्थान के प्रतिनिधि श्री शिवशंकर उरांव ने कहा कि पंचायत राज अधिनियम एवं नियमावली में पंचायतों के अधिकारों की विस्तृत जानकारी है। इस पर अमल की जरूरत है। जानकारी के अभाव मे विकास में परेशानी हो रही है। इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों के साथ ही अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भी प्रशिक्षण देना होगा।
श्री राजीव कुमार, पेरू सदर, हजारीबाग ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पंचायती राज व्यवस्था के कारण घरेलू झगड़ो के निबटारे की अधिकांश केस का निबटारा अब गांव में हो जाता है थानों तक कम ही मामले जा रहे हैं। बिचैलियों एवं दलाली पर नियंत्रण हुआ है। जन उपयोगी योजना नहीं होने से लागू करने में कठिनाई होती है। नरेगा का स्पष्ट निर्देश प्राप्त नहीं हो पाता है। टैक्स की वसूली होने लगी है। यदि 73 वे संशोधन के आधार पर ही कार्य हो तो विकास दिखने लगेगा।
अनिता गोराई, मुखिया, धनबाद में बताया कि पंचायत प्रतिनिधियों पर रंगदारी के आरोप लगाकर झूठे मुकदमे दर्ज करने की शिकायत आ रही है।
रामगढ़ के दोहाकातू पंचायत की मुखिया कलावती देवी ने बताया कि उनके पंचायत को देश में आधार कार्ड पर आधारित भुगतान के लिए चुना गया है। पंचायत में माईक्रो ए.टी.एम. के माध्यम से भुगतान दिया जाता है। इस बात पर विषेष स्थान दिया जाता है कि भुगतान वही व्यक्ति ले जिसको नामांकित किया गया है।
धनबाद के जिला पंचायती राज पदाधिकारी श्री एन. के. लाल ने पंचायतों की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए बताया कि अब फंड ग्राम पंचायत के माध्यम से बैंक डाकघर एवं आधार बेस्ट भुगतान के माध्यम से निर्गत किए जा रहे हैं। योजनाओं की जानकारी वेव-साइट पर उपलब्ध है। ईगर्वनेंस एवं ई-ट्रांजक्शन की विधि अपनाई जा रही है। पंचायत सचिवालय एवं प्रज्ञा केन्द्र के माध्यम से ग्रामीणों को जानकारी देने की व्यवस्था की जा रही है। जागरूकता एवं प्रचार-प्रसार से विकास को गति दी जा सकती है।
खूंटी की जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती माईलिना टोपनो ने अपने हैदराबाद एवं हिमाचल प्रदेश भ्रमण के दौरान हुए अनुभव साझा करते हुए बताया कि त्रिस्तरीय कमिटी के अंतर्गत समन्वय की कमी ही विकास में बाधक है।
दूसरे सत्र में चर्चा के दौरान यूनिसेफ के कार्यक्रम अधिकारी दीपक डे, यूनिसेफ की न्युट्रीशन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव, पंचायत नामा के संपादक संजय मिश्रा, दैनिक भास्कर के वरीय पत्रकार श्री दिव्यांशु, मंथन युवा संस्थान के समन्वयक सुधीर पाल, पंचायती राज के सहायक निदेशक आर. के. मंडल, श्री के. एल. चैधरी, बालुमाथ के मुखिया अरविंद भगत, महिगांव की ज्योति बहे, हजारीबाग कटकमदाग की मुखिया प्रियंका कुमारी ने सभी प्रतिभागियों के साथ अपने अनुभव बांटे।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 विष्णु राजगढि़या, सर्ड के सहायक निदेशक श्री दीपांकर श्रीज्ञान एवं केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थान के व्याख्याता अजित कुमार सिंह ने किया। कार्यशाला में भारत निर्माण सेवक कार्यक्रम के राज्य समन्वयक डाॅ. एम. पी. सिंह, टीस के प्रो0 ई. टोप्पो, भी उपस्थित थे।
कार्यषाला में मुख्य रूप से एकजुट होकर सकारात्मक सोच के साथ समन्वय स्थापित कर सामूहिक प्रयास से विकास के विचार उभर कर सामने आए। सभी बदलाव चाहते हैं। इस दिशा में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेन्टर को प्रतिभागियों ने एक सशक्त एवं सकारात्मक पहल माना।
No comments:
Post a Comment