Wednesday, 10 April 2013

पंचायत सदस्यों के ही पास है जादुई छड़ी

डॉ विष्णु राजगढ.िया 
राज्य समन्वयक, झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर

झारखंड में पंचायती राज अब वयस्क होने की ओर बढ. रहा है. इसलिए जरूरी है कि पंचायती राज से जु.डे समस्त लोग अपने दायित्वों एवं शक्तियों के बारे में कानून एवं नियम की वास्तविक जानकारी रखें. महज सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करने के कारण कुछ लोगों में अब तक गलत धारणाएं बनी हुई हैं. बेहतर होगा कि अब हर पहलू को गंभीरता से समझें.

एक प्रमुख गलतफहमी यह है कि सारे अधिकार मुखिया, प्रमुख एवं जिप अध्यक्ष को मिले हैं. इसी भ्रम के कारण तीनों ही स्तर के कतिपय सदस्यों में मायूसी दिखती है. उन्हें लगता है कि उनके पास कोई शक्ति नहीं. उनकी इस गलत धारणा को वैसे लोग बढ.ावा दे रहे हैं, जो पंचायती राज को कमजोर संस्था बनाये रखना और मुखिया को बिचौलिया बनाना चाहते हैं. 

सच तो यह है कि पंचायत राज की जादुई छड़ी तो तीनों स्तर के सदस्यों के ही पास हैं. जरूरत है इसे सही तरीके से समझने और उसका सकारात्मक तरीके से उपयोग करके कुछ मॉडल पेश करने की, ताकि जो सदस्य अभी खुद को कमजोर समझ रहे हैं, उन्हें अपने शक्तियों का पता चल सके. वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य एवं जिला परिषद सदस्य के अधिकारों एवं शक्तियों को समझने के लिए पंचायत राज अधिनियम एवं नियमावलियों को समझना जरूरी है. आइए, हम कुछ प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा करें.

अधिनियम में विशिष्ट प्रावधान नहीं

झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 की धारा 73 में मुखिया, उप-मुखिया, प्रमुख, उप-प्रमुख, जिला परिषद् अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की शक्तियों, कृत्य एवं दायित्व संबंधी प्रावधान किये गये हैं. 

यह सच है कि अधिनियम में वार्ड, पंचायत समिति एवं जिला परिषद सदस्यों की शक्तियों के संबंध में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं किये गये हैं. यहां तक कि तीनों ही स्तर पर द्वितीय पदधारी यानी उप-मुखिया, उप-प्रमुख एवं जिला परिषद उपाध्यक्ष के लिए भी कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है, बल्कि मूलत: प्रथम पदधारी की अनुपस्थिति में अथवा उनके द्वारा सौंपे गये दायित्वों के अनुपालन का ही प्रावधान है.

नीचे से ऊपर प्रवाहित होती है शक्तियां

लेकिन इसके कारण वार्ड, पंचायत समिति एवं जिला परिषद सदस्यों की भूमिका कम अथवा सीमित नहीं होगीं. पंचायती राज व्यवस्था में समस्त शक्तियां नीचे से ऊपर की ओर प्रवाहित होती हैं. इसमें आम नागरिक को ग्राम सभा के माध्यम से पंचायती राज व्यवस्था के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका दी गयी है. यहां तक कि निर्वाचित मुखिया एवं वार्ड सदस्यों को वापस बुलाने तक का अधिकार आम नागरिकों को दिया गया है. इसी तरह, वार्ड सदस्यों को अधिकार है कि वे उप-मुखिया अथवा मुखिया को हटा सकें. पंचायत समिति के सदस्यों को उप-प्रमुख या प्रमुख को पद से हटाने का अधिकार है. जिला परिषद के सदस्य चाहें तो जिला परिषद के अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष को पदच्यूत कर दें.

इस तरह, नीचे से ऊपर की ओर प्रवाहित होने वाली शक्तियों की इस व्यवस्था में संस्था के प्रमुख के बतौर मुखिया, प्रमुख एवं जिला परिषद अध्यक्ष द्वारा जिन शक्तियों का उपयोग किया जाता है, उनका मूल स्रोत संबंधित संस्था के सदस्य ही हैं.

पंचायती राज अधिनियम में इन तीनों स्तरों के सदस्यों की शक्तियों के लिए अलग से अधिकारों का उल्लेख नहीं किये जाने का कारण यही है कि इस कानून ने पंचायती राज संस्थाओं को शक्ति दी है, न कि किसी पदधारी को. पंचायतों को शक्तियां देने संबंधी विभित्र विभागों के संकल्पों एवं आदेशों में भी यह बात देखी जा सकती है. इनमें तीनों ही स्तरों पर पंचायती राज संस्थाओं का उल्लेख किया गया है न कि किसी पदधारी का. 

दायित्वों का उल्लेख जिम्मेदार बनाने के लिए

पंचायती राज अधिनियम में तीनों स्तर की संस्थाओं के प्रमुख या उप-प्रमुख के दायित्वों का उल्लेख करने का आशय इनके प्रधान के बतौर उनके दायित्वों को स्पष्ट करना है. यह उन्हें कोई विशिष्ट एकाधिकार नहीं सौंपा गया है बल्कि विभित्र तरीकों से उसे अपने सदस्यों के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है. पंचायती राज में वास्तविक अधिकार को ग्राम सभा के आम सदस्यों तथा तीनों स्तर के निर्वाचित सदस्यों को ही सौंपे गये हैं. 

इस बात को झारखंड पंचायत (बैठक तथा कामकाज संचालन प्रक्रिया) नियमावली 2011 के प्रमुख प्रावधानों से समझाना आसान होगा. इसके अनुसार पंचायत के तीनों ही स्तर की किसी भी बैठक में रखे गये सभी प्रस्ताव उपस्थित सदस्यों के बहुमत से ही स्वीकार किये जायेंगे. इससे स्पष्ट है कि सदस्यों की स्वीकृति के बगैर मुखिया, प्रमुख या जिला परिषद अध्यक्ष कोई भी निर्णय लेने में सक्षम नहीं है.

कार्यवाही विवरण में होता है जिक्र

नियम है कि किसी भी बैठक के बाद उसके रजिस्टर में बैठक की कार्यवाही का पूरा विवरण लिखा जायेगा. इसमें यह भी उल्लेख होगा कि किसी संकल्प के पक्ष या विपक्ष में कौन सदस्य थे या कौन तटस्थ रहे. इस कार्यवाही की प्रतिलिपि दस दिन के भीतर सदस्यों को उपलब्ध कराने का भी प्रावधान है. इस तरह तीनों ही स्तर के सदस्यों को यह बात रिकार्ड में लाने का भी अधिकार है कि उन्होंने किन विषयों पर सही या गलत का पक्ष लिया. यह बात कालांतर में उनके लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज होगी. इस वजह से पदधारी भी कोई गलत प्रस्ताव लाने में हिचकेंगे.

ध्यानाकर्षण का अधिकार

ध्यानाकर्षण का अधिकार भी काफी महत्वपूर्ण है. नियमावली के अनुसार तीनों स्तर का कोई भी सदस्य बैठक से कम से कम पांच दिन पहले किसी विषय पर मुखिया, प्रमुख या अध्यक्ष का ध्यानाकर्षण कर सकेगा या उसके किसी कार्य की प्रगति के संबंध में कोई जानकारी मांग सकेगा. इस तरह हर सदस्य किसी भी समुचित विषय पर पहल करने का अधिकार रखता है. 

इसी तरह, सदस्यों को बैठक में कोई प्रस्ताव प्रस्तुत करने का भी अधिकार है. साथ ही, कोई भी सदस्य पंचायत के कार्य के निष्पादन में की गयी किसी भी उपेक्षा, पंचायत की निधि या संपत्ति के अपव्यय या दुरुपयोग या पंचायत क्षेत्र के भीतर किसी संकाय की आवश्यकताओं की ओर सभापति का ध्यान आकृष्ट कर सकेगा या सुझाव देगा.
बैठक में कोई प्रस्ताव प्रस्तुत करने या उस पर बोलने का अधिकार मुखिया, प्रमुख एवं अध्यक्ष को भी उतना ही होगा, जितना अन्य सदस्यों को है.

इसके अलावा, झारखंड पंचायत (मुखिया, उप-मुखिया, प्रमुख, उप-प्रमुख, जिला परिषद् अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की शक्तियां एवं कृत्य) नियमावली 2011 को देखना भी आवश्यक है. इसके अनुसार मुखिया का पहला काम है ग्राम पंचायत द्वारा पारित प्रस्तावों का क्रियान्वयन करना. प्रमुख एवं जिप अध्यक्ष के लिए भी यही नियम है. स्पष्ट है कि तीनों स्तर पर मूल शक्तियां इनके सदस्यों के माध्यम से पंचायती राज संस्था में निहित हैं, न कि व्यक्तियों या पदधारी में. पदधारी तो उन दायित्वों के क्रियान्वयन के प्रति उत्तरदायी हैं. 

स्थायी समितियों का प्रावधान

झारखंड पंचायत (स्थायी समिति के सदस्यों की पदावधि और कामकाज संचालन की प्रक्रिया) नियमावली 2011 में भी सदस्यों की शक्तियों का पता चलता है. पंचायत के तीनों स्तर पर सात-सात स्थायी समिति बनाने का प्रावधान है. प्रत्येक सदस्य को किन्हीं दो का सदस्य बनने का अधिकार है. ऐसी समितियों के माध्यम से उन्हें उस खास विषय में अपनी विशेष भूमिका निभाने की शक्ति प्राप्त है. स्थायी समिति की बैठक में निर्णय बहुमत से लिया जायेगा. ऐसे निर्णयों को ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद की बैठक में विचारार्थ पेश किया जायेगा.

सदस्यों की एक अन्य शक्ति का उल्लेख भी जरूरी है. वह है - पंचायत द्वारा अंतिम रूप से निबटाये गये विषयों पर पुनर्विचार का अधिकार. अगर पंचायत के किसी निर्णय पर पुनर्विचार करना हो, तो इसके लिए मतदान योग्य सदस्यों के कम से कम तीन चौथाई सदस्यों की लिखित सहमति आवश्यक होगी.

अंत में एक अनुरोध 

इन बिंदुओं से स्पष्ट है कि पंचायत के तीनों स्तर पर सदस्यों को ही मूल शक्तियां प्रदान की गयी हैं. झारखंड में पंचायती राज की स्थापना की इस महत्वपूर्ण दौर में जरूरी है कि तीनों स्तरों पर कुछ सदस्य पूरी गंभीरता के साथ अपने दायित्वों को समझते हुए सकारात्मक प्रयोग करें. ऐसे सदस्यों को राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, हेहल, रांची में यूनिसेफ के सहयोग से स्थापित झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर द्वारा हर संभव तकनीकी सहायता प्रदान की जायेगी. इस संबंध में प्रशिक्षण हेतु भी संपर्क किया जा सकता है.

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