State Level Capacity
Building Conference cum Workshop on
गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 पर राज्य स्तरीय सम्मेलन सह कार्यशाला
कार्यक्रम स्थल: जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआइ), मोराबादी, रांची. कार्यक्रम तिथि: 5 फरवरी, 2013
आयोजनकर्ता: झारखण्ड राज्य महिला आयोग एवं यूनिसेफ, झारखंड
प्रमुख अतिथि:
1. श्रीमती मृदुला सिन्हा, सचिव, समाज कल्याण विभाग, झारखंड
2. डा. हेमलता एस मोहन, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग, झारखण्ड
3. श्री जाब जकारिया, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ, झारखण्ड.
रांची। जनजातीय शोध संस्थान, मोराबादी में झारखंड राज्य महिला आयोग व यूनिसेफ की ओर से गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 पीसीपीएनडीटी अधिनियम पर राज्य स्तरीय सम्मेलन सह कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का विषय-प्रवेश करते हुए राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डा. हेमलता एस मोहन ने कहा कि समय रहते जगने और काम करने की बारी आ गई है। भ्रूण हत्या और बालक-बालिकाओं के अनुपात में आ रही गिरावट खतरे के निशान पर है। यूनिसेफ जैसी संस्था महिलाओं और बच्चों के विकास के मामले में सहयोग कर रही है। प्लान इंडिया की भी भूमिका है। समाज कल्याण भी अपने दायित्व निभा रहा है। इनके साथ-साथ हमें भी आगे आना होगा। अनुपातिक तौर पर लड़के-लड़कियों के बीच जो अंतर दिख रहा है, उसे सबों को मिल-जुलकर कम करना होगा। प्रसवपूर्व लिंग परीक्षण की प्रवृत्ति महिलाओं व लड़कियों के अस्तित्व पर संकट पैदा कर रही है। हमें ग्रासरूट पर, धरातल पर जाकर दायित्व निभाने होंगे। जो कार्यक्रम आज यहां टीआरआइ मे ंहो रहे हैं, आने वाले समय में सीडीपीओ व अन्य सरकारी पदाधिकारियों के अलावा पंचायती राज में नवनिर्वाचित जनजप्रतिनिधियों के बीच भी पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रति जागरूकता संबंधी कार्यक्रम किए जाएंगे। पीसीपीएनडीटी एक्ट को पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिए संवेदनशील समाज बनाना होगा। इसके लिए विभिन्न स्तर पर सामाजिक जागरूकता पैदा करनी होगी। एक स्वस्थ समाज की रचना के लिए लड़कियों, महिलाओं को सम्मान देना होगा। समाज के जिम्मेदार व्यक्तियों, स्रोतों, बुद्धिजीवियों के जरिए मिल-जुलकर पहल करें। संदेश फैलाएं।
राज्य महिला आयोग के विमेंस नेटवर्क को मजबूत करने की वकालत करते हुए डाॅ. हेमलता मोहन ने कहा कि हमने राज्य के सभी जिलों से कई उपयोगी सूचनाओं की मांग की थी। आयोग नेटवर्क को आॅनलाइन करने और सूचनापरक बनाने में लगा है। हमने निबंधित अल्ट्रासाउण्ड संस्थानों की सूची मांगी गई थी। सिविल सर्जनों के अलावा एनजीओ से भी इसमें मदद करने की अपील की थी। पर 5-6 जिलों को छोड़कर कहीं से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। अगर सूचनाएं मिल गई होतीं तो महिला आयोग की वेबसाइट के जरिए इसे आॅनलाइन किया जाता। इस तरह की सूचनाओं की बदौलत हमें और हम सबको गैर-निबंधित अल्ट्रासाउण्ड संस्थानों पर दबाव बनाने में मदद मिलती। सभी जिलों में विमेन पावर नेटवर्क को मजबूत करने के लिए आयोग की तरफ से लगातार पत्राचार किए गए। अपील की गई। पर ठोस काम नहीं दिखा है।
देवघर एसपी द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए डाॅ हेमलता ने बताया कि उन्होंने महिला सेल बनाया। सीडीपीओ, सहिया, आंगनबाड़ी सहायिका और दूसरों की मदद से लगातार माहौल बनाया है। विमेन सेल के जरिए उन्हें अहम सूचनाएं मिलने लगी हैं। ऐसे ही उदाहरणों से सीख लेनी होगी। हमें अपनी जिम्मेदारियों की समीक्षा करते हुए आपसी तालमेल के साथ काम करना होगा। अगर विमेन नेटवर्क को मजबूत बनाना है तो सीडीपीओ, बीडीओ, सहिया, पंचायत प्रतिनिधियों के मध्य समन्वय स्थापित करने होंगे। इनके परस्पर नेटवर्क बनने से परिणाम अवश्य दिखेंगे। घर के अंदर लड़कियों, महिलाओं के उपर दबाव होता है। गर्भवती होने पर। हमें ठोेस तरीके से पहल करनी होगी ताकि ऐसी गर्भवती महिलाओं, लड़कियों के साथ किसी परिस्थिति में नाइंसाफी ना हो। बड़े कदम उठाने के लिए अब हम तैयार हैं। श्रीमती मोहन ने कहा कि जब तक पूरे मन से, हृदय से काम नहीं हो, लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। हमारा लक्ष्य आसान नहीं है। सामाजिक सोच में बदलाव की जरूरत है। प्रसिद्ध हिन्दी लेखक दुष्यंत ने कहा है- ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.’निश्चित तौर पर हम रास्ता तय करेंगे, लक्ष्य हासिल करेंगे।
विशेष अतिथि यूनिसेफ, झारखण्ड प्रमुख श्री जाॅब जकारिया ने चिंता जताते हुए कहा कि हमारे देश में कानूनन लिंग परीक्षण प्रतिबंधित है। पीसीपीएनडीटी एक्ट इसके लिए खास तौर पर बनाया गया है। पर कई कारणों से यह प्रभावी नहीं है। यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल जन्म लेने से पहले ही साढ़े पांच लाख बेटियां मार दी जाती हैं। झारखण्ड में प्रतिवर्ष 11,000 लड़कियों का जन्म नहीं होने दिया जाता। पहले यहां बच्चों का लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक था। पर अब तेजी से गिर रहा है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसमें 21 फीसदी की कमी आयी है। शहरी क्षेत्रों में स्थिति ज्यादा गंभीर है। यहां यह 69 अंक गिरा है। सबसे बुरी स्थिति बोकारो, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, रामगढ़, गिरिडीह रांची जिले की है।
श्री जकारिया ने कहा कि हम सब इस सच से वाकिफ हैं। पर मसला यह होता है कि आखिर हम कर क्या सकते हैं? दरअसल मूल मुद्दा है परिवार, समाज में महिलाओं के अधिकारों के बारे में सोच बदलने का। हमें पुरुषवादी मनोवृत्ति से उपर उठना होगा। बाल विवाह, घरेलू हिंसा, बाल श्रम और ऐसे ही अन्य दोषों के निषेध के लिए तमाम कायदे-कानून हैं। पर इतने भर से हल नहीं होने वाला। हमें महिलाओं, लड़कियों के हित में अपने नजरिये में बदलाव भी लाना होगा। पीसीपीएनडीटी एक्ट भर के लागू करने से लाभ नहीं है। बाल विवाह, दहेज प्रथा, बाल श्रम जैसे अपराध और उनके लिए बने कानूनों को भी साथ-साथ प्रभावी ढंग से लागू किए जाने पर ध्यान देना होगा। झारखण्ड सरकार ने 2012 में बिटिया बचाओ कार्यक्रम चलाया था। इस तरह के प्रयासों का स्वागत करना चाहिए और ऐसे ही काम लगातार होने चाहिए।
श्री जकारिया ने दुख जताते हुए कहा कि हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाएं दुरूस्त नहीं हैं। अस्पताल कम हैं। डाॅक्टरों की भी भारी कमी है। तकरीबन 3000 डाक्टर हैं जिनमें 2000 सरकारी और 1000 निजी चिकित्सक हैं। अगर डाॅक्टर तय कर लें कि प्रसव पूर्व जांच और भ्रूण हत्या के काम नहीं करेंगे तो इससे समाज का भला होगा। साथ ही पुलिस, स्थानीय प्रशासन, प्रचायत प्रतिनिधियों, सहिया, एनजीओ और समाज के दूसरे लोगों को भी आगे आना होगा। सबों की सहभागिता चाहिए। इससे परिणाम जरूर सार्थक मिलेंगे।
विशिष्ट अतिथि समाज कल्याण विभाग की प्रधान सचिव श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि शहरी औद्योगिकीकरण के हिसाब से हमारी मानसिकता अब भी नहीं बदली है। लिंग निर्धारण व लिंग चयन पर रूढि़वादी सोच व संकीर्णता बरकरार है। समाज में जिन्हें इसके खिलाफ मुखर होना चाहिए, वे भी जरूरत पड़ने पर ऐसी क्लिनिक ढूंढ़ते हैं। तथाकथित ऐसे परिवार जो शिक्षित हैं, घर के दोनों लोग यानि पति-पत्नी दोनों काम करते हैं, आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे भी यह अपराध कर रहे हैं। बिना कारण ही बच्चियों को गर्भ में मारा जा रहा है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि झारखंड अभी तक हरियाणा नहीं बना है, पर इससे बहुत दूर भी नहीं है। हमारे आसपास ही गली-मुहल्लों में कई सारे गैर-निबंधित अल्ट्रासाउण्ड सेंटर चलते रहते हैं। पर हम उसे रोके जाने के प्रति अपने दायित्व नहीं निभाते। रांची, धनबाद, हजारीबाग, जमशेदपुर जैसे लगभग सभी बड़े जिलों में ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। हमें मानसिकता बदलने की जरूरत है। श्रीमती सिन्हा ने ऐसे परिवार जिनके यहां कोई गर्भवती महिला हो, के प्रति सूचनापरक बने रहने की सलाह देते हुए कहा कि नजर रखें कि गर्भवती महिला को जांच के नाम पर किस तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। अगर गर्भपात जैसी बातें होती हैं तो उसकी हकीकत जानें। जरूरत के मुताबिक ऐसे परिवार का सामाजिक तौर पर, कानूनी तौर पर बहिष्कार करना सीखें। चुप रहना घातक है। बलात्कार जैसे मामलों में पीडि़त परिवार सामने नहीं आता। समाज चुप रहने को कहता है। ऐसे में समाज के साथ-साथ हम भी एक अपराध में भागीदार बन जाते हैं। 16 दिसंबर की दिल्ली की घटना के बाद एक तरह की जागरूकता आयी है। यही लड़कियों के प्रति पूर्वाग्रह को बदलने का सही वक्त है। श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि पीसीपीएनडीटी एक्ट को लागू करना कठिन नहीं है। इसके लिए डाॅक्टरों को भी तैयार करना होगा। उन्होंने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को विश्वास में लेना होगा, क्योंकि यदि डाॅक्टर नहीं चाहेंगे, तो ऐसा नहीं हो सकता। इस कानून के साथ बाल विवाह, घरेलू हिंसा व दहेज पर रोक जैसे कानूनों को भी सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है। राज्य में लिंग जांच के 712 केंद्र हैं। कई अनिबंधित जांच घर भी हैं। सबकी माॅनिटरिंग जरूरी है। सामाजिक जागरूकता से पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी तरीके से लागू करने में कामयाबी मिल सकती है।
दूसरे सत्र की शुरूआत करते हुए प्लान इंडिया की प्रोजेक्ट मैनेजर श्रीमती देबजानी खान ने पीसीपीएनडीटी एक्ट और उसके प्रावधानों तथा झारखण्ड में इसकी स्थिति के बारे में बताया। कहा कि पीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए कई पहलूओं पर ध्यान देना होगा। लड़कियों का पलायन, स्वास्थ्य, गरीबी और आजीविका के स्रोतों का अभाव भी एक मुद्दा है। पितृसत्तात्मक समाज और लड़कों की चाहत का होना भी अहम कारक है। इन कारणों से 2001 से 2011 के बीच झारखण्ड में प्रति हजार लड़कों पर 965 लड़कियों की तुलना में 943 लड़कियांे तक आंकड़ा जा पहुंचा है। -22 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले तीन दशक में भारत में 12 लाख लड़कियों को जन्म से पहले मार दिया गया। श्रीमती खान ने घटते लिंगानुपात के लिए समाज के रूढि़वादी नजरिए और सेवाएं प्रदान करने वाले लोगों यथा स्त्री रोग विशेषज्ञ, रेडियोलाॅजिस्ट, सोनोलाॅजिस्ट व औरों की भी भूमिका बताई। उन्होंने पीएनडीटी एक्ट के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में 1991 में गर्भवती महिला और उसके सुरक्षित मातृत्व के संबंध में जवाबदेही तय करने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई थी। कई चरणों के बाद आज हमारे सामने पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट वर्तमान स्वरूप में लागू है। पीएनडीटी एक्ट के मुताबिक प्रसव पूर्व ना लिंग जांच की जा सकती है और ना लिंग चयन। पीएनडीटी एक्ट अन्य सामाजिक कानूनों से भिन्न है, जो सामाजिक व्यवहार में बदलाव की अपेक्षा नहीं करता, बल्कि चिकित्सा सेवा में नैतिकता और चिकित्सा तकनीक में नियमन की जरूरत को रेखांकित करता है। यह कानून समाज के उपर लागू होने वाला कानून नहीं है। बल्कि यह किसी गर्भवती महिला को पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान करने के लिए है। श्रीमती खान ने एक्ट के प्रावधानों के बारे में बताते हुए कहा कि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के अनुसार, किसी भी गर्भवती महिला को उसके परिवार, संबंधियों द्वारा लिंग जांच के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता, सिवाय विशेष मेडिकल केस के। लिंग चयन की कोई भी तकनीक के प्रयोग के लिए गर्भवती महिला को किसी के भी द्वारा चाहे वह उसका पति हो या पारिवारिक सदस्य, किसी भी स्तर पर जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकता। श्रीमती खान ने पीसीपीएनडीटी एक्ट के संबंध में कहा कि राज्य स्तर पर इसे कानूनन लागू करने की जिम्मेदारी बहुसदस्यीय राज्य समुचित प्राधिकरण के पास है। जिला स्तर पर जिले के सिविल सर्जन को इसका दायित्व सौंपा गया है। एक्ट के संबंध में यह जानना दिलचस्प है कि इसके उल्लंघन होने की शिकायत पर किसी के भी खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती। अगर किसी गर्भवती महिला को लिंग जांच के लिए दबाव बनाया गया हो तो भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। एक्ट के उल्लंघन की शिकायत या आशंका पर इसके लिए स्थानीय थाना, सिविल सर्जन और स्थानीय प्रशासन की मदद ली जा सकती है। सहिया अपने कार्यक्षेत्र से भलीभांति परिचित होती है। उसे अपने आसपास के गर्भवती महिलाओं के संबंध में भी पूरी सूचना होती है। उसका सहयोग लेना प्रभावी हो सकता है। पंचायत प्रतिनिधियों को भी इसमें जोड़ा जा सकता है। श्रीमती खान ने समाज में माहौल पैदा करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि लड़का ही नहीं, लड़की के मामले में भी जन्मोत्सव मनाने की परंपरा शुरू की जानी चाहिए। हम सबों को अपनी जिम्मेदारियों, दायित्वों को निभाना होगा। डाॅक्टरों को जवाबदेह बनाने की भी जरूरत है। कई बार ऐसा होता है जब वे अनावश्यक रूप से अल्ट्रासाउण्ड करने की सलाह दे देते हैं। यहां तक कि पशु, आयुर्वेदिक डाॅक्टरों को भी अल्ट्रासाउण्ड करते देखा गया है। जबकि प्रावधान एमबीबीएस, रेडियोलाॅजिस्ट या अन्य सक्षम व्यक्तियों के लिए ही है। इस तरह के मामलों में हमें तत्काल अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए।
उत्तराखंड पीसीपीएनडीटी सेल की नोडल आॅफिसर श्रीमती सरोज नथानी ने उत्तराखण्ड की स्थिति बताते हुए कहा कि यहां 13 जिले हैं। नैनीताल जैसे जिले को छोड़ दे ंतो अधिकांश जिले पहाड़ी इलाके वाले हैं। 2001 की तुलना में 2011 में अधिकांश जिलों में प्रति हजार लड़कों की अपेक्षा 850 लड़कियां थीं। जबकि राष्ट्रीय पैमाने के मुताबिक 954 होना चाहिए था। उत्तराखण्ड में 518 अल्ट्रासाउण्ड सेंटर निबंधित हैं जबकि अनुमान है कि हकीकत में यह आंकड़ा 40 गुना ज्यादा है। राज्य में ऐसी व्यवस्था की गई है कि गर्भवती महिलाओं और उससे संबंधित अन्य उपयोगी सूचनाएं आसानी से और निरंतर मिलती रहे। जैसे अगर किसी गर्भवती महिला का अल्ट्रासाउण्ड होता है तो उसके परिवार, पता, जहां अल्ट्रासाउण्ड कराया गया, उस सेंटर का नाम, पता भी एक डाटा के जरिए संग्रह किया जाता है। उसकी एक आइडी बनाई जाती है। इसका निरंतर फाॅलो-अप होता है। परिस्थितियों के मद्देनजर संबंधित जिलों के उपायुक्त/जिला जज को अपीलीय पदाधिकारी बनाया गया है। सुपरवाइजरी बोर्ड के प्रमुख राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हैं और इसी तरह अन्य स्तरों पर सक्षम पदाधिकारियों, एनजीओ व अन्य को जोड़ा गया है। राज्य के सभी 13 जिलों मे ंपीसीपीएनडीटी सेल बनाया गया है। पीसीपीएनडीटी सेल के बारे में जानकारी देते हुए श्रीमती सरोज ने बताया सेल से जुड़े सभी सदस्यांे को एक्ट से संबंधित नियमों, प्रावधानों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है। ऐसे डाॅक्टर्स, रेडियोलाॅजिस्ट, गाइनेकोलाॅजिस्टों को भी ट्रेनिंग दी गई है और आॅनलाइन विभिन्न आवेदनों, फाॅर्मों को भरने के बारे में बताया गया है। सभी आशाओं/सहिया को भी प्रशिक्षित किये जाने का क्रम जारी है। सोनोग्राफी मशीन वेंडर्स और मशीन विक्रेताओं को भी इस कार्यक्रम से जोड़ा जा रहा है। इस तरह की मशीन की किसी स्तर पर खरीदारी, बिक्री से संबंधित सूचनाएं भी आॅनलाइन रहे, इस पर जोर दिया गया है। लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिहाज से रेडियो जिंगल/गाने और बस पैनल, चलंत प्रचार वाहनों का उपयोग किया जा रहा है। अखबारों, चैनलों पर विज्ञापनों के जरिए भ्रूण हत्या पर रोक और लड़कियों को प्रोत्साहन दिए जाने के संबंध में प्रचार- प्रसार किया जा रहा है। श्रीमती सरोज के अनुसार राज्य के 52 सरकारी काॅलेजों में युवा विद्यार्थियों को भी प्रशिक्षित किया जाना है। उन्हें संवेदनशील बनाना है। यूथ डे, विमेंस डे के जरिए भी ऐसे ही प्रयास होने हैं। इसके अलावा प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन जैसे काम करने वाले अल्ट्रासाउण्ड सेंटर्स की जांच-पड़ताल पर भी जोर दिया गया है। इसके तहत एसआइएमसी द्वारा चार जिलों हरिद्वार, चमोली, रूद्रप्रयाग और पौड़ी में जांच अभियान चलाया गया और 6 मशीनों को सील किया गया है। अब तक कुल मिलाकर 17 मशीनों को सील किया गया है। 30 केंद्रों का निबंधन रद्द किया गया है। अदालतों में 5 केस के उपर सुनवाई चल रही है। पर इतने भर से बात नहीं बनने वाली। हम सबों को अपने दायित्वों को संवेदनशीलता के साथ निभाना होगा।
डा सरोज नथानी
नोडल आॅफिसर, उत्तराखंड पीसीपीएनडीटी सेल
महत्वपूर्ण बिंदु:
1. नियमित तौर पर 0-6 वर्ष के आयु के बच्चों के अनुपात की निगरानी आवश्यक है।
2. एमटीपी एक्ट के तहत एमटीपी के प्रावधानों का अनुसरण हो।
3. एमटीपी के प्रावधानों के साथ-साथ गर्भपात संबंधी आंकड़ों का लेखा-जोखा भी दुरूस्त रखें।
4. फाॅर्म -एफ के आॅनलाइन भरे जाने की व्यवस्था तय करायी जाये।
5. दोषियों और पीडि़तों के मामले में उपयुक्त सुरक्षा, दायरे के प्रावधानों का ध्यान रखें।
6. सभी अल्ट्रासाउण्ड मशीनों में ‘एक्टिव ट्रेकर डिवाइस’ का प्रयोग हो।
7. अल्ट्रासाउण्ड सेंटरों की नियमित तौर पर निगरानी हो।
भोजनावकाश सत्र के बाद धनबाद से आयी फागुनी देवी ने अपनी व्यथा सुनाई। कहा कि वह एक हरिजन महिला है। शादी के बाद जब वह गर्भवती हुई तो उसके सुसराल वालों ने जबर्दस्ती उसक गर्भ जांच कराई। बेटी होने की संभावना पर उसे कोई दवा पिलायी गयी। बच्ची गर्भ में मर गयी। इसके खिलाफ जब थाने में केस दर्ज कराया तो केस उठाने का दबाव बनाया गया। अंततः पति को जेल भी हुआ। एक माह के बाद वह बाहर आया। और अब उस पर ही चोरी का केस दर्ज करा दिया गया है। ऐसी स्थिति में वह क्या करे? जब कोई उसकी मदद करने की कोशिश करता है तो उसे भी धमकाया जाता है। अब भी वह गर्भवती है, ऐसी स्थिति से कैसे बाहर निकले? चर्चा को आगे बढ़ाते हुए यूनिसेफ की हेल्थ स्पेशलिस्ट डाॅ. मधुलिका जोनाथन ने पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को रेखांकित किया। विमेन पावर नेटवर्क और जिला स्वास्थ्य प्रबंधन की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि जो भी प्रयास इस संदर्भ में हो रहे हैं, वे किस तरह के हैं और कितने प्रभावी हैं, यह देखना जरूरी है। समुदाय के साथ-साथ राजनीति से जुड़े लोगों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं और दूसरों को प्रशिक्षित करते हुए उन्हें संवेदनशील और जवाबदेह बनाने के प्रयासों पर काम निरंतर करते रहना होगा। पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत निबंधित क्लिनिकों द्वारा भरे जाने वाले फाॅर्म-एफ को निरंतर देखना और उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। ऐसे कामों के लिए आशा, सहिया, पंचायतों को जोड़ना और उन्हें सक्रिय बनाना कारगर होगा। गर्भवती महिला की पहचान, उसकी निरंतर देखभाल, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और उनके निदान जैसे घटनाक्रमों की निगरानी करनी होगी। अगर कहीं प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन जैसी घटनाएं किसी क्षेत्र में हो रही हैं तो इसमें शामिल लोगों और उनके बीच कायम कडि़यों को तोड़ने का काम करना होगा। विमेन पावर नेटवर्क को प्रभावी बनाने की कोशिश करनी होगी।
मधुलिका जोनाथन, यूनिसेफ, झारखण्ड
प्रमुख बिंदु:
1. एनजीओ, समुदाय आधारित संगठन, चिकित्सक और मेडिकल/डाॅक्टर्स एसोसिएशन व अन्य के प्रयास, योगदानों पर नजर रखना होगा।
2. समुदाय (विशेषतः नेतृत्वकर्ता) को संवेदनशील बनाने होंगे।
3. स्थानीय प्रशासन ( उपायुक्त, एसडीओ व अन्य) की भूमिका आवश्यक है।
4. सीमावर्ती जिलों में अंतरराज्यीय सहयोग के द्वारा गर्भवती महिलाओं के मामले में समुचित सूचनाओं का संग्रहण करना होगा।
5. उपयुक्त संस्थाओं/संस्थानों के द्वारा पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार भरे गये फाॅर्म-एफ का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए। अद्यतन स्थितियों पर भी ध्यान रखना होगा।
6. प्रताडि़त की जा रही गर्भवती महिलाओं के मामले में दोषियों की परख और शिकायतकर्ता महिला के मामले में किए जा रहे प्रयासों पर लगातार नजर रखनी होगी।
7. अदालतों में प्रभावित गर्भवती महिला के मामले में केस जाने पर उसे वहां भरपूर सहयोग मिलने और ससमय न्याय मिल पाने की स्थिति की समीक्षा करते रहनी होगी।
8. लिंग जांच अपराधों से जुड़ी कडि़यों को तोड़ने पर काम होना चाहिए।
9. जमीनी स्तर पर काम करने वालों और पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं और जन्म दर की स्थिति पर नजर हो।
10. न्यायिक सेवा से जुड़े लोगों, सदस्यों, जिला विधिक सेवा प्राधिकार और अन्य उपयुक्त स्रोतों के बीच जागरूकता और प्रशिक्षण का प्रयास हो।
11. किसी खास व्यक्ति, परिवार, समुदाय, जातियों में अगर जन्म दर असमान दिखे तो इसके कारणों की पहचान की जाए।
12. स्थानीय प्रशासन द्वारा प्राप्त आवेदनों का निबंधन हो।
13. प्राप्त आवेदनों पर अनुदान देने, उन्हें खारिज करने के संबंध में दिशा-निर्देश हो।
14. स्थानीय प्रशासन द्वारा जेनेटिक काउंसिलिंग सेंटर, जेनेटिक क्लिनिक और जेनेटिक लैबोरेटरी के स्तर को सुधारने पर कार्य हो।
15. स्थानीय प्रशासन द्वारा अदालतों में चल रहे मामलों की गतिशीलता की समीक्षा हो।
16. अवैध क्लिनिकों, अल्ट्रासाउण्ड केंद्रों की जांच-पड़ताल, निगरानी और दण्ड के प्रावधानों के अनुपालन पर स्थानीय प्रशासन जवाबदेही तय करे।
17. प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन के दोषों के बारे में प्रशासन द्वारा समुचित प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है।
18. संदिग्ध केंद्रों, क्लिनिकों के बारे में सलाहकार समिति की रिपोर्ट, अनुशंसा पर कार्रवाई करने की दिशा में प्रशासनिक भूमिका भी उपयोगी होगी।
19. सलाहकार समिति और विमेंस पावर नेटवर्क के बीच बेहतर समन्वय हो।
20. महिला नेटवर्क के संदर्भ में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।
आखिरी सत्र में झारखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से आए पुलिस महिला कोषांग, जिला सिविल सर्जन/ जिला समिति, एनजीओ प्रतिनिधियों और अन्य उपस्थित प्रतिभागियों को तीन ग्रुपों ए, बी व सी में बांट दिया गया। तीनों ग्रुप में तकरीबन 20-20 सदस्य शामिल थे। निर्धारित आधे घंटे के दौरान तीनों ग्रुप के सदस्यों ने आपसी विचार-विमर्श और अपने-अपने तजुर्बाें के आधार पर अपने सुझाव, मतों को लिखित रूप में उतारा। इसके बाद ग्रुप ए ने अपने पक्ष रखते हुए कहा कि प्रसव पूर्व जांच, भ्रूण हत्या जैसी स्थितियों के लिए महिलाएं भी जिम्मेदार हैं। उनकी मानसिकता में बदलाव पर काम करने होंगे। उन्हें शिक्षित करना होगा। ऐसे अवांछित काम करने वाले डाॅक्टरों का निबंधन रद्द कर देना चाहिए। सिलेबस में भी इस विषय को शामिल किया जाए। पुलिस को महिला मामलों के केस के निराकरण में संवेदनशील बनाना होगा। सलाहकार समिति का गठन हो जिसमें हर क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हों।
सम्मेलन में प्रतिनिधियों की राय
ग्रुप ए के प्रमुख सुझाव
1. महिलाओं को उनके लिए तय कानूनी प्रावधानों, अधिकारों के बारे में शिक्षित किया जाना होगा।
2. मेडिकल के सिलेबस में प्रसव पूर्व जांच और भ्रूण हत्या न करने के मुद्दे को शामिल किया जाए।
3. मेडिकल के छात्रों द्वारा शपथ पत्र में उनके द्वारा यह सुनिश्चित कराया जाये कि वे लिंग जांच नहीं करेंगे।
4. दोषी चिकित्सकों पर धारा 302 लगाया जाए। धारा 312 और 316 के प्रावधान को भी आरोपित किया जाए।
5. पंचायत स्तर पर दहेज उन्मूलन, महिला उत्पीड़न और महिला हित से जुड़े विषयों के प्रति जागरूकता लायी जाये।
6. शादी के समय वर-वधु शपथ लें कि वे लिंग जांच नहीं कराएंगे।
7. महिला शिकायतकर्ता के लिए निःशुल्क कानूनी प्रावधानों की व्यवस्था तय हो।
8. सलाहकार समिति का गठन/पुनर्गठन और ससमय बैठक हो।
9. सिविल सोसाईटी लिंग जांच करने वाले केंद्रों की पहचान करे और ऐसी सूचनाओं को उपयुक्त जवाबदेह व्यक्तियों तक पहुंचाये।
10. सोसाईटी को ऐसे प्रयासों में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिये। दोषियों, अपराधियों को हतोत्साहित करना चाहिये।
ग्रुप बी ने सुझाव देते हुए कहा कि धार्मिक गुरुओं, संतों की मदद भी कन्या जन्म को प्रश्रय देने के संदर्भ में ली जानी चाहिए। समाज के प्रमुख बुद्धिजीवियों, व्यक्तियों का लाभ लिया जाना चाहिए। लड़कियों को सरकार की ओर से समूची शिक्षा निःशुल्क दिए जाने की व्यवस्था भी हितकर प्रयास हो सकता है।
ग्रुप बी के प्रमुख सुझाव
1. बालिकाओं की समाज में जरूरत के प्रति नजरिया और माहौल बनाने के लिए लगातार प्रयास हों
2. स्कूल, काॅलेज के छात्रों को प्रेरित करें।
3. स्वयंसहायता समूह, एनजीओ, पीआरआइ सदस्यों का सहयोग लिया जाये।
4. विवाहित परिवारों को भी प्रेरणा दी जाए।
5. दहेज प्रथा का व्यापक स्तर पर विरोध हो।
6. नवविवाहित परिवारों की सूचना और गर्भवती महिला पर नजर रखा जाना।
7. लड़कियां नहीं तो दुल्हन नहीं, दुल्हन नहीं तो मां नहीं और मां नही ंतो सुना आंगन और सुना संसार, के संदेश को फैलाना।
8. समाज के सभी वर्गों, जिम्मेदार व्यक्तियों के लिए जवाबदेही तय करना।
ग्रुप सी ने पुलिस, एनजीओ, महिला कोषांग और सिविल सर्जन को केंद्र में रखते हुए विभिन्न बिंदुओं को रखा। महिला शिकायतकर्ता के आवेदन पर ससमय सुनवाई और जांच हो। एनजीओ के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए। परिवार मध्यस्थता केंद्र की स्थापना और उनको प्रोत्साहन मिले। राज्य के विभिन्न हिस्सों में जरूरतमंद महिलाओं, बच्चों के लिए आवासीय सुविधा केंद्र खुले। अल्ट्रासाउण्ड मशीन रखने वालें केंद्रों निबंधन निश्चित तौर पर कराया जाए। रेडियोलाॅजिस्ट और डाॅक्टरों को भी नैतिक, सामाजिक स्तर पर संवेदनशील बनाया जाए।
ग्रुप सी के प्रमुख सुझाव
1. पुलिस महिला शिकायतकर्ता को सम्मान और सुरक्षा दे।
2. महिला शिकायतकर्ता के आवेदनोें, मामलों पर तत्परता दिखाये, त्वरित कार्रवाई करे।
3. मामले का ससमय निपटारा करने में गति दिखाए।
4. विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत एनजीओ को समुचित प्रशिक्षण मिले। निगरानी समिति को जागरूक करें।
5. पंचायत प्रतिनिधियों के साथ समन्वय बनाया जाये।
6. अनाथ बच्चों, महिलाओं के लिए आवासीय और स्वास्थ्य सुविधाओं वाले केंद्र बनें।
7. शैक्षणिक रूप से ऐसे केंद्रों में रहने वाली महिलाओं को सबल और आत्मनिर्भर बनाया जाए।
8. अल्ट्रासाउण्ड मशीन रखने वालों के लिए निबंधन अनिवार्य शर्त हो। इसके लिए सहिया/आशा, पंचायत प्रतिनिधियों, एनजीओ की मदद लें।
9. निर्धारित फाॅर्मेट का भराव और उनका संग्रहण, विश्लेषण।
10. अल्ट्रासाउण्ड केंद्रों का लगातार निरीक्षण। गलती किए जाने पर दण्ड का प्रावधान।
11. जिला सलाहकार समिति की लगातार बैठक तय हो।
12. अल्ट्रासाउण्ड केंद्र खोले जाने के लिए शुल्क का निर्धारण। .
समापन सत्र को संबोधित करते हुए डाॅ हेमलता मोहन ने कहा कि समाज में हर कोई इस चुनौती का सामना कर रहा है। कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़े भयावह हो रहे हैं। हमें यह परस्पर सुनिश्चित करना है कि जो भी प्रावधान पीसीपीएनडीटी एक्ट में तय किए गए हैं, उस पर जवाबदेही लेते हुए काम करें। हममें से हर कोई सक्षम है, इसका सदुपयोग करें। जहां कहीं अवैध अल्ट्रासाउण्ड सेंटर्स हैं, उसके खिलाफ आगे बढ़ें, उपयुक्त मंच पर शिकायत करें। आवश्यकता पड़ने पर महिला आयोग को लिखें। विमेन पावर नेटवर्क से जुड़ें। इसे मजबूत करें। जो भी सदस्य बनें, वे शपथ लें कि प्रत्येक माह कम से कम तीन ऐसे केस की पहचान करेंगे जिससे पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाया जा सके। विमेंस नेटवर्क के जरिए हमारा प्रयास पंचायत प्रतिनिधियों तक जाने का भी है। अगर हर नागरिक सक्रिय हो जाए तो प्रयास रंग लाएगा। यहां मिले अनुभवांे, सुझावों को महिला आयोग धरातल पर उतारने के लिए पहल करेगा।
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रिपोर्ट प्रस्तुति - अमित कुमार झा, 7209430552,
Pre Conception & Pre Natal Diagnostic
Techniques Act, 1994
5th Feb 2013, Tribal Research Institute, Morabadi, Ranchi
गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 पर राज्य स्तरीय सम्मेलन सह कार्यशाला
कार्यक्रम स्थल: जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआइ), मोराबादी, रांची. कार्यक्रम तिथि: 5 फरवरी, 2013
आयोजनकर्ता: झारखण्ड राज्य महिला आयोग एवं यूनिसेफ, झारखंड
प्रमुख अतिथि:
1. श्रीमती मृदुला सिन्हा, सचिव, समाज कल्याण विभाग, झारखंड
2. डा. हेमलता एस मोहन, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग, झारखण्ड
3. श्री जाब जकारिया, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ, झारखण्ड.
रांची। जनजातीय शोध संस्थान, मोराबादी में झारखंड राज्य महिला आयोग व यूनिसेफ की ओर से गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 पीसीपीएनडीटी अधिनियम पर राज्य स्तरीय सम्मेलन सह कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का विषय-प्रवेश करते हुए राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डा. हेमलता एस मोहन ने कहा कि समय रहते जगने और काम करने की बारी आ गई है। भ्रूण हत्या और बालक-बालिकाओं के अनुपात में आ रही गिरावट खतरे के निशान पर है। यूनिसेफ जैसी संस्था महिलाओं और बच्चों के विकास के मामले में सहयोग कर रही है। प्लान इंडिया की भी भूमिका है। समाज कल्याण भी अपने दायित्व निभा रहा है। इनके साथ-साथ हमें भी आगे आना होगा। अनुपातिक तौर पर लड़के-लड़कियों के बीच जो अंतर दिख रहा है, उसे सबों को मिल-जुलकर कम करना होगा। प्रसवपूर्व लिंग परीक्षण की प्रवृत्ति महिलाओं व लड़कियों के अस्तित्व पर संकट पैदा कर रही है। हमें ग्रासरूट पर, धरातल पर जाकर दायित्व निभाने होंगे। जो कार्यक्रम आज यहां टीआरआइ मे ंहो रहे हैं, आने वाले समय में सीडीपीओ व अन्य सरकारी पदाधिकारियों के अलावा पंचायती राज में नवनिर्वाचित जनजप्रतिनिधियों के बीच भी पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रति जागरूकता संबंधी कार्यक्रम किए जाएंगे। पीसीपीएनडीटी एक्ट को पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिए संवेदनशील समाज बनाना होगा। इसके लिए विभिन्न स्तर पर सामाजिक जागरूकता पैदा करनी होगी। एक स्वस्थ समाज की रचना के लिए लड़कियों, महिलाओं को सम्मान देना होगा। समाज के जिम्मेदार व्यक्तियों, स्रोतों, बुद्धिजीवियों के जरिए मिल-जुलकर पहल करें। संदेश फैलाएं।
राज्य महिला आयोग के विमेंस नेटवर्क को मजबूत करने की वकालत करते हुए डाॅ. हेमलता मोहन ने कहा कि हमने राज्य के सभी जिलों से कई उपयोगी सूचनाओं की मांग की थी। आयोग नेटवर्क को आॅनलाइन करने और सूचनापरक बनाने में लगा है। हमने निबंधित अल्ट्रासाउण्ड संस्थानों की सूची मांगी गई थी। सिविल सर्जनों के अलावा एनजीओ से भी इसमें मदद करने की अपील की थी। पर 5-6 जिलों को छोड़कर कहीं से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। अगर सूचनाएं मिल गई होतीं तो महिला आयोग की वेबसाइट के जरिए इसे आॅनलाइन किया जाता। इस तरह की सूचनाओं की बदौलत हमें और हम सबको गैर-निबंधित अल्ट्रासाउण्ड संस्थानों पर दबाव बनाने में मदद मिलती। सभी जिलों में विमेन पावर नेटवर्क को मजबूत करने के लिए आयोग की तरफ से लगातार पत्राचार किए गए। अपील की गई। पर ठोस काम नहीं दिखा है।
देवघर एसपी द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए डाॅ हेमलता ने बताया कि उन्होंने महिला सेल बनाया। सीडीपीओ, सहिया, आंगनबाड़ी सहायिका और दूसरों की मदद से लगातार माहौल बनाया है। विमेन सेल के जरिए उन्हें अहम सूचनाएं मिलने लगी हैं। ऐसे ही उदाहरणों से सीख लेनी होगी। हमें अपनी जिम्मेदारियों की समीक्षा करते हुए आपसी तालमेल के साथ काम करना होगा। अगर विमेन नेटवर्क को मजबूत बनाना है तो सीडीपीओ, बीडीओ, सहिया, पंचायत प्रतिनिधियों के मध्य समन्वय स्थापित करने होंगे। इनके परस्पर नेटवर्क बनने से परिणाम अवश्य दिखेंगे। घर के अंदर लड़कियों, महिलाओं के उपर दबाव होता है। गर्भवती होने पर। हमें ठोेस तरीके से पहल करनी होगी ताकि ऐसी गर्भवती महिलाओं, लड़कियों के साथ किसी परिस्थिति में नाइंसाफी ना हो। बड़े कदम उठाने के लिए अब हम तैयार हैं। श्रीमती मोहन ने कहा कि जब तक पूरे मन से, हृदय से काम नहीं हो, लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। हमारा लक्ष्य आसान नहीं है। सामाजिक सोच में बदलाव की जरूरत है। प्रसिद्ध हिन्दी लेखक दुष्यंत ने कहा है- ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.’निश्चित तौर पर हम रास्ता तय करेंगे, लक्ष्य हासिल करेंगे।
विशेष अतिथि यूनिसेफ, झारखण्ड प्रमुख श्री जाॅब जकारिया ने चिंता जताते हुए कहा कि हमारे देश में कानूनन लिंग परीक्षण प्रतिबंधित है। पीसीपीएनडीटी एक्ट इसके लिए खास तौर पर बनाया गया है। पर कई कारणों से यह प्रभावी नहीं है। यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल जन्म लेने से पहले ही साढ़े पांच लाख बेटियां मार दी जाती हैं। झारखण्ड में प्रतिवर्ष 11,000 लड़कियों का जन्म नहीं होने दिया जाता। पहले यहां बच्चों का लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक था। पर अब तेजी से गिर रहा है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसमें 21 फीसदी की कमी आयी है। शहरी क्षेत्रों में स्थिति ज्यादा गंभीर है। यहां यह 69 अंक गिरा है। सबसे बुरी स्थिति बोकारो, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, रामगढ़, गिरिडीह रांची जिले की है।
श्री जकारिया ने कहा कि हम सब इस सच से वाकिफ हैं। पर मसला यह होता है कि आखिर हम कर क्या सकते हैं? दरअसल मूल मुद्दा है परिवार, समाज में महिलाओं के अधिकारों के बारे में सोच बदलने का। हमें पुरुषवादी मनोवृत्ति से उपर उठना होगा। बाल विवाह, घरेलू हिंसा, बाल श्रम और ऐसे ही अन्य दोषों के निषेध के लिए तमाम कायदे-कानून हैं। पर इतने भर से हल नहीं होने वाला। हमें महिलाओं, लड़कियों के हित में अपने नजरिये में बदलाव भी लाना होगा। पीसीपीएनडीटी एक्ट भर के लागू करने से लाभ नहीं है। बाल विवाह, दहेज प्रथा, बाल श्रम जैसे अपराध और उनके लिए बने कानूनों को भी साथ-साथ प्रभावी ढंग से लागू किए जाने पर ध्यान देना होगा। झारखण्ड सरकार ने 2012 में बिटिया बचाओ कार्यक्रम चलाया था। इस तरह के प्रयासों का स्वागत करना चाहिए और ऐसे ही काम लगातार होने चाहिए।
श्री जकारिया ने दुख जताते हुए कहा कि हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाएं दुरूस्त नहीं हैं। अस्पताल कम हैं। डाॅक्टरों की भी भारी कमी है। तकरीबन 3000 डाक्टर हैं जिनमें 2000 सरकारी और 1000 निजी चिकित्सक हैं। अगर डाॅक्टर तय कर लें कि प्रसव पूर्व जांच और भ्रूण हत्या के काम नहीं करेंगे तो इससे समाज का भला होगा। साथ ही पुलिस, स्थानीय प्रशासन, प्रचायत प्रतिनिधियों, सहिया, एनजीओ और समाज के दूसरे लोगों को भी आगे आना होगा। सबों की सहभागिता चाहिए। इससे परिणाम जरूर सार्थक मिलेंगे।
विशिष्ट अतिथि समाज कल्याण विभाग की प्रधान सचिव श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि शहरी औद्योगिकीकरण के हिसाब से हमारी मानसिकता अब भी नहीं बदली है। लिंग निर्धारण व लिंग चयन पर रूढि़वादी सोच व संकीर्णता बरकरार है। समाज में जिन्हें इसके खिलाफ मुखर होना चाहिए, वे भी जरूरत पड़ने पर ऐसी क्लिनिक ढूंढ़ते हैं। तथाकथित ऐसे परिवार जो शिक्षित हैं, घर के दोनों लोग यानि पति-पत्नी दोनों काम करते हैं, आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे भी यह अपराध कर रहे हैं। बिना कारण ही बच्चियों को गर्भ में मारा जा रहा है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि झारखंड अभी तक हरियाणा नहीं बना है, पर इससे बहुत दूर भी नहीं है। हमारे आसपास ही गली-मुहल्लों में कई सारे गैर-निबंधित अल्ट्रासाउण्ड सेंटर चलते रहते हैं। पर हम उसे रोके जाने के प्रति अपने दायित्व नहीं निभाते। रांची, धनबाद, हजारीबाग, जमशेदपुर जैसे लगभग सभी बड़े जिलों में ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। हमें मानसिकता बदलने की जरूरत है। श्रीमती सिन्हा ने ऐसे परिवार जिनके यहां कोई गर्भवती महिला हो, के प्रति सूचनापरक बने रहने की सलाह देते हुए कहा कि नजर रखें कि गर्भवती महिला को जांच के नाम पर किस तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। अगर गर्भपात जैसी बातें होती हैं तो उसकी हकीकत जानें। जरूरत के मुताबिक ऐसे परिवार का सामाजिक तौर पर, कानूनी तौर पर बहिष्कार करना सीखें। चुप रहना घातक है। बलात्कार जैसे मामलों में पीडि़त परिवार सामने नहीं आता। समाज चुप रहने को कहता है। ऐसे में समाज के साथ-साथ हम भी एक अपराध में भागीदार बन जाते हैं। 16 दिसंबर की दिल्ली की घटना के बाद एक तरह की जागरूकता आयी है। यही लड़कियों के प्रति पूर्वाग्रह को बदलने का सही वक्त है। श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि पीसीपीएनडीटी एक्ट को लागू करना कठिन नहीं है। इसके लिए डाॅक्टरों को भी तैयार करना होगा। उन्होंने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को विश्वास में लेना होगा, क्योंकि यदि डाॅक्टर नहीं चाहेंगे, तो ऐसा नहीं हो सकता। इस कानून के साथ बाल विवाह, घरेलू हिंसा व दहेज पर रोक जैसे कानूनों को भी सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है। राज्य में लिंग जांच के 712 केंद्र हैं। कई अनिबंधित जांच घर भी हैं। सबकी माॅनिटरिंग जरूरी है। सामाजिक जागरूकता से पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी तरीके से लागू करने में कामयाबी मिल सकती है।
दूसरे सत्र की शुरूआत करते हुए प्लान इंडिया की प्रोजेक्ट मैनेजर श्रीमती देबजानी खान ने पीसीपीएनडीटी एक्ट और उसके प्रावधानों तथा झारखण्ड में इसकी स्थिति के बारे में बताया। कहा कि पीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए कई पहलूओं पर ध्यान देना होगा। लड़कियों का पलायन, स्वास्थ्य, गरीबी और आजीविका के स्रोतों का अभाव भी एक मुद्दा है। पितृसत्तात्मक समाज और लड़कों की चाहत का होना भी अहम कारक है। इन कारणों से 2001 से 2011 के बीच झारखण्ड में प्रति हजार लड़कों पर 965 लड़कियों की तुलना में 943 लड़कियांे तक आंकड़ा जा पहुंचा है। -22 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले तीन दशक में भारत में 12 लाख लड़कियों को जन्म से पहले मार दिया गया। श्रीमती खान ने घटते लिंगानुपात के लिए समाज के रूढि़वादी नजरिए और सेवाएं प्रदान करने वाले लोगों यथा स्त्री रोग विशेषज्ञ, रेडियोलाॅजिस्ट, सोनोलाॅजिस्ट व औरों की भी भूमिका बताई। उन्होंने पीएनडीटी एक्ट के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में 1991 में गर्भवती महिला और उसके सुरक्षित मातृत्व के संबंध में जवाबदेही तय करने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई थी। कई चरणों के बाद आज हमारे सामने पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट वर्तमान स्वरूप में लागू है। पीएनडीटी एक्ट के मुताबिक प्रसव पूर्व ना लिंग जांच की जा सकती है और ना लिंग चयन। पीएनडीटी एक्ट अन्य सामाजिक कानूनों से भिन्न है, जो सामाजिक व्यवहार में बदलाव की अपेक्षा नहीं करता, बल्कि चिकित्सा सेवा में नैतिकता और चिकित्सा तकनीक में नियमन की जरूरत को रेखांकित करता है। यह कानून समाज के उपर लागू होने वाला कानून नहीं है। बल्कि यह किसी गर्भवती महिला को पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान करने के लिए है। श्रीमती खान ने एक्ट के प्रावधानों के बारे में बताते हुए कहा कि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के अनुसार, किसी भी गर्भवती महिला को उसके परिवार, संबंधियों द्वारा लिंग जांच के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता, सिवाय विशेष मेडिकल केस के। लिंग चयन की कोई भी तकनीक के प्रयोग के लिए गर्भवती महिला को किसी के भी द्वारा चाहे वह उसका पति हो या पारिवारिक सदस्य, किसी भी स्तर पर जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकता। श्रीमती खान ने पीसीपीएनडीटी एक्ट के संबंध में कहा कि राज्य स्तर पर इसे कानूनन लागू करने की जिम्मेदारी बहुसदस्यीय राज्य समुचित प्राधिकरण के पास है। जिला स्तर पर जिले के सिविल सर्जन को इसका दायित्व सौंपा गया है। एक्ट के संबंध में यह जानना दिलचस्प है कि इसके उल्लंघन होने की शिकायत पर किसी के भी खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती। अगर किसी गर्भवती महिला को लिंग जांच के लिए दबाव बनाया गया हो तो भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। एक्ट के उल्लंघन की शिकायत या आशंका पर इसके लिए स्थानीय थाना, सिविल सर्जन और स्थानीय प्रशासन की मदद ली जा सकती है। सहिया अपने कार्यक्षेत्र से भलीभांति परिचित होती है। उसे अपने आसपास के गर्भवती महिलाओं के संबंध में भी पूरी सूचना होती है। उसका सहयोग लेना प्रभावी हो सकता है। पंचायत प्रतिनिधियों को भी इसमें जोड़ा जा सकता है। श्रीमती खान ने समाज में माहौल पैदा करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि लड़का ही नहीं, लड़की के मामले में भी जन्मोत्सव मनाने की परंपरा शुरू की जानी चाहिए। हम सबों को अपनी जिम्मेदारियों, दायित्वों को निभाना होगा। डाॅक्टरों को जवाबदेह बनाने की भी जरूरत है। कई बार ऐसा होता है जब वे अनावश्यक रूप से अल्ट्रासाउण्ड करने की सलाह दे देते हैं। यहां तक कि पशु, आयुर्वेदिक डाॅक्टरों को भी अल्ट्रासाउण्ड करते देखा गया है। जबकि प्रावधान एमबीबीएस, रेडियोलाॅजिस्ट या अन्य सक्षम व्यक्तियों के लिए ही है। इस तरह के मामलों में हमें तत्काल अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए।
उत्तराखंड पीसीपीएनडीटी सेल की नोडल आॅफिसर श्रीमती सरोज नथानी ने उत्तराखण्ड की स्थिति बताते हुए कहा कि यहां 13 जिले हैं। नैनीताल जैसे जिले को छोड़ दे ंतो अधिकांश जिले पहाड़ी इलाके वाले हैं। 2001 की तुलना में 2011 में अधिकांश जिलों में प्रति हजार लड़कों की अपेक्षा 850 लड़कियां थीं। जबकि राष्ट्रीय पैमाने के मुताबिक 954 होना चाहिए था। उत्तराखण्ड में 518 अल्ट्रासाउण्ड सेंटर निबंधित हैं जबकि अनुमान है कि हकीकत में यह आंकड़ा 40 गुना ज्यादा है। राज्य में ऐसी व्यवस्था की गई है कि गर्भवती महिलाओं और उससे संबंधित अन्य उपयोगी सूचनाएं आसानी से और निरंतर मिलती रहे। जैसे अगर किसी गर्भवती महिला का अल्ट्रासाउण्ड होता है तो उसके परिवार, पता, जहां अल्ट्रासाउण्ड कराया गया, उस सेंटर का नाम, पता भी एक डाटा के जरिए संग्रह किया जाता है। उसकी एक आइडी बनाई जाती है। इसका निरंतर फाॅलो-अप होता है। परिस्थितियों के मद्देनजर संबंधित जिलों के उपायुक्त/जिला जज को अपीलीय पदाधिकारी बनाया गया है। सुपरवाइजरी बोर्ड के प्रमुख राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हैं और इसी तरह अन्य स्तरों पर सक्षम पदाधिकारियों, एनजीओ व अन्य को जोड़ा गया है। राज्य के सभी 13 जिलों मे ंपीसीपीएनडीटी सेल बनाया गया है। पीसीपीएनडीटी सेल के बारे में जानकारी देते हुए श्रीमती सरोज ने बताया सेल से जुड़े सभी सदस्यांे को एक्ट से संबंधित नियमों, प्रावधानों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है। ऐसे डाॅक्टर्स, रेडियोलाॅजिस्ट, गाइनेकोलाॅजिस्टों को भी ट्रेनिंग दी गई है और आॅनलाइन विभिन्न आवेदनों, फाॅर्मों को भरने के बारे में बताया गया है। सभी आशाओं/सहिया को भी प्रशिक्षित किये जाने का क्रम जारी है। सोनोग्राफी मशीन वेंडर्स और मशीन विक्रेताओं को भी इस कार्यक्रम से जोड़ा जा रहा है। इस तरह की मशीन की किसी स्तर पर खरीदारी, बिक्री से संबंधित सूचनाएं भी आॅनलाइन रहे, इस पर जोर दिया गया है। लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिहाज से रेडियो जिंगल/गाने और बस पैनल, चलंत प्रचार वाहनों का उपयोग किया जा रहा है। अखबारों, चैनलों पर विज्ञापनों के जरिए भ्रूण हत्या पर रोक और लड़कियों को प्रोत्साहन दिए जाने के संबंध में प्रचार- प्रसार किया जा रहा है। श्रीमती सरोज के अनुसार राज्य के 52 सरकारी काॅलेजों में युवा विद्यार्थियों को भी प्रशिक्षित किया जाना है। उन्हें संवेदनशील बनाना है। यूथ डे, विमेंस डे के जरिए भी ऐसे ही प्रयास होने हैं। इसके अलावा प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन जैसे काम करने वाले अल्ट्रासाउण्ड सेंटर्स की जांच-पड़ताल पर भी जोर दिया गया है। इसके तहत एसआइएमसी द्वारा चार जिलों हरिद्वार, चमोली, रूद्रप्रयाग और पौड़ी में जांच अभियान चलाया गया और 6 मशीनों को सील किया गया है। अब तक कुल मिलाकर 17 मशीनों को सील किया गया है। 30 केंद्रों का निबंधन रद्द किया गया है। अदालतों में 5 केस के उपर सुनवाई चल रही है। पर इतने भर से बात नहीं बनने वाली। हम सबों को अपने दायित्वों को संवेदनशीलता के साथ निभाना होगा।
डा सरोज नथानी
नोडल आॅफिसर, उत्तराखंड पीसीपीएनडीटी सेल
महत्वपूर्ण बिंदु:
1. नियमित तौर पर 0-6 वर्ष के आयु के बच्चों के अनुपात की निगरानी आवश्यक है।
2. एमटीपी एक्ट के तहत एमटीपी के प्रावधानों का अनुसरण हो।
3. एमटीपी के प्रावधानों के साथ-साथ गर्भपात संबंधी आंकड़ों का लेखा-जोखा भी दुरूस्त रखें।
4. फाॅर्म -एफ के आॅनलाइन भरे जाने की व्यवस्था तय करायी जाये।
5. दोषियों और पीडि़तों के मामले में उपयुक्त सुरक्षा, दायरे के प्रावधानों का ध्यान रखें।
6. सभी अल्ट्रासाउण्ड मशीनों में ‘एक्टिव ट्रेकर डिवाइस’ का प्रयोग हो।
7. अल्ट्रासाउण्ड सेंटरों की नियमित तौर पर निगरानी हो।
भोजनावकाश सत्र के बाद धनबाद से आयी फागुनी देवी ने अपनी व्यथा सुनाई। कहा कि वह एक हरिजन महिला है। शादी के बाद जब वह गर्भवती हुई तो उसके सुसराल वालों ने जबर्दस्ती उसक गर्भ जांच कराई। बेटी होने की संभावना पर उसे कोई दवा पिलायी गयी। बच्ची गर्भ में मर गयी। इसके खिलाफ जब थाने में केस दर्ज कराया तो केस उठाने का दबाव बनाया गया। अंततः पति को जेल भी हुआ। एक माह के बाद वह बाहर आया। और अब उस पर ही चोरी का केस दर्ज करा दिया गया है। ऐसी स्थिति में वह क्या करे? जब कोई उसकी मदद करने की कोशिश करता है तो उसे भी धमकाया जाता है। अब भी वह गर्भवती है, ऐसी स्थिति से कैसे बाहर निकले? चर्चा को आगे बढ़ाते हुए यूनिसेफ की हेल्थ स्पेशलिस्ट डाॅ. मधुलिका जोनाथन ने पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को रेखांकित किया। विमेन पावर नेटवर्क और जिला स्वास्थ्य प्रबंधन की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि जो भी प्रयास इस संदर्भ में हो रहे हैं, वे किस तरह के हैं और कितने प्रभावी हैं, यह देखना जरूरी है। समुदाय के साथ-साथ राजनीति से जुड़े लोगों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं और दूसरों को प्रशिक्षित करते हुए उन्हें संवेदनशील और जवाबदेह बनाने के प्रयासों पर काम निरंतर करते रहना होगा। पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत निबंधित क्लिनिकों द्वारा भरे जाने वाले फाॅर्म-एफ को निरंतर देखना और उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। ऐसे कामों के लिए आशा, सहिया, पंचायतों को जोड़ना और उन्हें सक्रिय बनाना कारगर होगा। गर्भवती महिला की पहचान, उसकी निरंतर देखभाल, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और उनके निदान जैसे घटनाक्रमों की निगरानी करनी होगी। अगर कहीं प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन जैसी घटनाएं किसी क्षेत्र में हो रही हैं तो इसमें शामिल लोगों और उनके बीच कायम कडि़यों को तोड़ने का काम करना होगा। विमेन पावर नेटवर्क को प्रभावी बनाने की कोशिश करनी होगी।
मधुलिका जोनाथन, यूनिसेफ, झारखण्ड
प्रमुख बिंदु:
1. एनजीओ, समुदाय आधारित संगठन, चिकित्सक और मेडिकल/डाॅक्टर्स एसोसिएशन व अन्य के प्रयास, योगदानों पर नजर रखना होगा।
2. समुदाय (विशेषतः नेतृत्वकर्ता) को संवेदनशील बनाने होंगे।
3. स्थानीय प्रशासन ( उपायुक्त, एसडीओ व अन्य) की भूमिका आवश्यक है।
4. सीमावर्ती जिलों में अंतरराज्यीय सहयोग के द्वारा गर्भवती महिलाओं के मामले में समुचित सूचनाओं का संग्रहण करना होगा।
5. उपयुक्त संस्थाओं/संस्थानों के द्वारा पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार भरे गये फाॅर्म-एफ का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए। अद्यतन स्थितियों पर भी ध्यान रखना होगा।
6. प्रताडि़त की जा रही गर्भवती महिलाओं के मामले में दोषियों की परख और शिकायतकर्ता महिला के मामले में किए जा रहे प्रयासों पर लगातार नजर रखनी होगी।
7. अदालतों में प्रभावित गर्भवती महिला के मामले में केस जाने पर उसे वहां भरपूर सहयोग मिलने और ससमय न्याय मिल पाने की स्थिति की समीक्षा करते रहनी होगी।
8. लिंग जांच अपराधों से जुड़ी कडि़यों को तोड़ने पर काम होना चाहिए।
9. जमीनी स्तर पर काम करने वालों और पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं और जन्म दर की स्थिति पर नजर हो।
10. न्यायिक सेवा से जुड़े लोगों, सदस्यों, जिला विधिक सेवा प्राधिकार और अन्य उपयुक्त स्रोतों के बीच जागरूकता और प्रशिक्षण का प्रयास हो।
11. किसी खास व्यक्ति, परिवार, समुदाय, जातियों में अगर जन्म दर असमान दिखे तो इसके कारणों की पहचान की जाए।
12. स्थानीय प्रशासन द्वारा प्राप्त आवेदनों का निबंधन हो।
13. प्राप्त आवेदनों पर अनुदान देने, उन्हें खारिज करने के संबंध में दिशा-निर्देश हो।
14. स्थानीय प्रशासन द्वारा जेनेटिक काउंसिलिंग सेंटर, जेनेटिक क्लिनिक और जेनेटिक लैबोरेटरी के स्तर को सुधारने पर कार्य हो।
15. स्थानीय प्रशासन द्वारा अदालतों में चल रहे मामलों की गतिशीलता की समीक्षा हो।
16. अवैध क्लिनिकों, अल्ट्रासाउण्ड केंद्रों की जांच-पड़ताल, निगरानी और दण्ड के प्रावधानों के अनुपालन पर स्थानीय प्रशासन जवाबदेही तय करे।
17. प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन के दोषों के बारे में प्रशासन द्वारा समुचित प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है।
18. संदिग्ध केंद्रों, क्लिनिकों के बारे में सलाहकार समिति की रिपोर्ट, अनुशंसा पर कार्रवाई करने की दिशा में प्रशासनिक भूमिका भी उपयोगी होगी।
19. सलाहकार समिति और विमेंस पावर नेटवर्क के बीच बेहतर समन्वय हो।
20. महिला नेटवर्क के संदर्भ में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।
आखिरी सत्र में झारखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से आए पुलिस महिला कोषांग, जिला सिविल सर्जन/ जिला समिति, एनजीओ प्रतिनिधियों और अन्य उपस्थित प्रतिभागियों को तीन ग्रुपों ए, बी व सी में बांट दिया गया। तीनों ग्रुप में तकरीबन 20-20 सदस्य शामिल थे। निर्धारित आधे घंटे के दौरान तीनों ग्रुप के सदस्यों ने आपसी विचार-विमर्श और अपने-अपने तजुर्बाें के आधार पर अपने सुझाव, मतों को लिखित रूप में उतारा। इसके बाद ग्रुप ए ने अपने पक्ष रखते हुए कहा कि प्रसव पूर्व जांच, भ्रूण हत्या जैसी स्थितियों के लिए महिलाएं भी जिम्मेदार हैं। उनकी मानसिकता में बदलाव पर काम करने होंगे। उन्हें शिक्षित करना होगा। ऐसे अवांछित काम करने वाले डाॅक्टरों का निबंधन रद्द कर देना चाहिए। सिलेबस में भी इस विषय को शामिल किया जाए। पुलिस को महिला मामलों के केस के निराकरण में संवेदनशील बनाना होगा। सलाहकार समिति का गठन हो जिसमें हर क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हों।
सम्मेलन में प्रतिनिधियों की राय
ग्रुप ए के प्रमुख सुझाव
1. महिलाओं को उनके लिए तय कानूनी प्रावधानों, अधिकारों के बारे में शिक्षित किया जाना होगा।
2. मेडिकल के सिलेबस में प्रसव पूर्व जांच और भ्रूण हत्या न करने के मुद्दे को शामिल किया जाए।
3. मेडिकल के छात्रों द्वारा शपथ पत्र में उनके द्वारा यह सुनिश्चित कराया जाये कि वे लिंग जांच नहीं करेंगे।
4. दोषी चिकित्सकों पर धारा 302 लगाया जाए। धारा 312 और 316 के प्रावधान को भी आरोपित किया जाए।
5. पंचायत स्तर पर दहेज उन्मूलन, महिला उत्पीड़न और महिला हित से जुड़े विषयों के प्रति जागरूकता लायी जाये।
6. शादी के समय वर-वधु शपथ लें कि वे लिंग जांच नहीं कराएंगे।
7. महिला शिकायतकर्ता के लिए निःशुल्क कानूनी प्रावधानों की व्यवस्था तय हो।
8. सलाहकार समिति का गठन/पुनर्गठन और ससमय बैठक हो।
9. सिविल सोसाईटी लिंग जांच करने वाले केंद्रों की पहचान करे और ऐसी सूचनाओं को उपयुक्त जवाबदेह व्यक्तियों तक पहुंचाये।
10. सोसाईटी को ऐसे प्रयासों में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिये। दोषियों, अपराधियों को हतोत्साहित करना चाहिये।
ग्रुप बी ने सुझाव देते हुए कहा कि धार्मिक गुरुओं, संतों की मदद भी कन्या जन्म को प्रश्रय देने के संदर्भ में ली जानी चाहिए। समाज के प्रमुख बुद्धिजीवियों, व्यक्तियों का लाभ लिया जाना चाहिए। लड़कियों को सरकार की ओर से समूची शिक्षा निःशुल्क दिए जाने की व्यवस्था भी हितकर प्रयास हो सकता है।
ग्रुप बी के प्रमुख सुझाव
1. बालिकाओं की समाज में जरूरत के प्रति नजरिया और माहौल बनाने के लिए लगातार प्रयास हों
2. स्कूल, काॅलेज के छात्रों को प्रेरित करें।
3. स्वयंसहायता समूह, एनजीओ, पीआरआइ सदस्यों का सहयोग लिया जाये।
4. विवाहित परिवारों को भी प्रेरणा दी जाए।
5. दहेज प्रथा का व्यापक स्तर पर विरोध हो।
6. नवविवाहित परिवारों की सूचना और गर्भवती महिला पर नजर रखा जाना।
7. लड़कियां नहीं तो दुल्हन नहीं, दुल्हन नहीं तो मां नहीं और मां नही ंतो सुना आंगन और सुना संसार, के संदेश को फैलाना।
8. समाज के सभी वर्गों, जिम्मेदार व्यक्तियों के लिए जवाबदेही तय करना।
ग्रुप सी ने पुलिस, एनजीओ, महिला कोषांग और सिविल सर्जन को केंद्र में रखते हुए विभिन्न बिंदुओं को रखा। महिला शिकायतकर्ता के आवेदन पर ससमय सुनवाई और जांच हो। एनजीओ के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए। परिवार मध्यस्थता केंद्र की स्थापना और उनको प्रोत्साहन मिले। राज्य के विभिन्न हिस्सों में जरूरतमंद महिलाओं, बच्चों के लिए आवासीय सुविधा केंद्र खुले। अल्ट्रासाउण्ड मशीन रखने वालें केंद्रों निबंधन निश्चित तौर पर कराया जाए। रेडियोलाॅजिस्ट और डाॅक्टरों को भी नैतिक, सामाजिक स्तर पर संवेदनशील बनाया जाए।
ग्रुप सी के प्रमुख सुझाव
1. पुलिस महिला शिकायतकर्ता को सम्मान और सुरक्षा दे।
2. महिला शिकायतकर्ता के आवेदनोें, मामलों पर तत्परता दिखाये, त्वरित कार्रवाई करे।
3. मामले का ससमय निपटारा करने में गति दिखाए।
4. विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत एनजीओ को समुचित प्रशिक्षण मिले। निगरानी समिति को जागरूक करें।
5. पंचायत प्रतिनिधियों के साथ समन्वय बनाया जाये।
6. अनाथ बच्चों, महिलाओं के लिए आवासीय और स्वास्थ्य सुविधाओं वाले केंद्र बनें।
7. शैक्षणिक रूप से ऐसे केंद्रों में रहने वाली महिलाओं को सबल और आत्मनिर्भर बनाया जाए।
8. अल्ट्रासाउण्ड मशीन रखने वालों के लिए निबंधन अनिवार्य शर्त हो। इसके लिए सहिया/आशा, पंचायत प्रतिनिधियों, एनजीओ की मदद लें।
9. निर्धारित फाॅर्मेट का भराव और उनका संग्रहण, विश्लेषण।
10. अल्ट्रासाउण्ड केंद्रों का लगातार निरीक्षण। गलती किए जाने पर दण्ड का प्रावधान।
11. जिला सलाहकार समिति की लगातार बैठक तय हो।
12. अल्ट्रासाउण्ड केंद्र खोले जाने के लिए शुल्क का निर्धारण। .
समापन सत्र को संबोधित करते हुए डाॅ हेमलता मोहन ने कहा कि समाज में हर कोई इस चुनौती का सामना कर रहा है। कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़े भयावह हो रहे हैं। हमें यह परस्पर सुनिश्चित करना है कि जो भी प्रावधान पीसीपीएनडीटी एक्ट में तय किए गए हैं, उस पर जवाबदेही लेते हुए काम करें। हममें से हर कोई सक्षम है, इसका सदुपयोग करें। जहां कहीं अवैध अल्ट्रासाउण्ड सेंटर्स हैं, उसके खिलाफ आगे बढ़ें, उपयुक्त मंच पर शिकायत करें। आवश्यकता पड़ने पर महिला आयोग को लिखें। विमेन पावर नेटवर्क से जुड़ें। इसे मजबूत करें। जो भी सदस्य बनें, वे शपथ लें कि प्रत्येक माह कम से कम तीन ऐसे केस की पहचान करेंगे जिससे पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाया जा सके। विमेंस नेटवर्क के जरिए हमारा प्रयास पंचायत प्रतिनिधियों तक जाने का भी है। अगर हर नागरिक सक्रिय हो जाए तो प्रयास रंग लाएगा। यहां मिले अनुभवांे, सुझावों को महिला आयोग धरातल पर उतारने के लिए पहल करेगा।
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रिपोर्ट प्रस्तुति - अमित कुमार झा, 7209430552,
email-
amitjha17700@gmail.com
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