Tuesday, 16 April 2013

पंचायत पर सर्ड, यूनिसेफ और जिंदल की पहल


पतरातू स्थित जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड पंचायत प्रतिनिधियों का तीन दिवसीय प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ। यह प्रशिक्षण राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, झारखंड सरकार ने आयोजित किया है।
इसमें यूनिसेफ एवं जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड का सहयोग प्राप्त है।

इसमें जयनगर, लबगा एवं तालाटांड पंचायतों के निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों एवं कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
प्रारंभ इस प्रशिक्षण के समन्वयक डाॅ विष्णु राजगढि़या ने पंचायत प्रतिनिधियों को विभिन्न विभागों द्वारा सौंपे गये अधिकारों एवं शक्तियों के संबंध में जानकारी दी। साथ ही, पतरातू प्रखंड तथा तीनों पंचायतों में विभिन्न सरकारी योजनाओं के समुचित अमल के संबंध में भी प्रशिक्षण दिया।

प्रशिक्षण का उद्घाटन सर्ड के निदेशक श्री आर.पी.सिंह ने किया। साथ में यूनिसेफ प्रतिनिधि श्रीमती अनुपम श्रीवास्तव तथा जिंदल स्टील के पतरातू प्रमुख श्री मनीष कुमार झा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। पतरातू पंचायत समिति की प्रमुख फोचवा देवी, उपप्रमुख अनिल कुमार सिंह के साथ ही पंचायतों के मुखिया, वार्ड सदस्य, पंचायत सेवक, जनसेवक, रोजगार सेवक इस प्रशिक्षण में शामिल हुए।
जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के सीएसआर प्रमुख श्री कुमार अमन के अनुसार कंपनी ने पंचायती राज संस्थाओं को कारगर बनाने के लिए इस प्रशिक्षण में सहयोग दिया है।

उद्घाटन संबंोधन करते हुए सर्ड के निदेशक श्री आर.पी.सिंह ने राज्य के ग्रामीण विकास में पंचायत प्रतिनिधियों की विशिष्ट भूमिका का उल्लेख करते हुए जिंदल कंपनी द्वारा सामुदायिक विकास गतिविधि के तहत पंचायतों और गांवों को सशक्त करने की पहल के लिए धन्यवाद दिया।

जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड पतरातू के प्रेसिडेंट श्री मनीष कुमार झा ने सर्ड एवं यूनिसेफ के सहयोग से ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया। यूनिसेफ की न्युट्रिशन आफिसर श्रीमती अनुपम श्रीवास्तव ने राज्य में खास तौर पर महिलाओं एवं बच्चों के कुपोषण को रोकने संबंधी प्रशिक्षण दिया।
सर्ड के फेकेल्टी श्री दीपंकर श्रीज्ञान ने पंचायत प्रतिनिधियों को विभिन्न जटिल स्थितियों में रणनीति बनाने तथा समुदाय की गोलबंदी के माध्यम से ग्रामीण विकास के संबंध में प्रशिक्षण प्रदान किया। पूर्व सीडीपीओ श्रीमती गीता देवी ने आंगनबाड़ी सेवाओं में पंचायत प्रतिनिधियों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
उद्घाटन समारोह के दौरान सर्ड के निदेशक श्री आर.पी. सिंह ने जिंदल कंपनी के प्रेसिडेंट श्री मनीषकुमार झा तथा अन्य अधिकारियों को दो-दो पुस्तकों का सेट उपहार स्वरूप प्रदान किया।

उल्लेखनीय है कि यूनिसेफ के सहयोग से राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, हेहल, रांची में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर का गठन किया गया है। इसके माध्यम से राज्य में पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने तथा पंचायत प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण संबंधी गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। सेंटर द्वारा राज्य में महिला पंचायत प्रतिनिधियों की सकारात्मक उपलब्धियों पर केंद्रित पुस्तक का भी प्रकाशन किया जा रहा है।
पतरातू पंचायत समिति के उपप्रमुख अनिल कुमार सिंह ने सर्ड, जिंदल एवं यूनिसेफ की इस पहल को क्षेत्र के विकास के लिए एक सकारात्मक उपलब्धि बताया।

Wednesday, 10 April 2013

पीएमआरडीएफ के अनुभव साझा किये जायेंगे


रांची: सर्ड दक्षिणी परिसर में 09 एवं 10 मार्च 2013 को प्रधानमंत्री ग्राम विकास फेलो समूह की समीक्षा बैठक संपन्न हुई। पहले दिन भारत सरकार के इस अनूठे कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य के 17 आइएपी जिलों में कार्यरत पीएमआरडीएफ के कार्यों पर रिपोर्ट की प्रस्तुति एवं समीक्षा हुई। दूसरे दिन इंदिरा आवास योजना में बदलाव हेतु भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित नयी गाइडलाइन पर समूह चर्चा के आधार पर सुझाव संबंधी रिपोर्ट तैयार की गयी।
09 मार्च 2013 को प्रधानमंत्री ग्राम विकास फेलो समूह की समीक्षा बैठक को संबोधित करते हुए सर्ड के निदेशक श्री आर पी सिंह ने झारखंड में ग्रामीण विकास की जटिल चुनौतियों के संदर्भ में युवा फेलोज से केंद्र एवं राज्य सरकार की अनंत अपेक्षाओं की चर्चा करते हुए कहा कि विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में नवाचारी तरीके अपनाने में युवा शक्ति की खास भूमिका सुनिश्चित करने के लिए यह योजना चलायी जा रही है। श्री सिंह ने सुझाव दिया कि झारखंड में फेलोज के बेहतर कार्यों एवं प्रयोगों के संबंध में उन अन्य आइएपी राज्यों के साथ भी सूचनाओं का आदान प्रदान करना चाहिए जहां यह योजना चल रही है। इससे परस्पर सीखने का अवसर मिलेगा। उन्होंने फेलोज के क्रियाकलापों एवं उनसे अपेक्षाओं के संबंध में जिला प्रशासन को स्पष्ट मार्गदर्शिका भेजने की भी आवश्यकता बतायी ताकि फेलोज की क्षमता का सही उपयोग हो सके तथा उन्हें मूल कार्यक्रम में भटकाव से बचाया जा सके। सर्ड निदेशक ने इंदिरा आवास के निर्माण में झारखंड की विशिष्टताओं के अनुरूप बेहतर माडल सुझाने में भी फेलोज की संभावित भूमिका पर चर्चा की।
फेलोज को संबोधित करते हुए यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जाब जकारिया ने कहा कि फेलोज को अपनी खास भूमिका की पहचान करते हुए कहा कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले फेलोज के अनुभव हमारे लिए काफी उपयोगी हैं। इसलिए अगर समीक्षा बैठक के दौरान किसी खास थिमेटिक विषय को फोकस करके उसके क्रियान्वयन में आ रही जटिलताओं तथा उस पर बेहतर विकल्प के ठोस सुझाव लाये जायें तो ग्रामीण विकास में काफी मदद मिलेगी। श्री जकारिया ने ऐसी  विषय केंद्रित बैठक में संबंधित विभाग के प्रमुख अधिकारियों को भी आमंत्रित करने का सुझाव दिया ताकि इनमें आये विचारों के सभी पहलुओं पर गंभीर चर्चा एवं उन पर क्रियान्वयन संभव हो सके। श्री जकारिया ने कहा कि फेलोज को समस्याओं के बजाय समाधान की चर्चा करनी चाहिए। जिले के वरीय अधिकारी को समस्याएं बताने वाले बहुत लोग मिलते हैं। लेकिन उसका समाधान क्या होना चाहिए, ऐसे सुझाव देने से ही फेलोज अपनी विशिष्ट भूमिका निभा सकेंगे। श्री जकारिया ने महज इनफोरमेशन देने के बजाय एक्शनेबल इनफोरमेशन देने का सुझाव दिया। उन्होंने इसके लिए डूएबल थिंग शब्द का भी इस्तेमाल किया यानी ऐसे सुझाव जिनसे यह पता चलता हो कि आखिर करना क्या है और किस तरह करना है। श्री जकारिया ने यह भी कहा कि आज फेलो साथियों को ग्रामीण क्षेत्रों में काम का जो अवसर मिल रहा है, वह आने वाले जीवन में उनकी सबसे बड़ी पूंजी हो जायेगी। जीवन के जिस भी क्षेत्र में वे जायेंगे, वहां उन्हें ये अनुभव का आयेंगे तथा आज से बीस साल बाद वे जाने या अनजाने में आज के अनुभवों का उल्लेख करेंगे या उनसे अप्रत्यक्षतः निर्देशित होंगे। इसलिए आज फेलोज को अधिक से अधिक जमीनी अनुभव हासिल करने का प्रयास करना चाहिए।
बैठक का संचालन पीएमआरडीएफ के राज्य फेसीलिटेटर श्री सुबीर कुमार दास ने किया। झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर के राज्य समन्वयक डा विष्णु राजगढि़या, टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेस के फेकेल्टी श्री ई. टोप्पो तथ सर्ड के फेकेल्टी डाॅ एसपी सिंह ने भी फेलोज के साथ चर्चा की।
इंदिरा आवास योजना पर नयी गाइडलाइन संबंधी चर्चा के सत्र का संचालन करते हुए सर्ड की फेकेल्टी इंजीनियर श्रीमती शुभा कुमार ने इस योजना के क्रियान्वयन की विभिन्न जटिलताओं पर चर्चा की। इसके बाद फेजोज ने इस योजना के विभिन्न पहलुओं पर समूह चर्चा के माध्यम से आये सुझावों के आधार पर समेकित रिपोर्ट प्रस्तुत की।

स्वास्थ्य, पोषण एवं स्वच्छता के लिए पंचायत प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण

रांची: झारखंड सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा पंचायत राज संस्थाओं के लिए कार्य, कर्मी एवं निधि का हस्तांतरण करने संबंधी संकल्प निर्गत किये गये हैं। इसके आलोक में पंचायत प्रतिनिधियों, एनजीओ प्रतिनिधियों तथा पंचायत सेवकों के क्षमता निर्माण हेतु प्रशिक्षण आवश्यकता को देखते हुए मार्च 2013 में तीन विशेष प्रशिक्षण आयोजित किये गये। तीन-तीन दिनों के इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में लगभग 125 प्रशिक्षुओं ने हिस्सा लेकर सरकार द्वारा सौंपे गये दायित्वों को पूरा करने संबंध में जानकारी हासिल की।
इस प्रशिक्षण का संचालन राज्य ग्रामीण विकास संस्थान की ओर से झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर ने किया। इस सेंटर का गठन यूनिसेफ, सर्ड, मंथन युवा संस्थान तथा झारखंड राज्य महिला आयोग ने किया है। यह सेंटर सर्ड के दक्षिणी परिसर, हेहल में स्थापित है।

पहला प्रशिक्षण दिनांक 07 मार्च से 09 मार्च 2013 तक कांके प्रखंड मुख्यालय में संपन्न हुआ। दूसरा एवं तीसरा प्रशिक्षण सर्ड दक्षिणी परिसर में 14 से 16 मार्च तथा 18 से 20 मार्च को संपन्न हुआ। इन प्रशिक्षणों में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर के राज्य समन्वयक डा विष्णु राजगढि़या ने फेसीलिटेटर की भूमिका निभायी।
कांके में आयोजित प्रशिक्षण में प्रखंड विकास पदाधिकारी श्री एनके सिंह, सीडीपीओ श्रीमती कृष्णा टोप्पो, सीटीआइ के फेकेल्टी श्री अजीत कुमार सिंह, श्री अशोक कुमार, पंचायत राज कंसल्टेंट श्री ओमप्रकाश, एनआरएचएम की राज्य समन्वयक श्रीमती अकय मिंज, सामाजिक कार्यकर्ता श्री आरके चैधरी ने अलग अलग सत्रों में प्रशिक्षण प्रदान किया।

सर्ड परिसर में आयोजित आवासीय प्रशिक्षणों के दौरान सर्ड के फेकेल्टी श्री दीपंकर श्रीज्ञान, श्रीमती शुभा कुमार एवं डा. वंदना प्रसाद, भारत निर्माण सेवक कार्यक्रम के राज्य समन्वयक डा. एम पी सिंह, यूनिसेफ की न्युट्रीशन आफिसर श्रीमती अनुपम श्रीवास्तव, यूनिसेफ की न्यूट्रीशन विशेषज्ञ श्रीमती दीपिका शर्मा, सुप्रीम कोर्ट कमिश्नर के राज्य सलाहकार श्री बलराम, मनरेगा के लोकपाल श्री गुरजीत सिंह, एनआरएचएम की राज्य समन्वयक श्रीमती अकय मिंज, हाईकोर्ट के अधिवक्ता श्री अनूप अग्रवाल, सर्ड के कन्सल्टेंट श्री राजन कुमार सिंह, सीटीआइ के फेकेल्टी श्री अजीत कुमार सिंह, श्री अशोक कुमार, मंथन युवा संस्थान के समन्वयक श्री सुधीर पाल, पूर्व सीडीपीओ श्रीमती गीता देवी, यूनिसेफ की समाज कल्याण कंसल्टेंट श्रीमती दिव्या तिग्गा ने अलग अलग सत्रों में प्रशिक्षण प्रदान किया।

18 से 20 मार्च के प्रशिक्षण में सरायकेला जिले के गम्हरिया प्रखंड में आधुनिक पावर प्लांट ग्रूप के आसपास के गांवों में पंचायत सशक्तिकरण के प्रयास में जुटी सीएसआर टीम के नेतृत्व में आये पंचायत प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया। इस दौरान कंपनी के वरीय सीएसआर अधिकारी श्री एसके सिन्हा ने भी ग्रामीण विकास संबंधी गतिविधियों की जानकारी देते हुए पंचायतों की विशिष्ट भूमिका पर प्रशिक्षण दिया। 18 से 20 मार्च के प्रशिक्षण में धनबाद एवं सरायकेला खरसावां जिले के पंचायत प्रतिनिधियों एवं एनजीओ प्रतिनिधियों के साथ ही कई प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारी भी शामिल हुए। 14 से 16 मार्च के प्रशिक्षण में रांची जिले के प्रशिक्षणार्थी शामिल थे।
प्रशिक्षण के दौरान प्रतिनिधियों ने राज्य के ग्रामीण विकास में अपनी भूमिका कारगर करने के लिए ऐसे प्रशिक्षण को बेीद जरूरी बताया।

पंचायत सदस्यों के ही पास है जादुई छड़ी

डॉ विष्णु राजगढ.िया 
राज्य समन्वयक, झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर

झारखंड में पंचायती राज अब वयस्क होने की ओर बढ. रहा है. इसलिए जरूरी है कि पंचायती राज से जु.डे समस्त लोग अपने दायित्वों एवं शक्तियों के बारे में कानून एवं नियम की वास्तविक जानकारी रखें. महज सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करने के कारण कुछ लोगों में अब तक गलत धारणाएं बनी हुई हैं. बेहतर होगा कि अब हर पहलू को गंभीरता से समझें.

एक प्रमुख गलतफहमी यह है कि सारे अधिकार मुखिया, प्रमुख एवं जिप अध्यक्ष को मिले हैं. इसी भ्रम के कारण तीनों ही स्तर के कतिपय सदस्यों में मायूसी दिखती है. उन्हें लगता है कि उनके पास कोई शक्ति नहीं. उनकी इस गलत धारणा को वैसे लोग बढ.ावा दे रहे हैं, जो पंचायती राज को कमजोर संस्था बनाये रखना और मुखिया को बिचौलिया बनाना चाहते हैं. 

सच तो यह है कि पंचायत राज की जादुई छड़ी तो तीनों स्तर के सदस्यों के ही पास हैं. जरूरत है इसे सही तरीके से समझने और उसका सकारात्मक तरीके से उपयोग करके कुछ मॉडल पेश करने की, ताकि जो सदस्य अभी खुद को कमजोर समझ रहे हैं, उन्हें अपने शक्तियों का पता चल सके. वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य एवं जिला परिषद सदस्य के अधिकारों एवं शक्तियों को समझने के लिए पंचायत राज अधिनियम एवं नियमावलियों को समझना जरूरी है. आइए, हम कुछ प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा करें.

अधिनियम में विशिष्ट प्रावधान नहीं

झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 की धारा 73 में मुखिया, उप-मुखिया, प्रमुख, उप-प्रमुख, जिला परिषद् अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की शक्तियों, कृत्य एवं दायित्व संबंधी प्रावधान किये गये हैं. 

यह सच है कि अधिनियम में वार्ड, पंचायत समिति एवं जिला परिषद सदस्यों की शक्तियों के संबंध में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं किये गये हैं. यहां तक कि तीनों ही स्तर पर द्वितीय पदधारी यानी उप-मुखिया, उप-प्रमुख एवं जिला परिषद उपाध्यक्ष के लिए भी कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है, बल्कि मूलत: प्रथम पदधारी की अनुपस्थिति में अथवा उनके द्वारा सौंपे गये दायित्वों के अनुपालन का ही प्रावधान है.

नीचे से ऊपर प्रवाहित होती है शक्तियां

लेकिन इसके कारण वार्ड, पंचायत समिति एवं जिला परिषद सदस्यों की भूमिका कम अथवा सीमित नहीं होगीं. पंचायती राज व्यवस्था में समस्त शक्तियां नीचे से ऊपर की ओर प्रवाहित होती हैं. इसमें आम नागरिक को ग्राम सभा के माध्यम से पंचायती राज व्यवस्था के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका दी गयी है. यहां तक कि निर्वाचित मुखिया एवं वार्ड सदस्यों को वापस बुलाने तक का अधिकार आम नागरिकों को दिया गया है. इसी तरह, वार्ड सदस्यों को अधिकार है कि वे उप-मुखिया अथवा मुखिया को हटा सकें. पंचायत समिति के सदस्यों को उप-प्रमुख या प्रमुख को पद से हटाने का अधिकार है. जिला परिषद के सदस्य चाहें तो जिला परिषद के अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष को पदच्यूत कर दें.

इस तरह, नीचे से ऊपर की ओर प्रवाहित होने वाली शक्तियों की इस व्यवस्था में संस्था के प्रमुख के बतौर मुखिया, प्रमुख एवं जिला परिषद अध्यक्ष द्वारा जिन शक्तियों का उपयोग किया जाता है, उनका मूल स्रोत संबंधित संस्था के सदस्य ही हैं.

पंचायती राज अधिनियम में इन तीनों स्तरों के सदस्यों की शक्तियों के लिए अलग से अधिकारों का उल्लेख नहीं किये जाने का कारण यही है कि इस कानून ने पंचायती राज संस्थाओं को शक्ति दी है, न कि किसी पदधारी को. पंचायतों को शक्तियां देने संबंधी विभित्र विभागों के संकल्पों एवं आदेशों में भी यह बात देखी जा सकती है. इनमें तीनों ही स्तरों पर पंचायती राज संस्थाओं का उल्लेख किया गया है न कि किसी पदधारी का. 

दायित्वों का उल्लेख जिम्मेदार बनाने के लिए

पंचायती राज अधिनियम में तीनों स्तर की संस्थाओं के प्रमुख या उप-प्रमुख के दायित्वों का उल्लेख करने का आशय इनके प्रधान के बतौर उनके दायित्वों को स्पष्ट करना है. यह उन्हें कोई विशिष्ट एकाधिकार नहीं सौंपा गया है बल्कि विभित्र तरीकों से उसे अपने सदस्यों के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है. पंचायती राज में वास्तविक अधिकार को ग्राम सभा के आम सदस्यों तथा तीनों स्तर के निर्वाचित सदस्यों को ही सौंपे गये हैं. 

इस बात को झारखंड पंचायत (बैठक तथा कामकाज संचालन प्रक्रिया) नियमावली 2011 के प्रमुख प्रावधानों से समझाना आसान होगा. इसके अनुसार पंचायत के तीनों ही स्तर की किसी भी बैठक में रखे गये सभी प्रस्ताव उपस्थित सदस्यों के बहुमत से ही स्वीकार किये जायेंगे. इससे स्पष्ट है कि सदस्यों की स्वीकृति के बगैर मुखिया, प्रमुख या जिला परिषद अध्यक्ष कोई भी निर्णय लेने में सक्षम नहीं है.

कार्यवाही विवरण में होता है जिक्र

नियम है कि किसी भी बैठक के बाद उसके रजिस्टर में बैठक की कार्यवाही का पूरा विवरण लिखा जायेगा. इसमें यह भी उल्लेख होगा कि किसी संकल्प के पक्ष या विपक्ष में कौन सदस्य थे या कौन तटस्थ रहे. इस कार्यवाही की प्रतिलिपि दस दिन के भीतर सदस्यों को उपलब्ध कराने का भी प्रावधान है. इस तरह तीनों ही स्तर के सदस्यों को यह बात रिकार्ड में लाने का भी अधिकार है कि उन्होंने किन विषयों पर सही या गलत का पक्ष लिया. यह बात कालांतर में उनके लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज होगी. इस वजह से पदधारी भी कोई गलत प्रस्ताव लाने में हिचकेंगे.

ध्यानाकर्षण का अधिकार

ध्यानाकर्षण का अधिकार भी काफी महत्वपूर्ण है. नियमावली के अनुसार तीनों स्तर का कोई भी सदस्य बैठक से कम से कम पांच दिन पहले किसी विषय पर मुखिया, प्रमुख या अध्यक्ष का ध्यानाकर्षण कर सकेगा या उसके किसी कार्य की प्रगति के संबंध में कोई जानकारी मांग सकेगा. इस तरह हर सदस्य किसी भी समुचित विषय पर पहल करने का अधिकार रखता है. 

इसी तरह, सदस्यों को बैठक में कोई प्रस्ताव प्रस्तुत करने का भी अधिकार है. साथ ही, कोई भी सदस्य पंचायत के कार्य के निष्पादन में की गयी किसी भी उपेक्षा, पंचायत की निधि या संपत्ति के अपव्यय या दुरुपयोग या पंचायत क्षेत्र के भीतर किसी संकाय की आवश्यकताओं की ओर सभापति का ध्यान आकृष्ट कर सकेगा या सुझाव देगा.
बैठक में कोई प्रस्ताव प्रस्तुत करने या उस पर बोलने का अधिकार मुखिया, प्रमुख एवं अध्यक्ष को भी उतना ही होगा, जितना अन्य सदस्यों को है.

इसके अलावा, झारखंड पंचायत (मुखिया, उप-मुखिया, प्रमुख, उप-प्रमुख, जिला परिषद् अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की शक्तियां एवं कृत्य) नियमावली 2011 को देखना भी आवश्यक है. इसके अनुसार मुखिया का पहला काम है ग्राम पंचायत द्वारा पारित प्रस्तावों का क्रियान्वयन करना. प्रमुख एवं जिप अध्यक्ष के लिए भी यही नियम है. स्पष्ट है कि तीनों स्तर पर मूल शक्तियां इनके सदस्यों के माध्यम से पंचायती राज संस्था में निहित हैं, न कि व्यक्तियों या पदधारी में. पदधारी तो उन दायित्वों के क्रियान्वयन के प्रति उत्तरदायी हैं. 

स्थायी समितियों का प्रावधान

झारखंड पंचायत (स्थायी समिति के सदस्यों की पदावधि और कामकाज संचालन की प्रक्रिया) नियमावली 2011 में भी सदस्यों की शक्तियों का पता चलता है. पंचायत के तीनों स्तर पर सात-सात स्थायी समिति बनाने का प्रावधान है. प्रत्येक सदस्य को किन्हीं दो का सदस्य बनने का अधिकार है. ऐसी समितियों के माध्यम से उन्हें उस खास विषय में अपनी विशेष भूमिका निभाने की शक्ति प्राप्त है. स्थायी समिति की बैठक में निर्णय बहुमत से लिया जायेगा. ऐसे निर्णयों को ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद की बैठक में विचारार्थ पेश किया जायेगा.

सदस्यों की एक अन्य शक्ति का उल्लेख भी जरूरी है. वह है - पंचायत द्वारा अंतिम रूप से निबटाये गये विषयों पर पुनर्विचार का अधिकार. अगर पंचायत के किसी निर्णय पर पुनर्विचार करना हो, तो इसके लिए मतदान योग्य सदस्यों के कम से कम तीन चौथाई सदस्यों की लिखित सहमति आवश्यक होगी.

अंत में एक अनुरोध 

इन बिंदुओं से स्पष्ट है कि पंचायत के तीनों स्तर पर सदस्यों को ही मूल शक्तियां प्रदान की गयी हैं. झारखंड में पंचायती राज की स्थापना की इस महत्वपूर्ण दौर में जरूरी है कि तीनों स्तरों पर कुछ सदस्य पूरी गंभीरता के साथ अपने दायित्वों को समझते हुए सकारात्मक प्रयोग करें. ऐसे सदस्यों को राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, हेहल, रांची में यूनिसेफ के सहयोग से स्थापित झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर द्वारा हर संभव तकनीकी सहायता प्रदान की जायेगी. इस संबंध में प्रशिक्षण हेतु भी संपर्क किया जा सकता है.

Tuesday, 9 April 2013

पंचायतों को मिली शक्तियां


रांची: 18 फरवरी 2013 - पंचायत प्रतिनिधियों को विभिन्न विभागों द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर आज विकास भारती परिसर में राज्यस्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ। यह कार्यक्रम विकास भारती तथा झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कहा कि झारखंड में जब अन्य संस्थाओं की कार्यक्षमता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हों, तब पंचायती राज संस्थाओं से ही कोई नई उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने कहा कि पंचायत प्रतिनिधियों को राज्य के त्वरित विकास की इच्छाशक्ति लेकर काम करना चाहिए ताकि राज्य को नया नेतृत्व मिल सके।

विकास भारती के सचिव अशोक भगत ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि पंचायत राज चुनावों के दो साल पूरे हो जाने के बाद अब हम एक नये दौर में प्रवेश कर चुके हैं। आज की परिस्थितियों के अनुकूल हमें पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करना जरूरी है। यही कारण है कि विकास भारती ने झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर के साथ समन्वय के आधार पर पंचायत प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण का यह नया प्रयोग शुरू किया है।

झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर के राज्य समन्वयक डा. विष्णु राजगढि़या ने ‘पंचायतों को कृषि एवं समाज कल्याण में मिले अधिकार’ विषय पर पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया। उन्होंने इन दो विभागों के अलावा स्वास्थ्य, मानव संसाधन, पेयजल, ग्रामीण विकास इत्यादि विभागों में भी पंचायत प्रतिनिधियों को कार्य, कर्मी एवं निधि के हस्तांतरण का विस्तार से प्रशिक्षण दिया। डाॅ. राजगढि़या ने कहा कि यह धारणा गलत है कि पंचायत प्रतिनिधियों को अधिकार नहीं मिले हैं बल्कि सच यह है कि ग्रामीण विकास से जुड़े हर काम में पंचायतों की ही प्रमुख संवैधनिक भूमिका है।

प्रशिक्षण में राज्य भर के लगभग 100 प्रतिनिधि शामिल हुए। ट्राईबल स्टडी सेन्टर के निदेशक श्री शिव शंकर उरांव ने संचालन किया। जन शिक्षण संस्थान के विषय विशेषज्ञ श्री निखिलेश मैती तथा बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य रंजना चैधरी ने भी विचार रखे।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पंचायत प्रतिनिधियों ने परस्पर चर्चा के आधार पर झारखंड पंचायत मंच के गठन का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया। इसके पदाधिकारियों का चयन भी सर्वसम्मति से किया गया। जल्द ही इसकी बैठक करके इसको औपचारिक स्वरूप दिया जायेगा। झारखंड पंचायत मंच के गठन का उद्देश्य राज्य के पंचायत प्रतिनिधियों की क्षमता बढ़ाने व उपलब्धियों को सामने लाने हेतु एकजुट करना है।
इसकी जानकारी विकास भारती के मीडिया प्रभाग द्वारा दी गई।

झारखंड में पंचायत राज के दो साल पर कार्यशाला

रांची:  झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर  ने दिनांक 08 फरवरी 2013 को होटल अशोका में ‘‘झारखंड में पंचायत राज’’ दो साल के अनुभव विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों, पंचायत राज विशेषज्ञों एवं विभागीय अधिकारियों ने दो साल के अनुभवों को साझा किया।
राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के निदेशक श्री आर. पी. सिंह ने सर्ड परिसर में स्थापित झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर को राज्य में पंचायत सशक्तिकरण एवं खासकर महिला प्रतिनिधियों के क्षमतावर्द्धन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
इस दौरान राज्य के पूर्व मुख्य सचिव डा. ए.के. सिंह ने पंचायत राज पर दो साल के समाचारों के संकलन पर आधारित प्रकाशन का विमोचन किया।

कार्यशाला में यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जाब जकारिया ने पंचायत प्रतिनिधियों से स्पष्ट कहा कि आप कोई एनजीओ या प्राइवेट संगठन नहीं बल्कि खुद सरकार हैं। इस तरह आप प्रोटोकोल में संबंधित पदाधिकारियों एवं प्रशासन से ऊपर हैं। जिस तरह एक सरकार केंद्र में और दूसरी सरकार राज्य में होती है, ठीक उसी तरह तीसरी सरकार गांवों में है और पंचायत प्रतिनिधि उस सरकार को चलाने वाले हैं। अगर आपने इस बात को समझ लिया तो इतने से ही आपका सशक्तिकरण हो जायेगा। आपके पास आज जितने भी अधिकार और दायित्व हैं, उन्हें समझने की कोशिश करें तो आप काफी सफल हो सकते हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों को सुधारने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। आप चाहें तो स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों पर पूरा नियंत्रण कर सकते हैं और अपने गांव की सूरत बदल सकते हैं। इसलिए आपको खुद सरकार की तरह व्यवहार करना चाहिए। इसके साथ ही आप ग्राम सभा में अपने गांव का विजन जरूर बनाएं। शिक्षा, मनरेगा, एनआरएलएम इत्यादि में आपका क्या सपना है, इसे तैयार करें। इसी तरह, आप अपने गांव की उपलब्धियों को भी सामने लाएं। आज बहुत से गांव कुपोषण मुक्त हैं। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है। इन चीजों को आप प्रोजेक्ट करें। केरल में एक पंचायत का वार्षिक बजट पांच से दस करोड़ तक होता है। जबकि वहां एक पंचायत की जनसंख्या मात्र लगभग एक हजार होती है।

श्री जकारिया ने अपने विचारों का निष्कर्ष बताते हुए पुनः तीन बिदंुओं पर जोर डाला -
1. सरकार की तरह आचरण करें - (बिहेव लाइक गवर्नमेंट)
2. अपने सपनों की सूची बनाएं - (विजन)
3. अपनी उपलब्धियां सामने लाएं - (सक्सेस स्टोरीज)

कार्यशाला का संचालन करते हुए डाॅ0 विष्णु राजगढि़या, राज्य समन्वयक, ‘‘झारखंड पंचायत वीमेंस रिसोर्स सेन्टर ने पंचायत प्रतिनिधियों को सुझाव दिया कि दो साल की अवधि में जो समस्याएं आयीं, उन पर चर्चा करने के बजाय आपने उनका किस प्रकार हल निकाला तथा आपकी उपलब्धियां क्या रहीं और आपके सामने क्या संभावनाएं हैं, इस पर चर्चा करना ज्यादा सार्थक होंगा।

कार्यशाला में श्री गणेश प्रसाद, पूर्व निदेशक पंचायती राज ने कहा कि समीक्षा एवं आलोेेेेचना के द्वारा ही नई व्यवस्था का सृजन होता है। सेवा की पहचान नियम और शक्ति है। समाज में यदि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार पर फोकस कर विकास की दिशा में कार्य किया जाए और जनता को जागरूक किया जाए तो हक और अधिकार प्रतिबिम्बित होती है और यह अधिकार पंचायती राज के पास है। प्रशिक्षण यदि रोचक तरीके से दिया जाए तो अधिक जानकरी ली और दी जा सकती है। उन्होंने महाराष्ट्र में प्रशिक्षण की प्रक्रिया एवं गिरिडीह के तिसरी प्रखंड में मनरेगा के उत्तम कार्यों की जानकारी दी।

श्री वेद प्रकाश सिंह, पूर्व निदेशक, पंचायती राज ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि झारखंड में पंचायती राज चुनाव विलम्ब से होने के कारण शक्तियों के हस्तान्तरण में भी कठिनाई हो रही है। पंचायती नियमावली में भी पारदर्शिता की आवश्यकता है। उच्च स्तरीय कमिटी एवं कम्पोसिट रूल फ्रेमिंग के द्वारा ही एक्ट को सशक्त किया जा सकता है। इलेक्ट्रोनिक फंड ट्रांसफर की व्यवस्था एवं सूचना तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए। पंचायती राज शीघ्र ही सुखद होगा। संघर्ष के बदले समन्वय के साथ काम करने से विकास स्वतः नजर आएगा।

श्री डी0 के0 श्रीवास्तव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने पंचायत राज व्यवस्था को राज्य के लिए एक सकारात्मक संकेत बताते हुए कहा कि कर्तव्य और अधिकार के सही सामंजस्य से विकास होगा। अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि दोनों मिलकर कार्य करें, तभी गांव, शहर एवं देश में विकास होगा। जागरूकता एवं जानकारी की कमी से एवं मार्गदर्शन न कि थोपी हुई व्यवस्था के द्वारा भी संशय की स्थिति आ जाती है, इससे बचना होगा, तभी प्रगति का मार्ग सशक्त होगा। वनोत्पाद को रोजगार से जोड़कर आर्थिक सषक्तीकर ही सकता है। शिक्षा, प्रशिक्षण एवं सशक्तीकरण से कौशल विकास से आत्मविश्वास का सृजन हो सकता है।
सर्ड के निदेशक श्री आर.पी.सिंह ने कार्यक्रम के आयोजन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए सरकार की वत्र्तमान योजनाओं की जानकारी दी और कहा कि जहाँ चाह वहाँ राह होती है। उच्च मनोबल के द्वारा कार्य करने से स्थानीय स्तर पर ही मामलों का निष्पादन हो जाएगा।

विकास भारती के सचिव श्री अशोक भगत ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पंचायती राज के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से वत्र्तमान व्यवस्था की बात करते हुए व्यक्तिगत स्वार्थ से उपर उठकर, राज्यहित में जबावदेही के साथ कार्य करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने झारखंड के ग्रामीण विकास में पंचायती राज के महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा करते हुए बिशुनपुर तथा अन्य क्षेत्र में विकास भारती की गतिविधियों के कारण आने वाले बदलावों की जानकारी दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव, डाॅ ए. के. सिंह ने राज्य में पंचायत चुनाव कराने संबंधी अपने अनुभव साझा करते हुए इसे राज्य के ग्रामीण विकास की बुनियाद की संज्ञा दी। उन्होंने वित्तीय स्वतंत्रता पर बल देते हुए आत्मविश्वास एवं अधिकारों के सही कार्यान्वयन हेतु त्रिस्तरीय कमिटी में प्राण फूंकने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारत में ग्रासरूट डेमोक्रेटी के द्वारा नेतृत्व नजर आने लगी है, लेकिन अब पंचायतों के माध्यम से विकास नजर आएगा।
अमनारी (हजारीबाग) के मुखिया श्री अनूप कुमार ने दो साल के अनुभवों की चर्चा करते हुए कहा कि अधिकारियों द्वारा जनप्रतिनिधियों को नजर अंदाज किया जाता है तथा बिचैलियों के कारण अधिकार और काम करने में परेशानी होती है, अलग-अलग पंचायत एवं प्रखंड के अलग नियम होता है और समन्वय की भावना का अभाव है।

विकास भारती के प्रतिनिधि श्री निखिलेश मैत्री ने पंचायतों से जुड़े अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पंचायतों की सामाजिक जिम्मेवारी है। उन्हें विकासात्मक कार्य करने का दायित्व है न कि राजनीतिक जिम्मेवारी। उन्होंने ग्रामसभा के कार्य में सुधार की आवश्यकता बताते हुए कहा कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में समन्वय की कमी, पंचायत का अपना फंड सृजन करने संबंधी अनुभव के अभाव के कारण विकास की गति धीमी है। उन्होंने आवासीय प्रशिक्षण लगातार कराने पर भी जोर दिया।
धनबाद जिले के तोपचांची प्रखंड की प्रमुख सरिता देवी ने बताया कि पंचातयी राज के बाद अब गांव की समस्याओं की निबटारा गांव में ही हो जाता है। पंचायतों को अब तक अधिकार नहीं मिला है तथा जो मिला है, वह सही ढंग से लागू नहीं हुआ। उन्होंने वार्ड मेम्बर को भी सशक्त करने का सुझाव दिया क्योंकि गांव के सभी सदस्यों से वही सीधे जुड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि पंचायती राज के दो वर्षो के अनुभव से आज गांव में परिवत्र्तन नजर आ रहा है। शिक्षा व्यवस्था के सुधार पर विषेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि शिक्षा मिड डे मील से आरंभ होकर मिड डे मील पर ही समाप्त हो जाती है। शिक्षक को इस प्रक्रिया से अलग रखा जाए।
धनबाद जिले के बाघमारा की मुखिया रिंकु डे ने बताया कि निरीक्षण के दौरान शिक्षकों को अनुपस्थित देखने के बाद उन्होंने किस तरह इस व्यवस्था को दुरूस्त किया। उन्होंने बताया कि महिलाओं को सशक्त करने हेतु समूह द्वारा बचत पर जानकारी देकर पैसा जमा कर एक दूसरे को आर्थिक सहयोग दिया जाता है। इससे सूदखोरी कम हुई है।
जनशिक्षण संस्थान के प्रतिनिधि श्री शिवशंकर उरांव ने कहा कि पंचायत राज अधिनियम एवं नियमावली में पंचायतों के अधिकारों की विस्तृत जानकारी है। इस पर अमल की जरूरत है। जानकारी के अभाव मे विकास में परेशानी हो रही है। इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों के साथ ही अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भी प्रशिक्षण देना होगा।
श्री राजीव कुमार, पेरू सदर, हजारीबाग ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पंचायती राज व्यवस्था के कारण घरेलू झगड़ो के निबटारे की अधिकांश केस का निबटारा अब गांव में हो जाता है थानों तक कम ही मामले जा रहे हैं। बिचैलियों एवं दलाली पर नियंत्रण हुआ है। जन उपयोगी योजना नहीं होने से लागू करने में कठिनाई होती है। नरेगा का स्पष्ट निर्देश प्राप्त नहीं हो पाता है। टैक्स की वसूली होने लगी है। यदि 73 वे संशोधन के आधार पर ही कार्य हो तो विकास दिखने लगेगा।
अनिता गोराई, मुखिया, धनबाद में बताया कि पंचायत प्रतिनिधियों पर रंगदारी के आरोप लगाकर झूठे मुकदमे दर्ज करने की शिकायत आ रही है।

रामगढ़ के दोहाकातू पंचायत की मुखिया कलावती देवी ने बताया कि उनके पंचायत को देश में आधार कार्ड पर आधारित भुगतान के लिए चुना गया है। पंचायत में माईक्रो ए.टी.एम. के माध्यम से भुगतान दिया जाता है। इस बात पर विषेष स्थान दिया जाता है कि भुगतान वही व्यक्ति ले जिसको नामांकित किया गया है। 
धनबाद के जिला पंचायती राज पदाधिकारी श्री एन. के. लाल ने पंचायतों की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए बताया कि अब फंड ग्राम पंचायत के माध्यम से बैंक डाकघर एवं आधार बेस्ट भुगतान के माध्यम से निर्गत किए जा रहे हैं। योजनाओं की जानकारी वेव-साइट पर उपलब्ध है। ईगर्वनेंस एवं ई-ट्रांजक्शन की विधि अपनाई जा रही है। पंचायत सचिवालय एवं प्रज्ञा केन्द्र के माध्यम से ग्रामीणों को जानकारी देने की व्यवस्था की जा रही है। जागरूकता एवं प्रचार-प्रसार से विकास को गति दी जा सकती है।
खूंटी की जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती माईलिना टोपनो ने अपने हैदराबाद एवं हिमाचल प्रदेश भ्रमण के दौरान हुए अनुभव साझा करते हुए बताया कि त्रिस्तरीय कमिटी के अंतर्गत समन्वय की कमी ही विकास में बाधक है।
 दूसरे सत्र में चर्चा के दौरान यूनिसेफ के कार्यक्रम अधिकारी दीपक डे, यूनिसेफ की न्युट्रीशन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव, पंचायत नामा के संपादक संजय मिश्रा, दैनिक भास्कर के वरीय पत्रकार श्री दिव्यांशु, मंथन युवा संस्थान के समन्वयक सुधीर पाल, पंचायती राज के सहायक निदेशक आर. के. मंडल, श्री के. एल. चैधरी, बालुमाथ के मुखिया अरविंद भगत, महिगांव की ज्योति बहे, हजारीबाग कटकमदाग की मुखिया प्रियंका कुमारी ने सभी प्रतिभागियों के साथ अपने अनुभव बांटे।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 विष्णु राजगढि़या, सर्ड के सहायक निदेशक श्री दीपांकर श्रीज्ञान एवं केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थान के व्याख्याता अजित कुमार सिंह ने किया। कार्यशाला में भारत निर्माण सेवक कार्यक्रम के राज्य समन्वयक डाॅ. एम. पी. सिंह, टीस के प्रो0 ई. टोप्पो, भी उपस्थित थे।
कार्यषाला में मुख्य रूप से एकजुट होकर सकारात्मक सोच के साथ समन्वय स्थापित कर सामूहिक प्रयास से विकास के विचार उभर कर सामने आए। सभी बदलाव चाहते हैं। इस दिशा में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेन्टर को प्रतिभागियों ने एक सशक्त एवं सकारात्मक पहल माना।

गर्भधारण, प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध पर कार्यशाला

State Level Capacity Building Conference cum Workshop on
Pre Conception & Pre Natal Diagnostic Techniques Act, 1994
5th Feb 2013, Tribal Research Institute, Morabadi, Ranchi 

गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 पर राज्य स्तरीय सम्मेलन सह कार्यशाला
कार्यक्रम स्थल: जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआइ), मोराबादी, रांची. कार्यक्रम तिथि: 5 फरवरी, 2013
आयोजनकर्ता: झारखण्ड राज्य महिला आयोग एवं यूनिसेफ, झारखंड 


प्रमुख अतिथि:
1. श्रीमती मृदुला सिन्हा, सचिव, समाज कल्याण विभाग, झारखंड
2. डा. हेमलता एस मोहन, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग, झारखण्ड
3. श्री जाब जकारिया, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ, झारखण्ड.

रांची। जनजातीय शोध संस्थान, मोराबादी में झारखंड राज्य महिला आयोग व यूनिसेफ की ओर से गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 पीसीपीएनडीटी अधिनियम पर राज्य स्तरीय सम्मेलन सह कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का विषय-प्रवेश करते हुए राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डा. हेमलता एस मोहन ने कहा कि समय रहते जगने और काम करने की बारी आ गई है। भ्रूण हत्या और बालक-बालिकाओं के अनुपात में आ रही गिरावट खतरे के निशान पर है। यूनिसेफ जैसी संस्था महिलाओं और बच्चों के विकास के मामले में सहयोग कर रही है। प्लान इंडिया की भी भूमिका है। समाज कल्याण भी अपने दायित्व निभा रहा है। इनके साथ-साथ हमें भी आगे आना होगा। अनुपातिक तौर पर लड़के-लड़कियों के बीच जो अंतर दिख रहा है, उसे सबों को मिल-जुलकर कम करना होगा। प्रसवपूर्व लिंग परीक्षण की प्रवृत्ति महिलाओं व लड़कियों के अस्तित्व पर संकट पैदा कर रही है। हमें ग्रासरूट पर, धरातल पर जाकर दायित्व निभाने होंगे। जो कार्यक्रम आज यहां टीआरआइ मे ंहो रहे हैं, आने वाले समय में सीडीपीओ व अन्य सरकारी पदाधिकारियों के अलावा पंचायती राज में नवनिर्वाचित जनजप्रतिनिधियों के बीच भी पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रति जागरूकता संबंधी कार्यक्रम किए जाएंगे। पीसीपीएनडीटी एक्ट को पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिए संवेदनशील समाज बनाना होगा। इसके लिए विभिन्न स्तर पर सामाजिक जागरूकता पैदा करनी होगी। एक स्वस्थ समाज की रचना के लिए लड़कियों, महिलाओं को सम्मान देना होगा। समाज के जिम्मेदार व्यक्तियों, स्रोतों, बुद्धिजीवियों के जरिए मिल-जुलकर पहल करें। संदेश फैलाएं।
राज्य महिला आयोग के विमेंस नेटवर्क को मजबूत करने की वकालत करते हुए डाॅ. हेमलता मोहन ने कहा कि हमने राज्य के सभी जिलों से कई उपयोगी सूचनाओं की मांग की थी। आयोग नेटवर्क को आॅनलाइन करने और सूचनापरक बनाने में लगा है। हमने निबंधित अल्ट्रासाउण्ड संस्थानों की सूची मांगी गई थी। सिविल सर्जनों के अलावा एनजीओ से भी इसमें मदद करने की अपील की थी। पर 5-6 जिलों को छोड़कर कहीं से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। अगर सूचनाएं मिल गई होतीं तो महिला आयोग की वेबसाइट के जरिए इसे आॅनलाइन किया जाता। इस तरह की सूचनाओं की बदौलत हमें और हम सबको गैर-निबंधित अल्ट्रासाउण्ड संस्थानों पर दबाव बनाने में मदद मिलती। सभी जिलों में विमेन पावर नेटवर्क को मजबूत करने के लिए आयोग की तरफ से लगातार पत्राचार किए गए। अपील की गई। पर ठोस काम नहीं दिखा है।
देवघर एसपी द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए डाॅ हेमलता ने बताया कि उन्होंने महिला सेल बनाया। सीडीपीओ, सहिया, आंगनबाड़ी सहायिका और दूसरों की मदद से लगातार माहौल बनाया है। विमेन सेल के जरिए उन्हें अहम सूचनाएं मिलने लगी हैं। ऐसे ही उदाहरणों से सीख लेनी होगी। हमें अपनी जिम्मेदारियों की समीक्षा करते हुए आपसी तालमेल के साथ काम करना होगा। अगर विमेन नेटवर्क को मजबूत बनाना है तो सीडीपीओ, बीडीओ, सहिया, पंचायत प्रतिनिधियों के मध्य समन्वय स्थापित करने होंगे। इनके परस्पर नेटवर्क बनने से परिणाम अवश्य दिखेंगे। घर के अंदर लड़कियों, महिलाओं के उपर दबाव होता है। गर्भवती होने पर। हमें ठोेस तरीके से पहल करनी होगी ताकि ऐसी गर्भवती महिलाओं, लड़कियों के साथ किसी परिस्थिति में नाइंसाफी ना हो। बड़े कदम उठाने के लिए अब हम तैयार हैं। श्रीमती मोहन ने कहा कि जब तक पूरे मन से, हृदय से काम नहीं हो, लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। हमारा लक्ष्य आसान नहीं है। सामाजिक सोच में बदलाव की जरूरत है। प्रसिद्ध हिन्दी लेखक दुष्यंत ने कहा है- ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.’निश्चित तौर पर हम रास्ता तय करेंगे, लक्ष्य हासिल करेंगे।
विशेष अतिथि यूनिसेफ, झारखण्ड प्रमुख श्री जाॅब जकारिया ने चिंता जताते हुए कहा कि हमारे देश में कानूनन लिंग परीक्षण प्रतिबंधित है। पीसीपीएनडीटी एक्ट इसके लिए खास तौर पर बनाया गया है। पर कई कारणों से यह प्रभावी नहीं है। यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल जन्म लेने से पहले ही साढ़े पांच लाख बेटियां मार दी जाती हैं। झारखण्ड में प्रतिवर्ष 11,000 लड़कियों का जन्म नहीं होने दिया जाता। पहले यहां बच्चों का लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक था। पर अब तेजी से गिर रहा है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसमें 21 फीसदी की कमी आयी है। शहरी क्षेत्रों में स्थिति ज्यादा गंभीर है। यहां यह 69 अंक गिरा है। सबसे बुरी स्थिति बोकारो, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, रामगढ़, गिरिडीह रांची जिले की है।
श्री जकारिया ने कहा कि हम सब इस सच से वाकिफ हैं। पर मसला यह होता है कि आखिर हम कर क्या सकते हैं? दरअसल मूल मुद्दा है परिवार, समाज में महिलाओं के अधिकारों के बारे में सोच बदलने का। हमें पुरुषवादी मनोवृत्ति से उपर उठना होगा। बाल विवाह, घरेलू हिंसा, बाल श्रम और ऐसे ही अन्य दोषों के निषेध के लिए तमाम कायदे-कानून हैं। पर इतने भर से हल नहीं होने वाला। हमें महिलाओं, लड़कियों के हित में अपने नजरिये में बदलाव भी लाना होगा। पीसीपीएनडीटी एक्ट भर के लागू करने से लाभ नहीं है। बाल विवाह, दहेज प्रथा, बाल श्रम जैसे अपराध और उनके लिए बने कानूनों को भी साथ-साथ प्रभावी ढंग से लागू किए जाने पर ध्यान देना होगा। झारखण्ड सरकार ने 2012 में बिटिया बचाओ कार्यक्रम चलाया था। इस तरह के प्रयासों का स्वागत करना चाहिए और ऐसे ही काम लगातार होने चाहिए।
श्री जकारिया ने दुख जताते हुए कहा कि हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाएं दुरूस्त नहीं हैं। अस्पताल कम हैं। डाॅक्टरों की भी भारी कमी है। तकरीबन 3000 डाक्टर हैं जिनमें 2000 सरकारी और 1000 निजी चिकित्सक हैं। अगर डाॅक्टर तय कर लें कि प्रसव पूर्व जांच और भ्रूण हत्या के काम नहीं करेंगे तो इससे समाज का भला होगा। साथ ही पुलिस, स्थानीय प्रशासन, प्रचायत प्रतिनिधियों, सहिया, एनजीओ और समाज के दूसरे लोगों को भी आगे आना होगा। सबों की सहभागिता चाहिए। इससे परिणाम जरूर सार्थक मिलेंगे।
विशिष्ट अतिथि समाज कल्याण विभाग की प्रधान सचिव श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि शहरी औद्योगिकीकरण के हिसाब से हमारी मानसिकता अब भी नहीं बदली है। लिंग निर्धारण व लिंग चयन पर रूढि़वादी सोच व संकीर्णता बरकरार है। समाज में जिन्हें इसके खिलाफ मुखर होना चाहिए, वे भी जरूरत पड़ने पर ऐसी क्लिनिक ढूंढ़ते हैं। तथाकथित ऐसे परिवार जो शिक्षित हैं, घर के दोनों लोग यानि पति-पत्नी दोनों काम करते हैं, आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे भी यह अपराध कर रहे हैं। बिना कारण ही बच्चियों को गर्भ में मारा जा रहा है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि झारखंड अभी तक हरियाणा नहीं बना है, पर इससे बहुत दूर भी नहीं है। हमारे आसपास ही गली-मुहल्लों में कई सारे गैर-निबंधित अल्ट्रासाउण्ड सेंटर चलते रहते हैं। पर हम उसे रोके जाने के प्रति अपने दायित्व नहीं निभाते। रांची, धनबाद, हजारीबाग, जमशेदपुर जैसे लगभग सभी बड़े जिलों में ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। हमें मानसिकता बदलने की जरूरत है। श्रीमती सिन्हा ने ऐसे परिवार जिनके यहां कोई गर्भवती महिला हो, के प्रति सूचनापरक बने रहने की सलाह देते हुए कहा कि नजर रखें कि गर्भवती महिला को जांच के नाम पर किस तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। अगर गर्भपात जैसी बातें होती हैं तो उसकी हकीकत जानें। जरूरत के मुताबिक ऐसे परिवार का सामाजिक तौर पर, कानूनी तौर पर बहिष्कार करना सीखें। चुप रहना घातक है। बलात्कार जैसे मामलों में पीडि़त परिवार सामने नहीं आता। समाज चुप रहने को कहता है। ऐसे में समाज के साथ-साथ हम भी एक अपराध में भागीदार बन जाते हैं। 16 दिसंबर की दिल्ली की घटना के बाद एक तरह की जागरूकता आयी है। यही लड़कियों के प्रति पूर्वाग्रह को बदलने का सही वक्त है। श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि पीसीपीएनडीटी एक्ट को लागू करना कठिन नहीं है। इसके लिए डाॅक्टरों को भी तैयार करना होगा। उन्होंने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को विश्वास में लेना होगा, क्योंकि यदि डाॅक्टर नहीं चाहेंगे, तो ऐसा नहीं हो सकता। इस कानून के साथ बाल विवाह, घरेलू हिंसा व दहेज पर रोक जैसे कानूनों को भी सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है। राज्य में लिंग जांच के 712 केंद्र हैं। कई अनिबंधित जांच घर भी हैं। सबकी माॅनिटरिंग जरूरी है। सामाजिक जागरूकता से पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी तरीके से लागू करने में कामयाबी मिल सकती है।
दूसरे सत्र की शुरूआत करते हुए प्लान इंडिया की प्रोजेक्ट मैनेजर श्रीमती देबजानी खान ने पीसीपीएनडीटी एक्ट और उसके प्रावधानों तथा झारखण्ड में इसकी स्थिति के बारे में बताया। कहा कि पीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए कई पहलूओं पर ध्यान देना होगा। लड़कियों का पलायन, स्वास्थ्य, गरीबी और आजीविका के स्रोतों का अभाव भी एक मुद्दा है। पितृसत्तात्मक समाज और लड़कों की चाहत का होना भी अहम कारक है। इन कारणों से 2001 से 2011 के बीच झारखण्ड में प्रति हजार लड़कों पर 965 लड़कियों की तुलना में 943 लड़कियांे तक आंकड़ा जा पहुंचा है। -22 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले तीन दशक में भारत में 12 लाख लड़कियों को जन्म से पहले मार दिया गया। श्रीमती खान ने घटते लिंगानुपात के लिए समाज के रूढि़वादी नजरिए और सेवाएं प्रदान करने वाले लोगों यथा स्त्री रोग विशेषज्ञ, रेडियोलाॅजिस्ट, सोनोलाॅजिस्ट व औरों की भी भूमिका बताई। उन्होंने पीएनडीटी एक्ट के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में 1991 में गर्भवती महिला और उसके सुरक्षित मातृत्व के संबंध में जवाबदेही तय करने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई थी। कई चरणों के बाद आज हमारे सामने पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट वर्तमान स्वरूप में लागू है। पीएनडीटी एक्ट के मुताबिक प्रसव पूर्व ना लिंग जांच की जा सकती है और ना लिंग चयन। पीएनडीटी एक्ट अन्य सामाजिक कानूनों से भिन्न है, जो सामाजिक व्यवहार में बदलाव की अपेक्षा नहीं करता, बल्कि चिकित्सा सेवा में नैतिकता और चिकित्सा तकनीक में नियमन की जरूरत को रेखांकित करता है। यह कानून समाज के उपर लागू होने वाला कानून नहीं है। बल्कि यह किसी गर्भवती महिला को पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान करने के लिए है। श्रीमती खान ने एक्ट के प्रावधानों के बारे में बताते हुए कहा कि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के अनुसार, किसी भी गर्भवती महिला को उसके परिवार, संबंधियों द्वारा लिंग जांच के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता, सिवाय विशेष मेडिकल केस के। लिंग चयन की कोई भी तकनीक के प्रयोग के लिए गर्भवती महिला को किसी के भी द्वारा चाहे वह उसका पति हो या पारिवारिक सदस्य, किसी भी स्तर पर जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकता। श्रीमती खान ने पीसीपीएनडीटी एक्ट के संबंध में कहा कि राज्य स्तर पर इसे कानूनन लागू करने की जिम्मेदारी बहुसदस्यीय राज्य समुचित प्राधिकरण के पास है। जिला स्तर पर जिले के सिविल सर्जन को इसका दायित्व सौंपा गया है। एक्ट के संबंध में यह जानना दिलचस्प है कि इसके उल्लंघन होने की शिकायत पर किसी के भी खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती। अगर किसी गर्भवती महिला को लिंग जांच के लिए दबाव बनाया गया हो तो भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। एक्ट के उल्लंघन की शिकायत या आशंका पर इसके लिए स्थानीय थाना, सिविल सर्जन और स्थानीय प्रशासन की मदद ली जा सकती है। सहिया अपने कार्यक्षेत्र से भलीभांति परिचित होती है। उसे अपने आसपास के गर्भवती महिलाओं के संबंध में भी पूरी सूचना होती है। उसका सहयोग लेना प्रभावी हो सकता है। पंचायत प्रतिनिधियों को भी इसमें जोड़ा जा सकता है। श्रीमती खान ने समाज में माहौल पैदा करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि लड़का ही नहीं, लड़की के मामले में भी जन्मोत्सव मनाने की परंपरा शुरू की जानी चाहिए। हम सबों को अपनी जिम्मेदारियों, दायित्वों को निभाना होगा। डाॅक्टरों को जवाबदेह बनाने की भी जरूरत है। कई बार ऐसा होता है जब वे अनावश्यक रूप से अल्ट्रासाउण्ड करने की सलाह दे देते हैं। यहां तक कि पशु, आयुर्वेदिक डाॅक्टरों को भी अल्ट्रासाउण्ड करते देखा गया है। जबकि प्रावधान एमबीबीएस, रेडियोलाॅजिस्ट या अन्य सक्षम व्यक्तियों के लिए ही है। इस तरह के मामलों में हमें तत्काल अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए।
उत्तराखंड पीसीपीएनडीटी सेल की नोडल आॅफिसर श्रीमती सरोज नथानी ने उत्तराखण्ड की स्थिति बताते हुए कहा कि यहां 13 जिले हैं। नैनीताल जैसे जिले को छोड़ दे ंतो अधिकांश जिले पहाड़ी इलाके वाले हैं। 2001 की तुलना में 2011 में अधिकांश जिलों में प्रति हजार लड़कों की अपेक्षा 850 लड़कियां थीं। जबकि राष्ट्रीय पैमाने के मुताबिक 954 होना चाहिए था। उत्तराखण्ड में 518 अल्ट्रासाउण्ड सेंटर निबंधित हैं जबकि अनुमान है कि हकीकत में यह आंकड़ा 40 गुना ज्यादा है। राज्य में ऐसी व्यवस्था की गई है कि गर्भवती महिलाओं और उससे संबंधित अन्य उपयोगी सूचनाएं आसानी से और निरंतर मिलती रहे। जैसे अगर किसी गर्भवती महिला का अल्ट्रासाउण्ड होता है तो उसके परिवार, पता, जहां अल्ट्रासाउण्ड कराया गया, उस सेंटर का नाम, पता भी एक डाटा के जरिए संग्रह किया जाता है। उसकी एक आइडी बनाई जाती है। इसका निरंतर फाॅलो-अप होता है। परिस्थितियों के मद्देनजर संबंधित जिलों के उपायुक्त/जिला जज को अपीलीय पदाधिकारी बनाया गया है। सुपरवाइजरी बोर्ड के प्रमुख राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हैं और इसी तरह अन्य स्तरों पर सक्षम पदाधिकारियों, एनजीओ व अन्य को जोड़ा गया है। राज्य के सभी 13 जिलों मे ंपीसीपीएनडीटी सेल बनाया गया है। पीसीपीएनडीटी सेल के बारे में जानकारी देते हुए श्रीमती सरोज ने बताया सेल से जुड़े सभी सदस्यांे को एक्ट से संबंधित नियमों, प्रावधानों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है। ऐसे डाॅक्टर्स, रेडियोलाॅजिस्ट, गाइनेकोलाॅजिस्टों को भी ट्रेनिंग दी गई है और आॅनलाइन विभिन्न आवेदनों, फाॅर्मों को भरने के बारे में बताया गया है। सभी आशाओं/सहिया को भी प्रशिक्षित किये जाने का क्रम जारी है। सोनोग्राफी मशीन वेंडर्स और मशीन विक्रेताओं को भी इस कार्यक्रम से जोड़ा जा रहा है। इस तरह की मशीन की किसी स्तर पर खरीदारी, बिक्री से संबंधित सूचनाएं भी आॅनलाइन रहे, इस पर जोर दिया गया है। लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिहाज से रेडियो जिंगल/गाने और बस पैनल, चलंत प्रचार वाहनों का उपयोग किया जा रहा है। अखबारों, चैनलों पर विज्ञापनों के जरिए भ्रूण हत्या पर रोक और लड़कियों को प्रोत्साहन दिए जाने के संबंध में प्रचार- प्रसार किया जा रहा है। श्रीमती सरोज के अनुसार राज्य के 52 सरकारी काॅलेजों में युवा विद्यार्थियों को भी प्रशिक्षित किया जाना है। उन्हें संवेदनशील बनाना है। यूथ डे, विमेंस डे के जरिए भी ऐसे ही प्रयास होने हैं। इसके अलावा प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन जैसे काम करने वाले अल्ट्रासाउण्ड सेंटर्स की जांच-पड़ताल पर भी जोर दिया गया है। इसके तहत एसआइएमसी द्वारा चार जिलों हरिद्वार, चमोली, रूद्रप्रयाग और पौड़ी में जांच अभियान चलाया गया और 6 मशीनों को सील किया गया है। अब तक कुल मिलाकर 17 मशीनों को सील किया गया है। 30 केंद्रों का निबंधन रद्द किया गया है। अदालतों में 5 केस के उपर सुनवाई चल रही है। पर इतने भर से बात नहीं बनने वाली। हम सबों को अपने दायित्वों को संवेदनशीलता के साथ निभाना होगा।

डा सरोज नथानी
नोडल आॅफिसर, उत्तराखंड पीसीपीएनडीटी सेल
महत्वपूर्ण बिंदु:
1. नियमित तौर पर 0-6 वर्ष के आयु के बच्चों के अनुपात की निगरानी आवश्यक है।
2. एमटीपी एक्ट के तहत एमटीपी के प्रावधानों का अनुसरण हो।
3. एमटीपी के प्रावधानों के साथ-साथ गर्भपात संबंधी आंकड़ों का लेखा-जोखा भी दुरूस्त रखें।
4. फाॅर्म -एफ के आॅनलाइन भरे जाने की व्यवस्था तय करायी जाये।
5. दोषियों और पीडि़तों के मामले में उपयुक्त सुरक्षा, दायरे के प्रावधानों का ध्यान रखें।
6. सभी अल्ट्रासाउण्ड मशीनों में ‘एक्टिव ट्रेकर डिवाइस’ का प्रयोग हो।
7. अल्ट्रासाउण्ड सेंटरों की नियमित तौर पर निगरानी हो।
भोजनावकाश सत्र के बाद धनबाद से आयी फागुनी देवी ने अपनी व्यथा सुनाई। कहा कि वह एक हरिजन महिला है। शादी के बाद जब वह गर्भवती हुई तो उसके सुसराल वालों ने जबर्दस्ती उसक गर्भ जांच कराई। बेटी होने की संभावना पर उसे कोई दवा पिलायी गयी। बच्ची गर्भ में मर गयी। इसके खिलाफ जब थाने में केस दर्ज कराया तो केस उठाने का दबाव बनाया गया। अंततः पति को जेल भी हुआ। एक माह के बाद वह बाहर आया। और अब उस पर ही चोरी का केस दर्ज करा दिया गया है। ऐसी स्थिति में वह क्या करे? जब कोई उसकी मदद करने की कोशिश करता है तो उसे भी धमकाया जाता है। अब भी वह गर्भवती है, ऐसी स्थिति से कैसे बाहर निकले? चर्चा को आगे बढ़ाते हुए यूनिसेफ की हेल्थ स्पेशलिस्ट डाॅ. मधुलिका जोनाथन ने पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को रेखांकित किया। विमेन पावर नेटवर्क और जिला स्वास्थ्य प्रबंधन की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि जो भी प्रयास इस संदर्भ में हो रहे हैं, वे किस तरह के हैं और कितने प्रभावी हैं, यह देखना जरूरी है। समुदाय के साथ-साथ राजनीति से जुड़े लोगों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं और दूसरों को प्रशिक्षित करते हुए उन्हें संवेदनशील और जवाबदेह बनाने के प्रयासों पर काम निरंतर करते रहना होगा। पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत निबंधित क्लिनिकों द्वारा भरे जाने वाले फाॅर्म-एफ को निरंतर देखना और उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। ऐसे कामों के लिए आशा, सहिया, पंचायतों को जोड़ना और उन्हें सक्रिय बनाना कारगर होगा। गर्भवती महिला की पहचान, उसकी निरंतर देखभाल, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और उनके निदान जैसे घटनाक्रमों की निगरानी करनी होगी। अगर कहीं प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन जैसी घटनाएं किसी क्षेत्र में हो रही हैं तो इसमें शामिल लोगों और उनके बीच कायम कडि़यों को तोड़ने का काम करना होगा। विमेन पावर नेटवर्क को प्रभावी बनाने की कोशिश करनी होगी।

मधुलिका जोनाथन, यूनिसेफ, झारखण्ड
प्रमुख बिंदु:
1. एनजीओ, समुदाय आधारित संगठन, चिकित्सक और मेडिकल/डाॅक्टर्स एसोसिएशन व अन्य के प्रयास, योगदानों पर नजर रखना होगा।
2. समुदाय (विशेषतः नेतृत्वकर्ता) को संवेदनशील बनाने होंगे।
3. स्थानीय प्रशासन ( उपायुक्त, एसडीओ व अन्य) की भूमिका आवश्यक है।
4. सीमावर्ती जिलों में अंतरराज्यीय सहयोग के द्वारा गर्भवती महिलाओं के मामले में समुचित सूचनाओं का संग्रहण करना होगा।
5. उपयुक्त संस्थाओं/संस्थानों के द्वारा पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार भरे गये फाॅर्म-एफ का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए। अद्यतन स्थितियों पर भी ध्यान रखना होगा।
6. प्रताडि़त की जा रही गर्भवती महिलाओं के मामले में दोषियों की परख और शिकायतकर्ता महिला के मामले में किए जा रहे प्रयासों पर लगातार नजर रखनी होगी।
7. अदालतों में प्रभावित गर्भवती महिला के मामले में केस जाने पर उसे वहां भरपूर सहयोग मिलने और ससमय न्याय मिल पाने की स्थिति की समीक्षा करते रहनी होगी।
8. लिंग जांच अपराधों से जुड़ी कडि़यों को तोड़ने पर काम होना चाहिए।
9. जमीनी स्तर पर काम करने वालों और पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं और जन्म दर की स्थिति पर नजर हो।
10. न्यायिक सेवा से जुड़े लोगों, सदस्यों, जिला विधिक सेवा प्राधिकार और अन्य उपयुक्त स्रोतों के बीच जागरूकता और प्रशिक्षण का प्रयास हो।
11. किसी खास व्यक्ति, परिवार, समुदाय, जातियों में अगर जन्म दर असमान दिखे तो इसके कारणों की पहचान की जाए।
12. स्थानीय प्रशासन द्वारा प्राप्त आवेदनों का निबंधन हो।
13. प्राप्त आवेदनों पर अनुदान देने, उन्हें खारिज करने के संबंध में दिशा-निर्देश हो।
14. स्थानीय प्रशासन द्वारा जेनेटिक काउंसिलिंग सेंटर, जेनेटिक क्लिनिक और जेनेटिक लैबोरेटरी के स्तर को सुधारने पर कार्य हो।
15. स्थानीय प्रशासन द्वारा अदालतों में चल रहे मामलों की गतिशीलता की समीक्षा हो।
16. अवैध क्लिनिकों, अल्ट्रासाउण्ड केंद्रों की जांच-पड़ताल, निगरानी और दण्ड के प्रावधानों के अनुपालन पर स्थानीय प्रशासन जवाबदेही तय करे।
17. प्रसव पूर्व जांच और लिंग चयन के दोषों के बारे में प्रशासन द्वारा समुचित प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है।
18. संदिग्ध केंद्रों, क्लिनिकों के बारे में सलाहकार समिति की रिपोर्ट, अनुशंसा पर कार्रवाई करने की दिशा में प्रशासनिक भूमिका भी उपयोगी होगी।
19. सलाहकार समिति और विमेंस पावर नेटवर्क के बीच बेहतर समन्वय हो।
20. महिला नेटवर्क के संदर्भ में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।
आखिरी सत्र में झारखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से आए पुलिस महिला कोषांग, जिला सिविल सर्जन/ जिला समिति, एनजीओ प्रतिनिधियों और अन्य उपस्थित प्रतिभागियों को तीन ग्रुपों ए, बी व सी में बांट दिया गया। तीनों ग्रुप में तकरीबन 20-20 सदस्य शामिल थे। निर्धारित आधे घंटे के दौरान तीनों ग्रुप के सदस्यों ने आपसी विचार-विमर्श और अपने-अपने तजुर्बाें के आधार पर अपने सुझाव, मतों को लिखित रूप में उतारा। इसके बाद ग्रुप ए ने अपने पक्ष रखते हुए कहा कि प्रसव पूर्व जांच, भ्रूण हत्या जैसी स्थितियों के लिए महिलाएं भी जिम्मेदार हैं। उनकी मानसिकता में बदलाव पर काम करने होंगे। उन्हें शिक्षित करना होगा। ऐसे अवांछित काम करने वाले डाॅक्टरों का निबंधन रद्द कर देना चाहिए। सिलेबस में भी इस विषय को शामिल किया जाए। पुलिस को महिला मामलों के केस के निराकरण में संवेदनशील बनाना होगा। सलाहकार समिति का गठन हो जिसमें हर क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हों।

सम्मेलन में प्रतिनिधियों की राय

ग्रुप ए के प्रमुख सुझाव
1. महिलाओं को उनके लिए तय कानूनी प्रावधानों, अधिकारों के बारे में शिक्षित किया जाना होगा।
2. मेडिकल के सिलेबस में प्रसव पूर्व जांच और भ्रूण हत्या न करने के मुद्दे को शामिल किया जाए।
3. मेडिकल के छात्रों द्वारा शपथ पत्र में उनके द्वारा यह सुनिश्चित कराया जाये कि वे लिंग जांच नहीं करेंगे।
4. दोषी चिकित्सकों पर धारा 302 लगाया जाए। धारा 312 और 316 के प्रावधान को भी आरोपित किया जाए।
5. पंचायत स्तर पर दहेज उन्मूलन, महिला उत्पीड़न और महिला हित से जुड़े विषयों के प्रति जागरूकता लायी जाये।
6. शादी के समय वर-वधु शपथ लें कि वे लिंग जांच नहीं कराएंगे।
7. महिला शिकायतकर्ता के लिए निःशुल्क कानूनी प्रावधानों की व्यवस्था तय हो।
8. सलाहकार समिति का गठन/पुनर्गठन और ससमय बैठक हो।
9. सिविल सोसाईटी लिंग जांच करने वाले केंद्रों की पहचान करे और ऐसी सूचनाओं को उपयुक्त जवाबदेह व्यक्तियों तक पहुंचाये।
10. सोसाईटी को ऐसे प्रयासों में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिये। दोषियों, अपराधियों को हतोत्साहित करना चाहिये।  
ग्रुप बी ने सुझाव देते हुए कहा कि धार्मिक गुरुओं, संतों की मदद भी कन्या जन्म को प्रश्रय देने के संदर्भ में ली जानी चाहिए। समाज के प्रमुख बुद्धिजीवियों, व्यक्तियों का लाभ लिया जाना चाहिए। लड़कियों को सरकार की ओर से समूची शिक्षा निःशुल्क दिए जाने की व्यवस्था भी हितकर प्रयास हो सकता है।

ग्रुप बी के प्रमुख सुझाव
1. बालिकाओं की समाज में जरूरत के प्रति नजरिया और माहौल बनाने के लिए लगातार प्रयास हों
2. स्कूल, काॅलेज के छात्रों को प्रेरित करें।
3. स्वयंसहायता समूह, एनजीओ, पीआरआइ सदस्यों का सहयोग लिया जाये।
4. विवाहित परिवारों को भी प्रेरणा दी जाए।
5. दहेज प्रथा का व्यापक स्तर पर विरोध हो।
6. नवविवाहित परिवारों की सूचना और गर्भवती महिला पर नजर रखा जाना।
7. लड़कियां नहीं तो दुल्हन नहीं, दुल्हन नहीं तो मां नहीं और मां नही ंतो सुना आंगन और सुना संसार, के संदेश को फैलाना।
8. समाज के सभी वर्गों, जिम्मेदार व्यक्तियों के लिए जवाबदेही तय करना।
ग्रुप सी ने पुलिस, एनजीओ, महिला कोषांग और सिविल सर्जन को केंद्र में रखते हुए विभिन्न बिंदुओं को रखा। महिला शिकायतकर्ता के आवेदन पर ससमय सुनवाई और जांच हो। एनजीओ के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए। परिवार मध्यस्थता केंद्र की स्थापना और उनको प्रोत्साहन मिले। राज्य के विभिन्न हिस्सों में जरूरतमंद महिलाओं, बच्चों के लिए आवासीय सुविधा केंद्र खुले। अल्ट्रासाउण्ड मशीन रखने वालें केंद्रों निबंधन निश्चित तौर पर कराया जाए। रेडियोलाॅजिस्ट और डाॅक्टरों को भी नैतिक, सामाजिक स्तर पर संवेदनशील बनाया जाए।  

ग्रुप सी के प्रमुख सुझाव
1. पुलिस महिला शिकायतकर्ता को सम्मान और सुरक्षा दे।
2. महिला शिकायतकर्ता के आवेदनोें, मामलों पर तत्परता दिखाये, त्वरित कार्रवाई करे।
3. मामले का ससमय निपटारा करने में गति दिखाए।
4. विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत एनजीओ को समुचित प्रशिक्षण मिले। निगरानी समिति को जागरूक करें।
5. पंचायत प्रतिनिधियों के साथ समन्वय बनाया जाये।
6. अनाथ बच्चों, महिलाओं के लिए आवासीय और स्वास्थ्य सुविधाओं वाले केंद्र बनें।
7. शैक्षणिक रूप से ऐसे केंद्रों में रहने वाली महिलाओं को सबल और आत्मनिर्भर बनाया जाए।
8. अल्ट्रासाउण्ड मशीन रखने वालों के लिए निबंधन अनिवार्य शर्त हो। इसके लिए सहिया/आशा, पंचायत प्रतिनिधियों, एनजीओ की मदद लें।
9. निर्धारित फाॅर्मेट का भराव और उनका संग्रहण, विश्लेषण।
10. अल्ट्रासाउण्ड केंद्रों का लगातार निरीक्षण। गलती किए जाने पर दण्ड का प्रावधान।
11. जिला सलाहकार समिति की लगातार बैठक तय हो।
12. अल्ट्रासाउण्ड केंद्र खोले जाने के लिए शुल्क का निर्धारण। .

समापन सत्र को संबोधित करते हुए डाॅ हेमलता मोहन ने कहा कि समाज में हर कोई  इस चुनौती का सामना कर रहा है। कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़े भयावह हो रहे हैं। हमें यह परस्पर सुनिश्चित करना है कि जो भी प्रावधान पीसीपीएनडीटी एक्ट में तय किए गए हैं, उस पर जवाबदेही लेते हुए काम करें। हममें से हर कोई सक्षम है, इसका सदुपयोग करें। जहां कहीं अवैध अल्ट्रासाउण्ड सेंटर्स हैं, उसके खिलाफ आगे बढ़ें, उपयुक्त मंच पर शिकायत करें। आवश्यकता पड़ने पर महिला आयोग को लिखें। विमेन पावर नेटवर्क से जुड़ें। इसे मजबूत करें। जो भी सदस्य बनें, वे शपथ लें कि प्रत्येक माह कम से कम तीन ऐसे केस की पहचान करेंगे जिससे पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रभावी बनाया जा सके। विमेंस नेटवर्क के जरिए हमारा प्रयास पंचायत प्रतिनिधियों तक जाने का भी है। अगर हर नागरिक सक्रिय हो जाए तो प्रयास रंग लाएगा। यहां मिले अनुभवांे, सुझावों को महिला आयोग धरातल पर उतारने के लिए पहल करेगा।
.....................................

रिपोर्ट प्रस्तुति - अमित कुमार झा,  7209430552,
email- amitjha17700@gmail.com