Sunday 2 September 2012

तेजी की कोशिशों से तेज हुआ विकास


महिला सामाख्या से जुड़ी किस्पोट्टा ने ग्रामसभा को मजबूत बनाने का काम किया
।।रजनीश आनंद।।
प्रभात खबर डॉट काम
सत्ता के सफल विकेंद्रीकरण के लिए मजबूत पंचायत गांधीजी का सपना था. 100 प्रतिशत तो नहीं लेकिन काफी हद तक रांची जिले की खलारी पंचायत में यह सपना साकार होता दिख रहा है. खलारी पंचायत में एक गांव व नौ टोले हैं. यहां की मुखिया हैं - तेजी किस्पोट्टा. 2010 के पंचायत चुनाव में मुखिया चुनी गयीं तेजी की कोशिशों से अब यहां हर महीने ग्रामसभा होती है. गांव को लोग इसमें शामिल होते हैं और विभिन्न मुद्दों व योजनाओं पर आपसी विचार-विमर्श कर फैसले लेते हैं.
मनरेगा के कार्यो को भी यहीं से स्वीकृति मिलती है. तेजी के अनुसार यहां हर महीने तीन बैठकें होती हैं. पहली बैठक ग्रामसभा की, जिसमें ग्रामीण शामिल होते हैं; दूसरी बैठक पंचायत की, जिसमें वार्ड सदस्य शामिल होते हैं; तीसरी बैठक पंचायत समन्वय समिति की जिसमें पंचायत स्तर के सभी सदस्य शामिल होते हैं. ग्रामसभा में में जिस काम पर स्वीकृति मिलती है, उसी पर अमल होता है.

तेजी किस्पोट्टा बताती हैं कि विकास कार्यो को संचालित करने में शुरुआती दौर में काफी परेशानी आयी. ग्रामीण सरकारी योजनाओं के प्रति इतने उदासीन थे कि वे सहजता से इस बात को स्वीकार नहीं करते कि कोई कल्याणकारी योजना उनका भला नहीं कर सकती है. इस स्थिति में उन्हें काफी समझाना पड़ता था, जो काफी चुनौतीपूर्ण था. लेकिन अब परिस्थितियां बदली हैं और लोग विकास योजनाओं से जुड़ने लगे हैं. तेजी के अनुसार, जब वे मुखिया बनीं, उस वक्त 2005 की योजनाएं लंबित थीं, लेकिन अब पंचायत में कोई भी योजना लंबित नहीं है. अब तो वित्तीय वर्ष 2012-13 की योजनाओं की स्वीकृति का इंतजार है.

गांव में आज मनरेगा के तहत बनी सड़क व कुआं है. मोरम पथ का भी समतलीकरण किया गया है. इसके अलावा मुखिया के प्रयासों से जन वितरण प्रणाली की दुकानों को भी काफी हद तक दुरुस्त किया गया है. अब इन दुकानों का ऑडिट पंचायत करती है. जब दुकानदार अनाज का उठाव व वितरण करते हैं, उस वक्त जनप्रतिनिधि उपस्थित रहते हैं, ताकि लाभुकों के साथ कोई अन्याय या भेदभाव नहीं हो. मुखिया के प्रयास से गांव में एक प्राथमिक नवसृजित विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. गौरतलब है कि यह गांव का एकमात्र विद्यालय है, लेकिन अभी तक विद्यालय भवन की उचित व्यवस्था नहीं हो सकी है. इसके कारण बच्चे पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ते हैं. हालांकि बरसात के दिनों में एक खाली पड़े कमरे में कक्षाएं संचालित की जाती हैं. मुखिया बताती हैं कि फंड की कमी के कारण विद्यालय भवन का निर्माण नहीं हो सका है. पंचायत सदस्य विद्यालय में संचालित मध्याह्न् भोजन योजना पर भी नजर रखते हैं और कोशिश करते हैं बच्चों को उचित पोषाहार मिले.
मुखिया की एक और उपलब्धि है - उनके द्वारा गठित 15 स्वयं सहायता समूह. ये स्वयं सहायता समूह महिलाओं के सशक्तीकरण में जुटे हैं. महिलाओं को आर्थिक रूप से सबल बनाना इस समूह का लक्ष्य है. इसके अतिरिक्त पंचायत में किशोर-किशोरी मंच का भी गठन किया गया है, जो युवाओं से संबंधित कार्य में जुटे हैं. स्वयं सहायता समूह के कार्य पंचायत स्तर पर बदलाव को रेखांकित कर रहे हैं.
पंचायत में मुख्यमंत्री दाल-भात योजना का संचालन बखूबी हो रहा है. साथ ही आगंनबाड़ी केंद्र भी सजगता से काम कर रहा है. मुखिया की कोशिशों से नारी अदालत का भी यहां आयोजन किया जाता है. इसमें महिलाओं से संबंधित समस्याओं का समाधान किया जाता है. साथ ही भूमि से जुड़े विवाद भी सुलझाये जाते हैं. मुखिया बताती हैं कि पंचायत भवन को लेकर कोई समस्या नहीं है. पंचायत सचिवालय के लिए लगभग चार लाख रुपये मिले थे, जिनकी मदद से दो मंजिला भवन का निर्माण कराया गया है. साथ ही आवश्यक फर्नीचर, एक कंप्यूटर, एक फोटोकॉपी मशीन और जेनेरेटर, दरी खरीदी गयी है. पंचायत भवन में बनाये गये हॉल में 500 लोगों के बैठने की जगह है. किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड भी दिलवाया गया है व उन्हें बीज मुहैया कराने की भी व्यवस्था की गयी है. पंचायत दिवस गुरुवार के दिन सभी कर्मचारी पंचायत सचिवालय आते हैं.

तेजी बताती हैं कि ग्रामीणों को पंचातय से काफी आशाएं हैं, लेकिन सबों की हर अपेक्षा पूरा नहीं कर पाने के कारण लोग नाराज भी होते हैं. किस्पोट्टा मुखिया बनने से पहले महिला सामाख्या की सहयोगिनी के रूप में कार्य करती थीं. उस दौरान उन्होंने महसूस किया कि विकास योजनाओं का लाभ लाभुकों को नहीं मिल पाता है. दलाल योजनाओं का लाभ ग्रामीणों तक नहीं पहुंचने देते थे. इसी कारण आम जनता के लिए कुछ करने की प्रेरणा से बीए तक शिक्षित तेजी किस्पोट्टा पंचायत चुनाव लड़ीं और मुखिया चुनी गयीं. दिलचस्प बात यह कि तेजी की पंचायत के कुल नौ वार्ड सदस्यं में सात महिलाएं हैं.
(पंचायतनामा से साभार)


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