Sunday 2 September 2012

300 लखपतियों की पंचायत है बांक

देवघर के मोहनपुर प्रखंड का सबसे समृद्घशाली पंचायत है यह. घोरमारा पेड़ा बाजार है इस पंचायत का प्रमुख उद्योग. देश-विदेश के लोग रुकते हैं पंचायत में.
उमेश यादव
मोहनपुर प्रखंड का बांक पंचायत. इस पंचायत की नाम जितनी छोटी है, दर्शन उतने ही बड़े हैं. तीन प्लेटफॉर्म वाला रेलवे स्टेशन, स्टेट हाइवे, डाकघर, दो-दो बैंक शाखाएं, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, उच्च विद्यालय, डाक बंगला, बड़े-बड़े तालाब, एक महीने में 10 करोड़ से अधिक का कारोबार करने वाली पेड़ा नगरी, सप्ताह में दो दिन लगने वाली हाट, सभी गांवों में बिजली, 50 प्रतिशत घरों में दूरदर्शन, 300 से ज्यादा सामाचार पत्र एवं पत्रिकाओं के पाठक इसकी समृद्घि बयां करती है.
यह पंचायत देवघर-दुमका स्टेट हाइवे पर 20 वें किलोमीटर पर बसा है. इसके अंतर्गत पांच ग्रामसभा बांक, घोरमारा, चितरपोंका, सरसा एवं बंधुकुरूमटांड़ है. इसके पूरब में दुमका जिले की सीमा, पश्चिम में इसी प्रखंड का घोंघा पंचायत, दक्षिण में रघुनाथपुर पंचायत तो उत्तर में मोरने पंचायत है. पहले इस पंचायत का नाम घोरमारा था. वैसे तो पंचायत के अधिकांश लोगों के लिए जीविकोपाजर्न का मुख्य साधन कृषि है, लेकिन घोरमारा का पेड़ा बाजार सबसे बड़ा उद्योग है. पंचायत की समृद्घि में इस बाजार का बड़ा योगदान है. अपनी विशेषता की वजह से ही लोग इसे पेड़ा नगरी के नाम से जानते हैं.
डबल भुनाई वाला पेड़ा पूरे संताल परगना में सबसे बढ़ियां यहीं पर मिलता है. सावन एवं भादो महीने में इस बाजार की रौनक कुछ ज्यादा ही होती है. बाबा बैद्यनाथधाम और बाबा बासुकीनाथ धाम की यात्र करने वाले कांवरिये प्रसाद स्वरूप यहां के पेड़े की खरीदारी थोक की दर से किया करते हैं. इसमें झारखंड, बंगाल, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ के अलावा पड़ोसी देश नेपाल, भूटान, श्रीलंका के कांवरिये भी शामिल होते हैं. 40 के दशक में एक दुकान से बाजार की शुरुआत सुखाड़ी मंडल ने की थी. आज सावन एवं भादो में 150 से ज्यादा दुकानें लगती है. अपनी गुणवत्ता के कारण ही 50 दुकानें तो स्थायी रूप से सालोंभर चलती है. इस बाजार की बदौलत ही इस पंचायत में कम से कम 200 लोग ऐसे हैं जिसकी हस्ती पांख लाख रुपये से अधिक है. इसके अलावा पंचायत की समृद्घि में सबसे बड़ा योगदान प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की है. इस महाविद्यालय की बदौलत ही पूरे पंचायत में 150 से ज्यादा लोग सरकारी सेवा में है.
वर्ष 1908 में स्थापित प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय जब 1956 में महाविद्यालय में परिणत हुआ तो बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया और शिक्षक बने. इसके बाद तो माहौल ही बदल गया. इसी कॉलेज की बदौलत आज इस पंचायत में शिक्षा के प्रति लोगों में गहरी रुचि है. डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, ऑफिसर, टीचर, वकील आदि सभी पेशे के लोग इस पंचायत में हैं. पंचायत के 25 प्रतिशत युवाओं का पलायन जरूर है, लेकिन मजदूरी करने के लिए नहीं बल्कि ऊंची और व्यवसायिक शिक्षा हासिल करने के लिए. यहां के लड़के एवं लड़कियां रांची, पटना, मुंबई आदि शहरों में ऊंची शिक्षा हासिल कर रही हैं. राजनीति में कोई खास पहचान नहीं है, लेकिन अखिलेश्वर मंडल, चतुभरुज मंडल, गजाधर, बिरजा मिधाईन, रामकुमार, महेश मंडल, राजेंद्र मंडल, किशोरी मंडल, वंशीधर मंडल, गोदावरी मंडल, जोहरी मंडल आदि स्वतंत्रता सेनानी यहां पर थे. इसके अलावा वर्तमान में आरएसएस का गढ़ भी कहा जाता है. लोग बताते हैं कि जोहरी मंडल आजादी के बाद से लेकर 1972 तक मुखिया रहे और उन्होंने ही विकास का बीजा बोया था. सामाजिक स्थिति पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा आबादी पिछड़ी जातियों की है. उनका रहन-सहन बाकी से बेहतर है, लेकिन अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों का जीवनस्तर आज भी काफी नीचे हैं. पैसे के अभाव में कई अनुसूचित जाति परिवार की बेटियों का ब्याह नहीं हो पा रहा है. कृषि योग्य जमीन इनके पास नहीं के बराबर है और मेहनत-मजदूरी ही उनका मुख्य पेशा है. पंचायत में 500 हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है, लेकिन पर्याप्त सिंचाई सुविधा के अभाव में सालोंभर खेती नहीं हो पाती है. हालांकि मनरेगा से बने 45 कुओं और 9 तालाबों ने कृषि के विस्तार में योगदान दिया है.
(पंचायतनामा से साभार)
This Article Posted on: August 17th, 2012 in PANCHAYATNAMA

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