राहुल सिंह
राजधानी रांची से सटी पंचायत है खिजरी. नामकुम प्रखंड क्षेत्र में आने वाली इस पंचायत के नया टोला की आरती देवी की जिंदगी अब घर-परिवार व बाों तक सीमित नहीं है. आरती अब गांव में जल प्रबंधन का काम देखती हैं. उनके सरोकार अब एक सामान्य गृहिणी से ब.डे हैं. वे लोगों को पानी का बिल भी थमाती हैं और शुल्क की वसूली भी करती हैं. दरअसल उनके यहां ग्रामीण पेयजलापूर्ति योजना संचालित होती है. और जल सहिया होने के कारण उनके ऊपर यह जिम्मेवारी है कि वे पेयजल आपूर्ति के प्रबंधन को संभालें. पिछले साल आरती की सक्रियता से 67, 448 रुपये जल कर के रूप में वसूले गये. इस उपलब्धि के एवज में इस पंचायत को 70 हजार रुपये अनुदान के रूप में भी सरकार की ओर से मिले. आरती और उनकी पंचायत की मुखिया झौंरो देवी की साझीदारी में पेयजल एवं स्वच्छता समिति का बैंक खाता संचालित होता है, जिसमें जल कर व अन्य स्रोतों से आने वाले पैसों को रखा जाता है.
आरती को लोगों को घर तक जाकर बिल थमाने व पैसे मांगने में कोई हिचक नहीं होती. वह लोगों को बिना कनेक्शन के पानी लेने के लिए सचेत भी करती हैं. वे बताती हैं कि दो-तीन ऐसे लोगों को इसके लिए हिदायत दी गयी है. हर घर से 62 रुपये जलकर के रूप में वसूला जाता है. उन्हें इसके एवज में 10 प्रतिशत कमीशन भी मिलता है.
यह बदलाव राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के उस दिशा-निर्देश जिसमेंपेयजल के लिए जमीनी स्तर पर लोगों की सहभागिता बढ.ाने व पंचायत प्रप्रतिनिधियों की भागीदारी बढ.ाने की बात कही गयी है पर झारखंड के रणनीतिक ढंग से अमल करने के कारण ही आया है. झारखंड देश का पहला और एकमात्र राज्य है, जहां राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की सहिया के तर्ज पर पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने राज्य में जल सहिया बनाने की प्रक्रिया शुरू की. इसके लिए हर राजस्व ग्राम में ग्रामसभा करायी गयी व जल सहिया का चयन किया गया. इस प्रक्रिया में राज्य में गठित पंचायत निकायों को भी इसका भागीदार बनाया गया. जल सहिया के चयन के लिए यह अनिवार्य किया गया कि महिला गांव की बहू हो व उसे इस काम में रुचि हो और अपेक्षाकृत कम उम्र की भी हो. राज्य में लगभग 32 हजार जल सहिया हैं. इससे पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने बिना ब.डे पैमाने पर नियुक्ति किये जमीनी स्तर पर पानी के लिए काम करने वाले लोगों का एक बड़ा नेटवर्कतैयार कर लिया. जल सहिया के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन प्रखंड स्तर पर किया गया. प्रशिक्षण के दौरान यह भी समझने की कोशिश की जाती है कि वे कितना काम कर सकती हैं. फिलहाल उन्हें पेयजल के लिए दो तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है : एक जल की गुणवत्ता जांच की और दूसरा चापानल मरम्मत की. निर्मल भारत अभियान के झारखंड समन्वयक डॉ रवींद्र वोहरा के अनुसार, यूनीसेफ के माध्यम से जल सहिया के प्रशिक्षण के लिए एक मार्गदर्शिका बनवायी गयी है, जिसमें सहज ढंग से यह बताया गया है कि वे कैसे काम कर सकती हैं. यह भी कोशिश होती है कि जल सहिया को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार किये जाने वाले ट्रेनर भी अधिक से अधिक महिला हों. तमिलनाडु की सरकारी एजेंसी टाटबोर्ड से भी प्रशिक्षण कार्य में सहयोग लिया गया. हर जल सहिया को एक फिल्ड टेस्ट किट भी दिया जाता है. जिसके माध्यम से वे जल का परीक्षण कर सकती है और यह पता लगा सकती हैं कि पानी कैसा है और उसमें क्या गड़बड़िया हैं. फिल्ड टेस्ट किट के काम करने का तरीका ऐसा है कि सामान्य जानकारी रखने वाली महिला भी आसानी से पानी का जांच कर लें. जांच के दौरान पानी का रंग देख यह पता चल जाता है कि अमुक चापानल का पानी पीने योग्य है या नहीं. खराब पानी वाले चापानल का मुंह लाल रंग से रंग दिया जाता है.
रांची जिले के बेड़ो प्रखंड की तुतलो पंचायत के पोटपाली गांव की जल सहिया बेला उरांव बताती हैं कि वे जल जांच कर बेड़ो स्थित पीएचइडी कार्यालय में रिपोर्ट भेजती हैं. वे ब.डे आत्मविश्वास से कहती हैं कि हम पानी के पीएच, आयरन, फ्लोराइड व नाइट्रेट की मात्रा की जांच करते हैं. हालांकि वे पारिश्रमिक व उसके भुगतान के तरीके से संतुष्ट नहीं हैं. बेड़ो के ही मसियातू गांव की जल सहिया सबीना परवीन अब अपनी जमीन पर खेतीबाड़ी करने के साथ ही गांव पानी की जांच भी करती है. सबीना पिछले छह महीने से यह काम कर रही हैं. नावाटांड़ की जलसहिया नरगीस भी अब लोगों को पानी के लिए सचेत करती हैं. वे अब यह पता लगाने में सक्षम हैं कि किस चापानल का पानी अच्छा है और किसका खराब.
हालांकि अधिक शारीरिक मेहनत लगने के कारण चापानल निर्माण में महिलाओं के कम रुचि लेने के मामले भी हैं. फिर भी पानी को लेकर राज्य के गांवों में महिलाओं की सक्रियता बढ.ी है. जनजातीय क्षेत्रों में महिलाएं चापानल मरम्मत में वे ज्यादा रुचि ले रही हैं.
दो पंचायतों में है दिक्कत : रामदेव सिंह, जिप सदस्य, लातेहार घर में : मेरे घर के पास एक चाचा की जमीन पर एक चापानल है. हमलोग पेयजल के लिए उसी पर निर्भर हैं. पानी की हमारे यहां दिक्कत नहीं है और उसके चलते किसी तरह की शिकायत भी नहीं आयी है. क्षेत्र में : हमारे क्षेत्र के कुछ क्षेत्र में पानी की दिक्कत है. सरजू एक्शन प्लान में पड़ने वाली बेंदी पंचायत के साथ ही तरवाडीह में पेयजल की दिक्कत है. बेंदी पंचायत में सरजू क्षेत्र में आता है, जो विशेष कार्य के लिए चुना गया है, फिर भी वहां पानी के लिए बेहतर काम नहीं हो सका है. हमारा क्षेत्र पठारी है. इसलिए यहां 15 फीट की खुदाई के बाद पत्थर मिलता है. ऐसे में बोरवेल के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था यहां ज्यादा सफल होती है. क्षेत्र में कई जगह पेयजल की व्यवस्था दुरुस्त करने की जरूरत है. यहां के लोग पीने के पानी के लिए कुआं व चापानल पर भी मुख्य रूप से निर्भर हैं. एक पंचायत में जलापूर्ति व्यवस्था : शम्शुल होदा, उपप्रमुख, लातेहार घर में : मेरे घर में एक चापानल है. हमलोग उसी का पानी पीते हैं. पेयजल को लेकर ज्यादा दिक्कत नहीं होती. कभी-कभी व गरमी काफी बढ.ने पर जरूर दिक्कत होती है. क्षेत्र में : हमारे क्षेत्र में पेयजल के लिए लोग मुख्य रूप से कुआ व चापानल पर निर्भर हैं. मैं इचाक ग्राम पंचायत क्षेत्र से आता हूं. यहां हाल में मिनी वाटर सप्लाई का काम हुआ है. इसके तहत एक हार्स पॉवर क्षमता की मोटर सोलर प्लेट से चलायी जाती है. जल सहिया के माध्यम से इसका प्रबंधन किया जाता है व व्यवस्था देखी जाती है. हालांकि पंचायत समिति में अबतक पेयजल एवं स्वच्छता का गठन नहीं हो सका है. मुझे लगता है कि जल सहिया की व्यवस्था को ज्यादा गतिशील बनाने से पेयजल से जुड़ी समस्या का बहुत हद तक निदान संभव हो जायेगा. चापानल-कुओं करायी मरम्मत : रामेश्वर सिंह, मुखिया, हेठपोचरा, लातेहार घर में : हमलोग अपने घर के चापानल का पानी पीते हैं. इसमें किसी तरह की दिक्कत नहीं है. हमें पेयजल की किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है. क्षेत्र में : मेरे पंचायत क्षेत्र में नौ राजस्व गांव हैं. सभी राजस्व गांव में जल सहिया का निर्वाचित किया गया है. जिन गांवों में पानी की दिक्कत है, हम वहां कुआं बनवा रहे हैं. ताकि सिंचाई व पेयजल दोनों की सुविधा उपलब्ध हो जाये. आपदा मद से मिले दो लाख रुपये से हमलोगों ने खराब चापानल व जर्जर कुओं की मरम्मत करायी. जलछाजन के लिए भी हमलोगों ने गांव में व्यवस्था बनायी है. कई जगह क्षतिग्रस्त बांध को बनवाया है.
साभार- पंचायतनामा, 28.01.13
|
Saturday, 2 February 2013
महिलाओं के हाथ में गांव का पानी प्रबंधन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment