।।उमेश यादव।।
आधा सावन बीत गया तब सरकार को कृषि की चिंता हुई. सुखाड़ को लेकर कैबिनेट में चर्चा की. इसके प्रभाव के आकलन के लिए टास्क फॉर्स का गठन किया और अधिकारियों को वैकल्पिक खेती पर ध्यान देने का आदेश दिया. लेकिन दुमका जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर माथाकेशो पंचायत के मानिकलाल मरांडी ने मुखिया बनते ही इस चीज को भांप लिया था और इसकी तैयारी में जुट गये थे.
आधा सावन बीत गया तब सरकार को कृषि की चिंता हुई. सुखाड़ को लेकर कैबिनेट में चर्चा की. इसके प्रभाव के आकलन के लिए टास्क फॉर्स का गठन किया और अधिकारियों को वैकल्पिक खेती पर ध्यान देने का आदेश दिया. लेकिन दुमका जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर माथाकेशो पंचायत के मानिकलाल मरांडी ने मुखिया बनते ही इस चीज को भांप लिया था और इसकी तैयारी में जुट गये थे.
मुखिया बनते ही उन्होंने जल प्रबंधन को अपनी प्राथमिकता सूची में रखा. डेढ़ साल में 12 तालाब (परासदह, चैनपुर एवं जमुनियां में दो-दो, सलैया में तीन और बाघमारी एवं माथाकेशो में एक-एक) और 20 कुआं का निर्माण कराया. इसमें वे कूप भी शामिल हैं जो पहले से आधे-अधूरे पड़े थे. यह इसलिए किया क्योंकि वे मानते हैं कि कृषि के विकास के बिना पंचायत की गरीबी दूर नहीं हो सकती और खेतीबारी तभी हो सकती है जब पर्याप्त सिंचाई के साधन होंगे. मुखिया ने जैसा सोचा हुआ भी वैसा ही. इन कूपों से रबी फसल एवं सब्जी की बंपर पैदावार हुई. पिछले साल लगभग 60 बीघा में सिर्फ टमाटर लगा था. इस साल 20 हेक्टेयर में फिर सब्जी की खेती की योजना बन चुकी है. आज इस पंचायत के लोगों को सुखाड़ की उतनी चिंता नहीं है जितनी दूसरी जगहों पर हो रही है. इसकी वजह है पूरे पंचायत के 1000 बीघा में लगे मकई के फसल. लगभग सवा सौ एकड़ भू-भाग पर मकई का फसल तो सिर्फ माथाकेशो गांव में लगा है.
इस गांव में मकई का आच्छादन इस प्रकार है कि गांव के मुख्य चौराहे पर खड़ा हो जाने पर जहां तक नजर जाती है सिर्फ मकई ही मकई दिखता है. इसके अलावा माथाकेशों पंचायत के विभिन्न गांवों में कद्दू एवं बैगन भी खूब लगाया जाता है. यह इस गांव के मिथिलेश यादव के खेत देखने से ही पता चलता है. मिथिलेश के खेत में कद्दू की लतों के लिए मोटे-मोटे बांस के खंभे लगाये गये हैं. जबकि ऐसे खंभों से गांवों में लोगों के घर बना करते हैं. ऐसे समय में जब राज्य की अधिकतर पंचायतें सुखाड़ से निपटने में राज्य सरकार का मुंह ताक रही है माथाकेशों के मुखिया एवं वहां की हजारों जनता सुखाड़ से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और इस लड़ाई का औजार बनाया है. अल्पवृष्टि में उपजने वाले फसल को.
हम बदलेंगे तो जग बदलेगा की तर्ज पर काम करने वाले कम ही होते हैं, लेकिन माथाकेशो पंचायत के मुखिया मानिकलाल मरांडी ने पहले अपने आप को बदला फिर गांव को. वर्ष 2004 से पहले इनका गांव जमुनियां जिले के अति पिछड़े गांव की श्रेणी में आता था. खरीफ की फसल के बाद की स्थिति यह होती थी जैसे गांव वाले बाकी कुछ जानते ही नहीं हैं. लेकिन अब इनका गांव जिले में चर्चित है. वर्ष 2004 में मानिकलाल ने राष्ट्रीय बागवानी मिशन से गांव के अपने एक हेक्टेयर बंजर जमीन पर 236 आम, 200 अमरूद, 100 नींबू और कुछ लीची का पौधा लगाया. एक साल बाद ही पूरा दृश्य बदल गया और फल मिलने लगे. इसके साथ ही इसी जमीन में तालाब खुदवाया और मत्स्य पालन शुरू किया. मुर्गी और सुअर भी पाले.
पहले के गायों एवं भैंसों को इसी जमीन पर ले आया. आम एवं अमरूद के पेड़ों के बीच ही टमाटर की खेती की. देखते ही देखते उनकी बंजर जमीन कृषि पार्क में तब्दील हो गया. इसे देखने और प्रशिक्षण लेने के लिए आसपास गांवों के लोगों के अलावा दूर-दराज के लोग भी आने लगे. 2005 में कृषि मंत्री नलिन सोरेन भी गांव पहुंचे और मानिकलाल के काम की सराहना की. मानिकलाल की आमदनी हजारों से लाखों में बदल गयी. इस काम की इतनी चर्चा हुई कि वर्ष 2006 में मानिकलाल को दुमका जिले के उत्कृष्ट किसान का पुरस्कार मिल गया. इसके बाद मानिकलाल ने वर्ष 2006-07 में गांव के अन्य 20 किसानों को बागवानी के लिए प्रेरित किया और दूसरे प्लॉटों पर चार हजार पौधे लगवाये. वर्ष 2011 में इस गांव का चयन नाबार्ड ने टीडीएफ की बाड़ी योजना के तहत कर लिया है और 40 ग्रामीणों के प्लॉटों पर फलदार वृक्ष लगाये गये हैं. नाबार्ड की इस पंचवर्षीय योजना का कार्यान्वयन एनजीओ चेतना विकास कर रही है, लेकिन ग्रामीणों को बागवानी के लिए मानसिक रूप से तैयार करने का काम मुखिया मानिकलाल ने ही किया है. वर्तमान में स्थिति यह है कि जिस गांव के लोग खरीफ के बाद कुछ नहीं जानते थे वहां मानिकलाल की तरह ही सभी रबी फसल एवं सब्जी की खेती के अलावा बागवानी, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, सुअर पालन, गौ पालन पर ध्यान दे रहे हैं.
(पंचायतनामा से साभार)
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