Thursday, 11 July 2013

पहली वर्षगांठ पर सेमिनार का निमंत्रण

जुलाई 2013 में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर ने अपना पहला वर्ष पूरा कर लिया है। सर्ड, यूनिसेफ, झारखंड राज्य महिला आयोग एवं मंथन युवा संस्थान की संयुक्त पहल से संचालित यह सेंटर राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, साउथ कैंपस, काजू बगान, हेहल, रांची में स्थापित है।

पहली वर्षगांठ के मौके पर 25 जुलाई 2013 को होटल अशोका, डोरंडा रांची में सुबह दस बजे से एक सेमिनार का आयोजन किया गया है। इसमें झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर की गतिविधियों एवं उपलब्धियों के साथ ही झारखंड में पंचायती राज संस्थाओं को विभिन्न विभागों द्वारा प्रदान की गयी शक्तियों पर विचार किया जायेगा। इस सेमिनार में विशिष्ट वक्ता के रूप में इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के निदेशक श्री जार्ज मैथ्यू शामिल होंगे। श्री मैथ्यू पंचायती राज के जाने-माने विशेषज्ञ हैं।

इस सेमिनार में विभागीय नामांकन के आधार पर आमंत्रण भेजा जा रहा है। इसमें कुछ पंचायत प्रतिनिधियों, पंचायत से जुड़े एनजीओ व पदाधिकारियों को आमंत्रित किया गया है।

अगर आप इस सेमिनार में शामिल होना चाहते हों तो कृपया 18 जुलाई तक ई-मेल द्वारा jpwrc4@gmail.com    पर अथवा मोबाइल संख्या 9431120500 पर अपना नाम, पद, पता एवं संपर्क विवरण अवश्य उपलब्ध करा दें ताकि आपको विधिवत आमंत्रण भेजा जा सके।

झारखंड में पंचायती राज संस्थाओं को प्रभावी बनाने की दिशा में आपके सुझावों का स्वागत है।

Thursday, 4 July 2013

पंचायत के रोडमैप पर कार्यशाला

सर्ड में 03-04 जुलाई को पंचायत के रोडमैप पर दो दिवसीय कार्यशाला संपन्न हुई। प्रारंभ में सर्ड के निदेशक श्री आर.पी. सिंह ने स्वागत करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। कार्यशाला का उद्घाटन राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री एस.डी. शर्मा ने किया। पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव श्री एल. ख्यांग्ते, यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जाॅब जकारिया, पंचायती राज विशेषज्ञ प्रो. एस.के. सिंह तथा विकास भारती के सचिव श्री अशोक भगत इसमें विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। उद्घाटन सत्र का संचालन श्री दीपांकर श्रीज्ञान एवं डाॅ विष्णु राजगढि़या ने किया।
उदघाटन करते हुए श्री एसडी शर्मा ने राज्य में पंचायत का रोडमैप बनाने तथा पंचायतों को वास्तविक शक्तियां सौंपने का सुझाव दिया।
यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जाॅब जकारिया ने पंचायतों को अगले दस साल का विजन दस्तावेज बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि हर मामले में किन एजेंसियों की भूमिका क्या हो तथा विभिन्न कार्य किस तरह से किये जाने चाहिए, इसके संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने से ही पंचायतों का विकास हो सकता है।
प्रथम सत्र में चर्चा का विषय था- झारखंड में पंचायती राज की वर्तमान स्थिति। इस सत्र की अध्यक्षता यूनिसेफ के कार्यक्रम अधिकारी श्री प्रेमचंद कुमार ने की। संचालन श्री अजीत कुमार सिंह ने किया।
दूसरे सत्र का विषय था- झारखंड में पंचायतों को शक्तियों का प्रत्यायोजन। इस सत्र की अध्यक्षता श्री बलराम ने की तथा संचालन श्री गुरजीत ने किया।
कार्यशाला के दूसरे दिन तीसरे सत्र में पेसा कानून तथा चैथे में ग्राम सभा सशक्तिकरण पर चर्चा हुई। दोनों सत्रों की अध्यक्षता प्रो एसके सिंह ने की तथा संचालन श्री अजीत कुमार सिंह ने किया। पांचवें सत्र में पंचायत के रोडमैप पर चर्चा की अध्यक्षता सर्ड के डिप्टी डायरेक्टर श्री महादेव धान ने की तथा संचालन श्री निखिलेश एवं श्रीमती रिचा चैधरी ने किया।
कार्यक्रम के दौरान पांच महिला पंचायत प्रतिनिधियों को सम्मानित किया गया। साथ ही, सर्ड परिसर में विकास भारती के स्टाॅल का उद्घाटन भी किया गया। कार्यशाला में विभिन्न जिलों से आये पंचायती राज पदाधिकारी एवं त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ ही एनजीओ प्रतिनिधि तथा पेसा क्षेत्रों के पाहन व प्रधान शामिल थे।

पंचायत पर राज्यपाल ने दिये निर्देश

राजभवन में चार जुलाई 2013 को माननीय राज्यपाल डा0 सैयद अहमद ने पंचायती राज पर समीक्षा बैठक की। इसमें राज्यपाल के परामर्शी श्री मधुकर गुप्ता, पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव श्री एल. खियांग्ते, राज्यपाल के प्रधान सचिव श्री एन.एन. सिन्हा शामिल हुए। माननीय राज्यपाल ने मुख्यतः ये निर्देश दिये-
1. जिन विभागों के जो कार्य पंचायत स्तर पर होने हैं, उस संबंध में हर विभाग तत्काल पत्र/सूचना निर्गत करें। इसकी प्रति पंचायती राज विभाग को भी भेजे।
2. पंचायती राज के प्रधान सचिव स्वयं भी पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग, मानव संसाधन विकास विभाग, स्वास्थ्य विभाग, पशुपालन एवं मत्स्य विभाग, जल संसाधन विभाग, कृषि एवं गन्ना विकास विभाग, उद्योग विभाग तथा समाज कल्याण विभाग से सम्पर्क कर गाइडलाईन निर्गत करायें।
3. वन एवं पर्यावरण तथा राजस्व विभाग में पंचायत को जो काम सौंपने हैं, उसकी समीक्षा करके पंचायती राज विभाग उन विभागों को आवश्यक निर्देश दे।
4. पंचायत प्रतिनिधियों की क्षमता-वृद्धि एवं प्रशिक्षण के कार्य हों, ताकि पंचायत अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन अच्छी तरह कर सकें।
5. पंचायती राज विभाग अपने कार्य में चुस्ती लाये तथा विभाग के रिक्त पदों को शीघ्र भरे।
6. पंचायत भवनों के निर्माण तथा वहां प्रज्ञा केन्द्र खोलने में तीव्रता लायें।
7. पंचायत संबंधी योजना सभी जिलों से मंगाकर प्रमण्डल स्तर पर समीक्षा करें।

Sunday, 16 June 2013

मनरेगा पर पुस्तक का विमोचन

31 May - मनरेगा पर पुस्तक का विमोचन आज राज्यपाल ने एटीआइ में किया। राजकमल प्रकाशन से आयी इस पुस्तक का नाम संगीतमय है- मन-रे-गा ......... इस धुन पर एक गीत भी है। चित्र में श्री एके पांडेय, श्री मधुकर गुप्ता, राज्यपाल डा सैयद अहमद, श्री विजय कुमार, श्री एके सरकार, श्री आरएस पोद्दार और मैं।

नागरिकों का एक समूह बने

जमशेदपुर जिला परिषद एवं घाटशिला पंचायत समिति की सदस्यों ने 13 एवं 14 मई को बताया कि पंचायती राज को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं। हमें पंचायत प्रतिनिधियों की मदद करनी चाहिए। नागरिकों का एक समूह बने जो उन्हें लिखा-पढ़ी में मदद करे।






पंचायत की शक्तियां

आठ मई को पुस्तक - ’’पंचायत की शक्तियां’’ का विमोचन हुआ। विकास भारती, रांची में ग्राम सरकार संवाद के दौरान पंचायती राज सचिव डा. राजीव अरुण एक्का के साथ श्री अशोक भगत, शिवशंकर उरांव और डा. अजय सिंह

Sunday, 12 May 2013

जलसहिया के हाथ कमान

झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर की टीम ने दो अप्रैल 2013 को रांची जिले के अनगड़ा प्रखंड की हेसल पंचायत का दौरा किया।

इस क्रम में नदीम अख्तर ने पब्लिक एजेंडा के लिए हेसल की मुखिया आशा देवी, पंचायत प्रतिनिधियों एवं कई जलसहिया से निर्मल भारत अभियान पर जानकारी लेकर यह रिपोर्ट लिखी है।

नदीम अख़्तर की रिपोर्ट 


झारखंड के गांवों में महिलाओं ने जल-प्रबंधन की कमान थाम ली है। इससे जहां एक ओर स्वच्छता जागरूकता बढ़ रही है, वहीं बहू-बेटियों का आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है। 
अनगड़ा प्रखंड की हेसल पंचायत में जमुआरी गांव के बच्चे दो साल पहले तक लगातार बीमार पड़ते रहते थे। इसी पंचायत के दो बच्चों की मौत पिछले ही साल अचानक हो गयी, तो डॉक्टर भी नहीं बता पाये कि बच्चों की आकस्मिक मृत्यु क्यों हुई। इसके बाद गांव की एक महिला उषा देवी ने गांव के चापानलों की जांच की, तो पता चला कि दस में से सात चापानलों के पानी में 13 एमजी प्रति लीटर की मात्रा में नाइट्रेट मौजूद है। उषा ने लोगों को समझाया कि जिन चापानलों के पानी में अधिक नाइट्रेट है, उसका इस्तेमाल न करें। लेकिन गांव वाले मानने को तैयार नहीं थे। उन्हें लगता था कि गांव की इंटर पास उषा को क्या पता, चापानल से तो पानी साफ आ ही रहा है। फिर इसे पीने में क्या खराबी है? 
उषा को एक साल का समय लगा लोगों को यह समझाने में कि नाइट्रेट के अधिक होने की जानकारी उसे उन उपकरणों से मिली है, जो उसे जल-सहिया बनते ही सरकार ने उपलब्ध कराये थे। धीरे-धीरे गांव के लोगों ने उन सभी चापानलों का इस्तेमाल बंद कर दिया और अब कुछ नये कुओं से पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है। गांव के बच्चे आये दिन बीमार भी नहीं पड़ रहे हैं और पानी की नियमित जांच से समय-समय पर यह पता भी चल रहा है कि कहां से पानी पीना है और कहां से नहीं।यह बदलाव झारखंड के अधिकतर गांवों में आसानी से महसूस किया जा सकता है। राज्य के ग्रामीण इलाकों में पानी प्रबंधन की कमान जल-सहिया बहनों ने अपने हाथों में ले ली है, जिसका फायदा अंततः गांव के लोगों को ही मिल रहा है। 
झारखंड में जल-सहिया की अवधारणा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की "आशा' कार्यकर्ताओं के ही समरूप ली गयी है। राज्य सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के तहत उनकी नियुक्ति ग्राम सभा के माध्यम से होती है। सन् 2012 में उनकी नियुक्ति शुरू हुई थी। झारखंड के 32 हजार गांवों में करीब 23 हजार की ग्राम सभाओं ने अपने यहां की बहू-बेटियों को जल सहिया के रूप में चुन लिया है।यह आवश्यक है कि जल-सहिया कोई महिला ही हो, जो गांव की कोई भी विधवा या विवाहित महिला हो सकती है। उनका चयन स्थायी होता है। यह पद या तो वर्तमान सहिया की मृत्यु या फिर इस्तीफे से ही रिक्त हो सकता है। हां, ग्राम सभा चाहे तो काम के आकलन के बाद उन्हें हटा सकती है, लेकिन अभी तक झारखंड के किसी पंचायत की ग्रामसभा ने एक भी सहिया को बर्खास्त नहीं किया है। सहिया के लिए कम से कम मैट्रिक पास की अनिवार्यता है। 
प्रावधान यह भी है कि गांव में मैट्रिक पास महिला के न होने की स्थिति में आठवीं पास महिला भी जल सहिया बन सकती है। उनकी उम्र 25 से 45 वर्ष के बीच होनी चाहिए।फिलहाल उन्हें कार्य-आधारित प्रोत्साहन-राशि देने का प्रावधान है। जल सहिया को अपने गांव में चापानलों की स्थिति का पता लगाने, विद्यालयों और घरों में शौचालयों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करने, आंगनबाड़ी की भौतिक स्थिति और बच्चों का ठहराव सुनिश्र्चित करने, उपस्थिति शत-प्रतिशत करने के लिए अभिभावकों से संपर्क करने, गांव में गंदे स्थान की सूची बनाने और सबसे अधिक उपयोग वाले चापानलों की सूची तैयार करने के साथ-साथ आम लोगों को खुले में शौच न करने के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। मासू गांव की जल सहिया सरिता बताती हैं कि उन्हें एक चापानल के जांच के बदले 15 रुपये का भुगतान करने का प्रावधान है। लेकिन भुगतान की प्रक्रिया बहुत धीमी है, इसलिए ज्यादातर सहिया को काम के बदले मिलनेवाली प्रोत्साहन राशि के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। 
हेसल की जल-सहिया उषा देवी बताती हैं कि उन्होंने लोगों को खुले में शौच न करने के लिए बहुत प्रेरित किया। कई लोग मान गये। गांव के 56 घरों में लोगों ने टाट का घेराव करके अस्थायी शौचालय बना भी लिया, लेकिन अब लोगों को इंतजार है कि "निर्मल भारत अभियान' के तहत मिलनेवाली राशि उन तक पहुंचे और वे पक्के शौचालय का निर्माण कर सकें।वैसे कुछ गांवों में केंद्रीय राशि लोगों तक पहुंची ही नहीं, इसलिए ज्यादातर घरों में पक्का शौचालय बन नहीं पाया। ऊपर से हाल ही में आयी आंधी-पानी में टाट घेर कर बने अस्थायी शौचालय नष्ट हो गये, तो लोगों ने फिर से खुले में शौच करना शुरू कर दिया है। गांवों में ऐसी स्थिति योजना की खूबी और उसके क्रियान्वयन में सरकारी कार्यप्रणाली की जड़ता को बखूबी दिखाती है। अनगड़ा के हेसल की मुखिया आशा देवी कहती हैं, "कल तक महिलाएं घरों से बाहर नहीं आती थीं, लेकिन आज वे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। राशि के भुगतान की वर्तमान व्यवस्था कारगर नहीं है। 
अगर पंचायत को अधिकार दिया गया है, तो जनप्रतिनिधियों को सरकारी बाबुओं के हाथों की कठपुतली बनाकर क्यों छोड़ दिया गया है? एक-एक काम के लिए बीडीओ-सीओ का मुंह ताकना पड़ता है, जिससे होने वाले विलंब के कारण उत्साह भी जाता रहता है। यह व्यवस्था बदलनी चाहिए।'निर्मल भारत अभियान के राज्य समन्वयक डॉ रवींद्र बोहरा राशि भुगतान न होने के मसले पर कहते हैं, "ज्यादातर भुगतान ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के स्तर से ही होता है, जिसमें ग्राम पंचायत के सदस्य ही होते हैं। असल में अभी लोगों को काम की उपयोगिता से संबंधित औपचारिकताएं पूरी करने की आदत नहीं पड़ी है, जिसके चलते हो सकता है कि किसी एक स्थान पर भुगतान की समस्या हो, लेकिन यह हर जगह नहीं हो रहा है।' जल की उपलब्धता और स्वच्छता का जिम्मा अन्य राज्यों में स्वच्छता-दूत के जिम्मे है। 
झारखंड में महिलाओं के हाथ में यह जिम्मेदारी सौंपने का उद्देश्य यह है कि स्वच्छता और मर्यादा का खयाल परिवार में महिलाएं ही रखती हैं। उन्हें हर रोज तरह-तरह की समस्याओं से दो चार होना पड़ता है इसलिए यह जरूरी भी था कि खुले में शौच जैसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर महिलाएं ही अपने आस-पड़ोस को जागरूक करें। यह काम वे बखूबी कर भी रही हैं। कुल मिलाकर सहिया से झारखंड में महिला सशक्तिकरण का एक द्वार खुला है, जो संभावनाओं को सीमा से पार ले जाने जैसा है।