Sunday 29 July 2012

छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश का मॉडल बेहतर

-आरपी सिंह, निदेशक, सर्ड
 
झारखंड के राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड) के निदेशक राम प्रताप सिंह (आरपी सिंह) अपनी जिम्मेवारियों के प्रति संवेदनशील व समय के पाबंद हैं. गांव के विकास से जुड़े हर बिंदु पर वे मौलिक राय रखते हैं और इसे साझा भी करते हैं. तीन दशकों बाद जब झारखंड में पंचायत राज निकाय का गठन हुआ, तो उसे गति देने के लिए क्षमतावान अधिकारियों की जरूरत महसूस की गयी. ऐसे में लगभग एक साल पहले भारतीय वन सेवा कैडर के अधिकारी राम प्रताप सिंह को राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड) के निदेशक की जिम्मेवारी दी गयी. वे आज अपने अधिकारों व अपनी जिम्मेवारियों के दायरे के भीतर राज्य के पंचायत निकायों को गति देने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. वे मौजूदा दौर को बदलाव का दौर मानते हैं और संवादहीनता को गांव के विकास की सबसे बड़ी बाधा बताते हैं. हमारे संवाददाता सुरेंद्र मोहन ने उनसे गांव, पंचायत, वहां के लोगों व उनके विकास से जुड़े मुद्दों पर खास बातचीत की. प्रस्तुत है उसका प्रमुख अंश :

झारखंड में राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड) किन क्षेत्रों को फोकस कर कार्य कर रहा है?
राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड यानी स्टेट इंस्टीटय़ूट ऑफ रूलर डेवलपमेंट) पूरे राज्य में ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग के सभी फ्लैगशिप कार्यक्रमों के संबंध में क्षमता निर्माण का कार्य करता है.
सर्ड द्वारा अलग-अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं. डेढ़ साल बाद आप पंचायती राज निकाय को कहां पाते हैं? आप इसके प्रशिक्षण कार्यक्रम से भी जुड़े हुए हैं.?
पंचायती राजव ग्रामीण विकास मंत्रलय दोनों विभाग को मिला कर कुल 25-30 कार्यक्रम होते हैं. डेढ़ साल के बाद पंचायती राज के जो निकाय हैं, वे बदलाव के दौर (ट्रांजिशन पीरियड) में हैं और अभी तो खड़ा होने के स्टेज में हैं. सरकार द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को पुन: स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है. 32 वर्षो से यह व्यवस्था ठप पड़ी थी. ऐसे में इसकी तुलना राजस्थान आदि राज्यों के साथ करना उचित नहीं है. लगभर पूरे देश का सर्ड भी पंचायती राज की दिशा में क्षमता निर्माण में लगा हुआ है और यह हमारे लिए रूटीन कार्यक्रम के रूप में चलाया जा रहा है. इसके अलावा मांग आधारित कार्यक्रम भी पंचायती राज के क्षेत्र में आयोजित किये जाते हैं.
पड़ोसी राज्यों की तुलना में हमारे पंचायती राज निकाय को आप कहां पाते हैं? केरल, गुजराज व राजस्थान जैसे राज्य के पंचायती राज निकाय एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक इकाई बन गये हैं, उसकी तुलना में झारखंड की स्थिति क्या है?
पड़ोसी राज्यों में पंचायत की व्यवस्था बिना किसी अवरोध के चल रही है, परंतु हमारे यहां बीच में एक बहुत बड़ा अंतराल हो गया था. ऐसी स्थिति में जो पड़ोसी राज्य हैं, उनके पंचायत निकाय का कार्य स्वाभाविक रूप से बेहतर है.
वहीं केरल, गुजरात, राजस्थान के पंचायती राज निकाय अवश्य ही अच्छे काम कर रहे हैं. हमारा भी प्रयास है कि हम अपने निकाय को उनके स्तर पर ले जायें. इसके लिए सर्ड द्वारा प्रयास किया जा रहा है कि हम अपने चयनित प्रतिनिधियों को इन राज्यों के भ्रमण पर ले जायें और साथ ही साथ राष्ट्रीय स्तर के अच्छे प्रशिक्षण संस्थान उदाहरण स्वरूप राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान हैदराबाद, टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोसल साइंस मुंबई, केरल इंस्टीच्यूट ऑफ लोकल एडमिनिस्ट्रेशन, सर्ड मैसूर, एटीआइ राजस्थान, जयपुर में हम इन्हें भेज कर प्रशिक्षित भी करायें. यह काम सर्ड, पंचायती राज विभाग के साथ मिलकर करायेगा.
झारखंड में पंचायती राज निकाय को मजबूत करने के लिए कौन से प्रभावी कदम उठाये जा सकते हैं? डेढ़ सालों से राजस्थान मॉडल की चर्चा है. एक ऐसा राज्य जहां 27 प्रतिशत जनजातीय आबादी है व पेसा कानून लागू है, क्या उस राज्य को खुद का एक मॉडल नहीं तैयार करना चाहिए?
पंचायती राज निदेशालय, सर्ड, सेंट्रल ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट (सीटीआइ) और पंचायत ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट (पीटीआइ) जसीडीह जैसे संस्थानों को मजबूत करना होगा. ये संस्थान बीच में पंचायती राज व्यवस्था नहीं रहने के कारण कमजोर पड़ गये थे. इन संस्थानों को मजबूत बनाने के लिए पंचायती राज मंत्रलय, भारत सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत संसाधन उपलब्ध कराया जा रहा है. राजस्थान व केरल जैसे राज्यों की अच्छी स्थिति है. झारखंड की सामाजिक व भौगोलिक स्थिति पड़ोसी राज्य ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश से मिलती है. इन तीनों राज्य में भी आदिवासियों की बहुलता है. पेसा कानून वहां भी लागू है. हमारे लिए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के विकास मॉडल को अपनाना ठीक है.
झारखंड में पंचायत राज निकायों में 55 प्रतिशत भागीदारी महिलाओं की है. पर उस अनुपात में निर्णय प्रक्रिया में उनकी हिस्सेदारी नहीं है. देखने में आता है कि सार्वजनिक रूप से उनके पति ही सारे मामलों को देखते है. ऐसा क्यों?
यह बड़ा ही शुभ संकेत है कि राज्य के पंचायती निकाय में महिलाओं की हिस्सेदारी 55 प्रतिशत है. शुरू में इन महिला प्रतिनिधियों के साथ उनके पति आधिकारिक कार्यक्रमों में भाग लेते थे, परंतु वर्तमान में किसी सरकारी कार्यक्रम में उनके पति को न तो मान्यता है और न ही उन्हें शामिल किया जाता है. उदाहरण के लिए एटीआइ या सर्ड में प्रशिक्षण कार्यक्रम हो या जिला परिषद और पंचायत समिति की बैठक हो, प्रशिक्षण देनेवाली संस्थाओं के द्वारा भरपूर प्रयास किया जा रहा है कि इन महिला जन प्रतिनिधियों का क्षमता निर्माण इस प्रकार से किया जाये कि वे अपने स्वविवेक और अनुभव से अपने कार्यो को संपादित कर सकें. एक तरह से हम उन महिला प्रतिनिधियों का पूरी सशक्तीकरण करने का प्रयास कर रहे हैं. उन्हें बेहतर ढंग से प्रशिक्षण दिया जाता है.
ग्रामसभा की सार्थकता को लेकर सवाल उठते हैं. ऐसी शिकायतें आती हैं कि बिना ग्राम सभा किये फरजी हस्ताक्षर करा कर योजनाएं पारित कर दी जाती हैं. इससे कैसे निबटा जा सकता है?
रांची जिले में प्रत्येक 26 तारीख को ग्रामसभा की बैठक होती है. सर्ड द्वारा ग्राम सभा सशक्तीकरण के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों को ग्रामसभा के अधिकार, कर्तव्य और दायित्वों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे ग्रामसभा को व्यवस्थित रूप से चला सकें. ग्राम सभा की बैठक को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए सर्ड और पीटीआइ के संकाय सदस्यों को बीच-बीच में ग्रामसभा की बैठक में भेजा जाता है. सर्ड ने ग्राम सभा को लेकर एक लघु फिल्म भी बनायी है, जिसमें ग्रामसभा के संचालन के संबंध में जानकारी दी गयी है. हमलोग फिल्म को प्रखंड स्तर तक पहुंचायेंगे.
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से संबंधित प्रशिक्षण की भी जिम्मेवारी आपके संस्थान पर है. झारखंड में इसके लिए क्या प्रयास किये जा रहे हैं? यहां विभिन्न प्रकार के वनोत्पाद व अन्य ऐसी चीजें हैं, जिसका लोगों को लाभ नहीं मिल पाता है. क्या उपाय किये जा सकते हैं?
वैसे तो हम ग्रामीण आजीविका से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वयं एवं नेशनल इंच्टीच्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट (एनआइआरडी) हैदराबाद के सहयोग से संपादित करते हैं. विशेष रूप से आजीविका कार्यक्रम के अंतर्गत झारखंड राज्य आजीविका मिशन द्वारा हमारे प्रांगण में ये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. सर्ड का प्रयास है कि हम अपने यहां एक अलग से ग्रामीण आजीविका केंद्र स्थापित करें.
झारखंड के जंगलों में मिलनेवाले वनोत्पाद के संबंध में राज्य को अपनी एक नीति निर्धारित करनी होगी. जिस प्रकार छत्तीसगढ़ ने राज्य को औषधीय पौधे और वनोत्पाद के संबंध में अपने राज्य की एक नीति निर्धारित की एवं उसके अनुरूप वैल्यू एडीशन के माध्यम से वनोत्पादित चीजों का निर्माण एवं विपणन की पूरी व्यवस्था की. इससे वहां जंगल में रहनेवालो लोगों की आर्थिक स्थिति में भी बदलाव आया है.
झारखंड के गांवों में भी अन्य उत्तर भारतीय राज्यों की तरह बेरोजगारी बड़ी समस्या है. खेत हैं, संसाधन हैं, फिर भी लोगों के पास काम नहीं. इस तरह की समस्याओं से निबटने के लिए क्या किया जा सकता है?
हम ग्रामीणों को सर्ड में बुलाकर बेहतर कृषि प्रबंधन, बेहतर जल प्रबंधन की जानकारी देकर उन्हें ज्ञान से समृद्ध करते हैं, ताकि उनके पास जो जमीन, जंगल और जल संसाधन उपलब्ध हैं, उनका वे अधिक से अधिक समेकित उपयोग कर सकें. विशेष रूप से जलछाजन कार्यक्रम के माध्यम से बेहतर जल संरक्षण, मृदा संरक्षण एवं कृषि वानिकी की जानकारी हम उन्हें देते हैं.
स्वयं सहायता समूह ग्रामीण बेरोजगारी को दूर करने का एक कारगर माध्यम माना जाता है. कई राज्य इस दिशा में बेहतर कर रहे हैं. झारखंड में ग्रामीण आजीविका के लिए तय लक्ष्य का 16 प्रतिशत ही कर्ज उपलब्ध कराया जा सका. कई दूसरे राज्यों में यह 60-65 प्रतिशत तक है. ऐसे में हम चुनौतियों से कैसे पार पायेंगे?
झारखंड में जो स्वयं सहायता समूह हैं, उनका नेटवर्किग नहीं तैयार हो पाया है. प्रत्येक विभाग अपने कार्यो से संबंधित स्वयं सहायता समूह बना रहे हैं. उनका फेडरेशन अभी तक मजबूत नहीं बन पाया है, जिसके कारण बैंकों के साथ जो तालमेल आवश्यक होता है, वह कमजोर पड़ गया है. आवश्यकता है कि इन स्वयं सहायता समूहों को अच्छे तरीके से संगठित किया जाये एवं राष्ट्रीयकृत बैंक नाबार्ड इत्यादि के साथ माइक्रो फाइनांस की दिशा में मिलकर कार्य किया जाये.
गांवों के विकास में भारत निर्माण सेवक कैसे काम करते हैं? उनकी क्या भूमिका है?
भारत निर्माण सेवक ग्रामीणों के लिए जो सरकारी कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, उसके लिए सेतु का काम करते हैं. सरकारी अधिकारी एवं लाभुक के बीच में जो खाई है, उसे वे पाटने का प्रयास करते हैं; ताकि सरकारी विकास योजनाओं का लाभ उन तक पहुंच पाये. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संदेश है कि भारत निर्माण सेवक ग्रामीण भारत के परिवर्तन के पुरोधा हैं. मैं आश्वश्त हूं कि यह पहल ग्रामीण भारत में क्षमता निर्माण और कार्यक्रम संबंधी सूचना के प्रचार-प्रसार में सहायक सिद्ध होगी. वे सरकारी कार्यक्रमों के सामाजिक अंकेक्षण में सहायक होंगे एवं साथ ही साथ लोक शिकायतों का भी निबटारा करने में मदद करेंगे.
विकास कार्यक्रमों को जमीनी स्तर पर पहुंचाने में किन क्षेत्रों में एनजीओ बेहतर काम कर रहे हैं?
10 प्रतिशत गैर सरकारी संस्थाएं ही वास्तविक तौर पर धरातल पर विकास कार्य में अपना सहयोग दे रही हैं. उदाहरण के लिए केजीवीके, रामकृष्ण मिशन, प्रदान, विकास भारती जैसी संस्थाएं बेहतर राज्य बनाने में अपना सहयोग कर रही हैं. पंचायती राज विभाग में प्रथम चरण में लगभग 45 हजार पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधियों के क्षमता निर्माण का कार्य राज्य के विभिन्न जिलों में स्थित इन्हीं गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से कराया गया.
प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आप गांवों के विकास में किन बाधाओं को देखते हैं और इनका समाधान क्या है?
गांवों के विकास में संवादहीनता सबसे बड़ी बाधा है. सरकारी योजनाओं की जानकारी आम आदमी तक नहीं पहुंचती है. इन योजनाओं का लाभ वे कैसे प्राप्त कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें कोई मदद करनेवाला नहीं है. इसी गैप को भारत निर्माण सेवक भरेंगे. सरकार को योजनाओं पर खर्च करने के साथ-साथ इन्फार्मेशन, एजुकेशन, कम्युनिकेशन (आइइसी) कार्यक्रम में और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.
-Published in Panchayatnama, 27 July 2012

Tuesday 24 July 2012

गांधीजी का हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज, गांधीजी द्वारा रचित एक पुस्तक का नाम है। मूल रचना सन १९०९ में गुजराती में थी। यह लगभग तीस हजार शब्दों की लघु पुस्तिका है जिसे गान्धीजी ने अपनी इंग्लैण्ड से दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के समय पानी के जहाज में लिखी। यह इण्डियन ओपिनिअन में सबसे पहले प्रकाशित हुई जिसे भारत में अंग्रेजों ने यह कहते हुए प्रतिबन्धित कर दिया कि इसमें राजद्रोह-घोषित सामग्री है। इस पर गांधीजी ने इसका अंग्रेजी अनुवाद भी निकाला ताकि बताया जा सके कि इसकी सामग्री राजद्रोहात्मक नहीं है। अन्ततः २१ दिसम्बर सन १९३८ को इससे प्रतिबन्ध हटा लिया गया।

वास्तव में, हिन्द स्वराज में महात्मा गांधी ने जो भी कहा है वह अंग्रेजो के प्रति द्वेष होने के कारण नहीं, बल्कि उनकी सभ्यता के प्रतिवाद में कहा है। गांधीजी का स्वराज दरअसल एक वैकल्पिक सभ्यता का शास्त्र या ब्लू प्रिंट है वह राज्य की सत्ता प्राप्त करने का कोई राजनैतिक एजेंडा या मेनिफेस्टो नहीं है।
इस पुस्तिका में बीस अध्याय हैं तथा दो संसूचियाँ (appendices) हैं।
1. कांग्रेस और उसके कर्ता-धर्ता
2. बंग-भंग
3. अशांति और असन्तोष
4. स्वराज क्या है ?
5. इंग्लैंडकी हालत
6. सम्यताका दर्शन
7. हिन्दुस्तान कैसे गया ?
8. हिन्दुस्तानकी दशा-१
9. हिन्दुस्तानकी दशा-२
10. हिन्दुस्तानकी दशा-३
11. हिन्दुस्तानकी दशा-४
12. हिन्दुस्तानकी दशा-५
13. सच्ची सम्यता कौनसी ?
14. हिन्दुस्तान कैसे आज़ाद हो ?
15. इटली और हिन्दुस्तान
16. गोला-बारूद
17. सत्याग्रह − आत्मबल
18. शिक्षा
19. मशीनें
20. छुटकारा
परिशिष्ट-१, परिशिष्ट-२ 

हिन्द स्वराज का सार
निष्कर्ष के रूप में गांधीजी पाठकों को बतलाते हैं कि -
(1) आपके मन का राज्य स्वराज है।
(2) आपकी कुंजी सत्याग्रह, आत्मबल या करूणा बल है।
(3) उस बल को आजमाने के लिए स्वदेशी को पूरी तरह अपनाने की जरूरत है।
(4) हम जो करना चाहते हैं वह अंग्रेजों को सजा देने के लिए नहीं करें, बल्कि इसलिए करें कि ऐसा करना हमारार् कत्ताव्य है। मतलब यह कि अगर अंग्रेज नमक-कर रद्द कर दें, लिया हुआ धान वापस कर दें, सब हिन्दुस्तानियों को बड़े-बड़े ओहदे दे दें और अंग्रेजी लश्कर हटा लें, तब भी हम उनकी मिलों का कपड़ा नहीं पहनेंगे, उनकी अंग्रेजी भाषा काम में नहीं लायेंगे और उनकी हुनर-कला का उपयोग नहीं करेंगे। हमें यह समझना चाहिए कि हम वह सब दरअसल इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि वह सब नहीं करने योग्य है।

पंचायती राज : संवैधानिक प्रावधान



भारतीय संविधान के अनिच्छेद ४० में राज्यं को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया हैं । १९९३ मैं संविधान में ७३वां संविधान संशोधन अधिनियम, १९९२ करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गयी हैं ।
  • बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें (1957)-
  • अशोक मेहता समिति की सिफारिशें (1977)-
  • डा. पी.वी.के. राव समिति (1985) -
==पंचायती राज पर एक नजर 23 अप्रैल, 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संबैधानिक दर्जा हासिल कराया गया और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था।

73वें संशोधन अधिनियम, 1993 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत)
ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना
हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव
अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण
महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण
पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन
राज्य चुनाव आयोग का गठन
73वां संशोधन अधिनियम पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अधिकार प्रदान करता है। ये शक्तियां और अधिकार इस प्रकार हो सकते हैं:
संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबध्द 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और उनका निष्पादन करना
कर, डयूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार
राज्यों द्वारा एकत्र करों, डयूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण

ग्राम सभा

ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के केंद्र में होती है। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे:-
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा को शक्तियां प्रदान करें।
गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में अनिवार्य प्रावधान शामिल करना।
पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना जो विशेषकर ग्राम सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो।
ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें।
ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएं बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें।
ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना।
ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएं तैयार करना।
प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना।
73वां संविधान संशोधन अधिनियम ग्राम स्तर पर स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में ऐसी सशक्त पंचायतों की परिकल्पना करता है जो निम्न कार्य करने में सक्षम हो:
ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना।
ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, समुदाय भाईचारा, विशेषकर जेंडर और जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में सामाजिक न्याय, झगड़ों का निबटारा, बच्चों का विशेषकर बालिकाओं का कल्याण जैसे मुद्दे होंगे।
73वें संविधान संशोधन में जमीनी स्तर पर जन संसद के रूप में ऐसी सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है जिसके प्रति ग्राम पंचायत जवाबदेह हो।