Monday 27 August 2012

राजीव गांधी पंचायत सषक्तिकरण अभियान

दो दिवसीय राज्यस्तरीय कंसल्टेटिव कार्यषाला

दिनांक 22-23 अगस्त, 2012 को राजीव गांधी पंचायत सषक्तिकरण अभियान विषय पर दो-दिवसीय कार्यषाला का आयोजन किया गया। कार्यषाला में सरकार के विभागीय प्रतिनिधि के अतिरिक्त गैर-सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकत्र्ता, प्रषिक्षण संस्थानों के संकाय सदस्य एवं त्रिस्तरीय पंचायती राज के जनप्रतिनिधि सम्मिलित हुए। पंचायत राज विभाग में यूनिसेफ के पंचायत विशेषज्ञ ओमप्रकाश ने कार्यशाला के प्रारंभ में राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान के संबंध में पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से विस्तृत जानकारी दी। प्रतिभागियों के स्वागत,  परिचय एवं दीप प्रज्जवलित करने के उपरांत श्रीमती शुभा कुमार के द्वारा विषय के महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाष डालते हुए श्री राजीव अरूण एक्का, सचिव, पंचायती राज विभाग को विषय के संबंध में अपने अनुभव एवं विचार प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित किया।
    श्री राजीव अरूण एक्का, सचिव, पंचायती राज के द्वारा नई पंचायती राज व्यवस्था के बारे में यह अनुभव व्यक्त किया कि पंचायत की व्यवस्था हमारे देष में वर्षों से चली आ रही है। विषेषकर झारखण्ड राज्य में बसे हुए जनजातीय समुदाय में ग्रामीण शासन की अपनी अलग परम्परागत व्यवस्था वर्षों से चली आ रही है। श्री एक्का ने यह कहा कि पंचायत को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद अब ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद्, सरकारी प्रषासन के एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गये हैं। श्री एक्का ने यह भी कहा कि विभिन्न पदों पर सरकार ने काम करने के बाद यह महसूस किया है कि नई पंचायती राज व्यवस्था में सरकार के द्वारा जन-प्रतिनिधियों को यानि पंचायत के तीनों स्तरों को कार्य सम्पादन की काफी बड़ी जिम्मेवारी सौंपी गई है। गाँव में गरीबी दूर करना, रोजगार के अवसर तैयार करना, गाँव में चल रहे विकास कार्यक्रम की देख-रेख करना, गाँव में सरकार के द्वारा मुहैया की गई षिक्षा, स्वास्थ्य एवं आंगनबाड़ी जैसी व्यवस्था से मिलनेवाले लाभ पर निगरानी रखना - अब पंचायत की जिम्मेवारी हो गई है।
इसी क्रम में श्री एक्का ने यह कहा कि सरकार के द्वारा जो कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं प्रायः सभी ग्रामीण क्षेत्र के विकास एवं कल्याण से संबंधित है लेकिन वर्तमान स्थिति में यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि कार्यक्रमों की जानकारी गाँव के लोगों को नहीं के बराबर है। इस परिस्थिति में पंचायत का सबसे बड़ा दायित्व यह बनता है कि सरकार के द्वारा जो भी कार्यक्रम ग्रामीणों के विकास या लाभ के लिए चलाई जा रही है उसमें ग्रामीणों की भागीदारी सुनिष्चित हो तथा गाँव के लोग मिल-जुल कर उसका लाभ उठावें एवं उसकी निगरानी रखें। हाँ यह बात जरूर है कि पंचायती राज व्यवस्था झारखण्ड राज्य में काफी विलम्ब से प्रारम्भ हुई है, दूसरे राज्यों में 10-15 वर्ष पूर्व में ही नई पंचायती राज व्यवस्था लागू कर दी गई है। परिणामस्वरूप झारखण्ड राज्य अभी भी प्रयोग के स्टेज से गुजर रहा है। चुनाव के बाद काफी बड़ी संख्या में जो प्रतिनिधि चुन कर आये हैं उन्हें अपने अधिकार, कत्र्तव्य एवं सरकार से मिलनेवाले लाभ की जानकारी बहुत ही कम है। अतः पंचायत प्रतिनिधियों का सबसे पहला एवं महत्त्वपूर्ण काम यह है कि आमलोगों तक पंचायत के विभिन्न नियम-उपनियम, पंचायत के अधिकार एवं कत्र्तव्य, पंचायत को क्या-क्या काम करना है, क्या-क्या काम देखना है वगैरह की जानकारी दी जाए। ग्रामसभा को मजबूत बनाने के लिए दो महत्त्वपूर्ण बात है - पहली यह कि लोगों को पूर्ण रूप से जागरूक किया जाय और दूसरा कि ग्रामीणों को ग्रामसभा या गाँव की गतिविधि में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाय, मानसिक रूप से तैयार किया जाय। बिना जानकारी या समझ के अभाव में गाँव के लोग इस व्यवस्था से मिलनेवाले लाभ को नहीं प्राप्त कर सकेंगे। अतः नई पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से मिलनेवाले लाभ को ग्रामीणों तक पहुँचाने के लिए आमसभा समुदाय के सभी लोगों को जानकारी से सक्षम एवं सषक्त बनाना होगा।
विषय-वस्तु पर चर्चा करते हुए श्री गणेष प्रसाद, निदेषक, पंचायती राज ने यह कहा कि पंचायतों को 73वीं पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत जो अधिकार, कत्र्तव्य एवं दायित्व सौंपे गये हैं उससे यह स्पष्ट होता है कि पंचायत के तीनों स्तर की इकाईयाँ अपने आप में सषक्त है। इन्हें मजबूत करने के लिए एक रणनीति तैयार करनी होगी और उन चुने हुए जनप्रतिनिधियों को जगाना होगा कि आपके पास अधिकार है उसका आप सही ढंग से पालन करें। चुनाव के आंकड़े से यह स्पष्ट है कि झारखण्ड राज्य में चुने हुए जनप्रतिनिधियों में से लगभग 60 प्रतिषत की संख्या महिलाओं की है। ऐसी परिस्थिति में महिलाओं को परम्परागत घर के परिवेष से निकल कर विकास की धारा में जुड़ना होगा और यह तभी संभव हो सकता है जब सभी लोगों को अपने अधिकार की जानकारी प्राप्त हो सके। यह बात जरूरी है कि पंचायती राज व्यवस्था को मजबूती प्रदान के लिए कुछ खास ध्यान देने की जरूरत है। जैसे:-
ऽ    जनप्रतिनिधियों एवं आम ग्रामीणों को नई पंचायती राज व्यवस्था के संबंध में जागरूक करना एवं जानकार बनाना।
ऽ    इस व्यवस्था को मजबूती से चलाने के लिए सही ढंग से संसाधन उपलब्ध कराये जायें। संसाधन में कई प्रकार के संसाधन हैं जैसे वित्त की व्यवस्था, कर्मियों की व्यवस्था एवं आधारभूत सुविधा। इस रणनीति के तहत् पंचायत के तीनों स्तर की इकाई सही ढंग से काम करे, अपने अधिकार, कत्र्तव्य, कार्य संपादन में पारदर्षिता बनाये रखे तो पंचायत धीरे-धीरे अपने आप में सषक्त हो जायेगा और अपने विकास की बात को धरातल पर उतारने में सफल हो सकेगा।
अतिथियों के सम्बोधन के बाद पूर्वाह्न सत्र की चर्चा एक अल्प अवधि के अनुभव आदान-प्रदान के बाद समाप्त की गई। तत्पष्चात् श्री आर. पी. सिंह, निदेषक, राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के द्वारा राजीव गाँधी सषक्तीकरण अभियान विषय पर संक्षिप्त परिचय देते हुए यह स्पष्ट किया कि यह अभियान अभी प्रारम्भ नहीं हुआ है। सरकार की स्वीकृति के बाद इस अभियान को 2013 में लागू किया जायेगा लेकिन इसके पूर्व इस अभियान को किस प्रकार अच्छी रणनीति के साथ तैयार की जाय इस संबंध में विभिन्न राज्यों के द्वारा कार्यषाला आयोजित किया जा रहा है और इसी क्रम में झारखण्ड राज्य के लिए राज्य ग्रामीण विकास संस्थान में इस पर दो दिन की चर्चा आयोजित की गई है। श्री सिंह ने यह बताया कि इस अभियान का मुख्य उद्देष्य यह है कि पंचायती राज व्यवस्था को चलाने में किस-किस बिन्दु पर कमी महसूस की जा रही है और उस कमी को किस तरह दूर करते हुए पंचायत के कार्य-व्यव्स्था को मजबूत किया जा सकता है इस पर एक सोची समझी रूप-रेखा एवं रणनीति तैयार की जाय।
चर्चा के क्रम में श्री सिंह ने यह बतलाया कि झारखण्ड राज्य में प्रत्येक विभागों के द्वारा पंचायतों को कार्य एवं दायित्व हस्तांतरित करने की कार्रवाई चल रही है और 73वीं पंचायती राज अधिनियम के प्रावधान के अनुसार तीनों स्तर के पंचायतों को अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्व सौंपे जायेंगे।
केन्द्र सरकार के द्वारा यह नीति तैयार की जा रही है कि पंचायतों को सषक्त करने के लिए उन्हें डिमांड बेस सहयोग किया जायेगा और उन्हें जो सहायता उपलब्ध करायी जायेगी वह परफार्मेन्स बेस होगा। इस क्रम में केन्द्र सरकार के द्वारा कुछ माप-दण्ड निर्धारित किये गये हैं जैसे - राज्य में पंचायतों के तीनों स्तर के चुनाव पूरे किये गये हों, महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण दिया गया हो, राज्य में राज्य वित्तीय आयोग का गठन किया जा चुका हो, इस अभियान के अन्तर्गत प्रत्येक पंचायत को पांच वर्षों की एक योजना तैयार करनी होगी और उस योजना में जो क्रिटिकल गैप्स हैं उसका किस तरह समाधान किया जा सकता है, पर आधारित मांग प्रस्तुत करना होगा। जिस प्रकार की योजनाऐं बनेगी उसकी उपादेयता एवं व्यवहारिकता को भी ध्यान में रखा जायेगा। पहले दो वर्ष की योजना एक-एक वर्ष के लिए प्रत्येक पंचायतों को अलग से तैयार करना है और स्थानीय स्थितियों के विष्लेषण को आधार पर माग सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जायेगी।
श्री सिंह ने कहा कि सारे राज्य की पंचायतों की योजना एक समान नहीं होगी क्योंकि प्रत्येक पंचायत की भौगोलिक स्थिति, सामाजिक आर्थिक परिस्थिति अलग-अलग हैं। उस क्षेत्र में रहनेवाले लोगों की आवष्यकता क्या है उनके स्थानीय रिर्सोस क्या-क्या उपलब्ध हैं इन बातों को ध्यान रखते हुए योजनाओं की स्वीकृति दी जायेगी। निदेषक के वकत्व्य के उपरांत सत्र संचालक के द्वारा सम्मिलित प्रतिभागियों को पंाच ग्रुप में विभाजित किया और सभी समूह के लिए अलग-अलग विषय चर्चा के लिए दिये गये। यह अनुरोध किया गया कि सभी समूह अपने सदस्यों के साथ मिलकर अपना निर्णय सबकी सहमति से तैयार कर प्रस्तुत करेंगे।
समूह - 1: प्रषासनिक एवं तकनीकी सहायता
1.    कोष (थ्नदक)
2.    प्रषासकीय व्यय
3.    एक पूर्णरूपेण व्यवस्थित भवन (पंचायत सचिवालय): शौचालय (महिला एवं पुरूष), पीने का पानी, बिजली, जेनरेटर, सोलर सिस्टम, पंखा, फर्नीचर - कुर्सी, मेज, अलमीरा, कम्प्यूटर इन्टरनेट की सुविधा, फैक्स मषीन, टेलिफोन इत्यादि।
4.    प्रषिक्षित मानव संसाधन
    क)    तकनीकी विषेषज्ञ (कनीय अभियंता)
    ख)    कम्प्यूटर आॅपरेटर / डेटा इन्ट्री आॅपरेटर
    ग)    पंचायत सहायक
    घ)    एकाउण्टेंट-सह-कैरियर
    ड़)    समुदाय के प्रषिक्षित व्यक्तियों की सेवायें
    च)    सुरक्षाकर्मी।
5.    पंचायत स्तरीय कर्मचारियों के आवासीय सुविधा विषेष रूप से पंचायत सेवक, जनसेवक, रोजगार सेवक के लिए।
6.    कार्यालय प्रबंधन एवं निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के कार्यों के सफल निष्पादन हेतु समय-समय पर प्रषिक्षण व्यवस्था।
7.    ग्राम पंचायत स्तरीय स्थायी समिति के सदस्यों का प्रषिक्षण।
8.    राज्य स्तर, जिला स्तर एवं प्रखण्ड स्तर पर भेजी जानेवाली सरकारी सूचनाओं की जानकारी स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा उपलब्ध कराना।
समूह सदस्य: 1. अनिता गाड़ी, 2. सिद्धनाथ राय, 3. राजीव रंजन तोपनो, 4. कमलेष्वर साहु, 5. विष्वासी हेम्ब्रम एवं 6. गौतम सागर


समूह - 2: ग्राम पंचायत भवन निर्माण
1.    भवन निर्माण - शेष बचे हुए पंचायत भवनों का निर्माण डिजाईन में परिवर्तन करते हुए वित्तीय वर्ष 2012-13 तक पूरा करना।
2.    पंचायत भवन सर्वसुलभ एवं आबादीवाले स्थान पर हो, सर्वसुलभ स्थान या गैर मजरूआ जमीन नहीं मिलने की स्थिति में दान में प्राप्त जमीन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
3.    पंचायत भवन का निर्माण ग्राम पंचायत / ग्रामसभा की स्वीकृति पर हो।
4.    पंचायत भवन में शौचालय-महिला-पुरूष, पानी, बिजली, उपस्कर, कम्प्यूटर, फोटो काॅपी, फैक्स, ई-मेल आदि की सुविधा।
5.    पंचायत भवन की चारदीवारी, परिसर के अंतर्गत सामाजिक वानिकी, वृक्षारोपन एवं फूल-फूलवारी की व्यवस्था।
6.    पंचायत भवन में कर्मी  एवं रात्रि प्रहरी (ग्रामरक्षा दल), माली की प्रतिनियुक्ति का अधिकार ग्राम पंचायत को मिले।
7.    पंचायत भवन में पंचायत के त्रि-स्तरीय चयनित पंचायत प्रतिनिधियों, स्थायी समिति के सदस्यों के लिए बैठकने की व्यवस्था एवं सभाकक्षा।
8.    पंचायत भवन के रख-रखाव के लिए वित्तीय व्यवस्था अनिवार्य रूप से हो।
समूह सदस्य: 1. एलिस प्रभा तिर्की, 2. षिवषंकर उराँव, 3. सुजीत कुमार सिन्हा, 4. अनिल भगत, 5. दिलीप कुमार चैधरी एवं 6. कपिला


समूह - 3: चयनित प्रतिनिधियों एवं कर्मियों का क्षमता निर्माण तथा प्रषिक्षण
1.    क.    ग्रामसभा सदस्य, ग्राम प्रधान, ग्राम सभा समिति के सदस्य।
    ख.    ग्राम पंचायत सदस्य, मुखिया, उपमुखिया, पंचायत स्तरीय समिति सदस्य, अधिकारी/ कर्मचारी।
    ग.    पंचायत समिति सदस्य, प्रमुख, उप-प्रमुख, पंचायत समिति स्तर के समिति सदस्य, अधिकारी/कर्मचारी।
    घ.    जिला परिषद् सदस्य, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जिला परिषद् स्तर समितियों के सदस्य एवं अधिकारी/ कर्मचारी।
2.    प्रषिक्षण के विषय:
क.    कार्य एवं दायित्व।
ख.    कार्यों के निबटाने के तौर-तरीके पर प्रषिक्षण।
    ग.    कार्यालय प्रबंधन, कागजात, पंजी, अभिलेख, कैषबुक आदि का संधारण/ रख-रखाव
    घ.    ई-गर्वनेंष के संबंध में।
    ड़.    पी.आर.आई. से संबंधित नियम, उपनियम, विभागीय कार्यक्रम।
च.    अन्य संबंधित विषय।
3.    प्रषिक्षक:
    क.    सामान्य भाषा एवं तरीके से विषय को समझाने की विधि।
    ख.    प्रषिक्षक एवं प्रषिक्षण माॅड्यूल विकसित करने की क्षमता।
    ग.    प्रषिक्षण प्रबंधन की क्षमता।
    घ.    विषय की पूरी जानकारी एवं समझ के साथ-साथ अच्छा संवाद।
4.    प्रषिक्षण स्थल - प्रषिक्षणार्थी के बैठने एवं प्रषिक्षण आयोजन के लिए सभी सुविधा एवं व्यवस्था।
6.    व्यय - प्रषिक्षण पर होनेवाले व्यय समयानुसार उपलब्ध हों।
समूह सदस्य: 1. दीपक डे, 2. दीपक कुमार पाठक, 3. पी. रंजन, 4. तेजी किसपोट्टा, 5. बी. के चैरसिया, एवं 6. सोनी चैरसिया


समूह - 4: राज्य, जिला व प्रखण्ड स्तर पर प्रषिक्षण हेतु संस्थागत संरचना
1.    राज्य स्तरीय कार्यरत्त दो प्रषिक्षण संस्थान - सी.टी.आई., ब्राम्बे, राँची एवं पी.टी.आई. जसीडीह, देवघर को स्वायत्त (आॅटोनोमस) बनाना एवं प्रषिक्षण कार्य के संचालन की स्वतंत्र जिम्मेवारी।
2.    राज्य के सभी जिलों में प्रषिक्षण संस्थान - जिला प्रषिक्षण केन्द्र की स्थापना एवं उसकी पर्यवेक्षण की जिम्मेवारी राज्य स्तरीय प्रषिक्षण संस्थान को सौंपना।
3.    प्रखण्ड स्तर पर उपलब्ध संरचना जैसे सामुदायिक भवन या अन्य कोई भवन में प्रषिक्षण कार्यक्रम के आयोजन की पूर्ण व्यवस्था।
4.    प्रषिक्षण आयोजन के लिए प्रषिक्षित प्रषिक्षक, अन्य सहयोगी कर्मी की व्यवस्था।
5.    प्रषिक्षण आयोजन पर होनेवाले व्यय की व्यवस्था - सही समय पर उपलब्धता।
6.    एक प्रषिक्षण प्रकोष्ठ की इकाई का गठन - सुविधानुसार।

समूह सदस्य - 1. राजेष कुमार मिश्रा, 2. सुरेष शक्ति, 3. कमलेष प्र. श्रीवास्तव, 4. रचना कुमारी,         5. डी. मुण्डा एवं 6. किरण गुडि़या
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समूह - 5: पंचायत का ई-क्षमता निर्माण
1.    पंचायत में ई-पंचायत क्षमता का आकलन, आवष्यकता, उपयोगिता एवं प्रचार-प्रसार की सुविधा।
2.    पंचायत में इन्टरनेट सुविधा, झारनेट एवं एन.आई.एस. से लिकेंज, ब्रैाड-बैण्ड की सुविधा उपलब्ध कराना।
3.    पंचायत स्तर पर कम्प्यूटर उपयोगिता सेवा समिति का गठन, जिसमें चुने हुए जन प्रतिनिधि के जानकार लोगों के प्रषिक्षण एवं सेवा की व्यवस्था।
4.    पंचायत से संबंधित सारी जानकारी अद्यतन के साथ, जैसे जनसंख्या, षिक्षा, स्वास्थ्य, जमीन, पी.डी.एस., आई.सी.डी.एस. एवं अन्य जानकारी उपलब्ध कराने की व्यवस्था।
5.    सरकारी विभागों द्वारा निर्गत योजना, नीति, दिषा-निर्देष, वगैरह की जानकारी उपलब्ध कराना।
6.    युवा वर्ग, एस.एच.जी., पुरूष/महिला एवं वृद्ध वर्ग के लिए आवष्यकतानुसार प्रषिक्षण की व्यवस्था।
7.    जन सुविधाओं - मृत्यु, जन्म प्रमाण पत्र, जाति, आय, आवासीय प्रमाण पत्र वगैरह की व्यवस्था।
8.    ग्रामीण स्तर की समस्याओं एवं योजनाओं को सीधे विभागों से जोड़ना।
9.    ई-पंचायत से जागरूकता एवं जानकारी की प्राप्ति कराते हुए काम को पारदर्षी बनाना।
10.    भ्रमणकारी अध्ययन की व्यवस्था।

समूह सदस्य - 1. श्री बादल, मुखिया, 2. श्री सुदर्षन, सदस्य, 3. श्री अषोक, सी.टी.आई., 4. श्री बसंत, विकास भारती, 5. श्री ओम प्रकाष, यूनिसेफ एवं 6. श्रीमति ऋचा, यूनिसेफ
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पाँच समूह के विचार-विमर्ष में उल्लिखित बिन्दुओं पर चर्चा में श्री वाई. बी. प्रसाद, अवकाष प्राप्त भा.प्र.से. को सम्मिलित किया गया। चर्चा के दौरान में कुछ नई बिन्दुओं को आम सहमति से जोड़ा गया। यथा:- पंचायत के सभी स्तरों के जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ आम सभा के सदस्यों को नई पंचायती राज व्यवस्था के बारे में जानकार बनाना साथ ही साथ पेसा क्षेत्र के परम्परागत प्रधान के लिए अलग से प्रषिक्षण की व्यवस्था की जाय।
    निदेषक, राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के द्वारा प्रथम दिन के कार्य का समापन करते हुए यह कहा गया कि समूह के द्वारा निर्णित बिन्दुऐं बहुत ही व्यावहारिक एवं महत्त्वपूर्ण हैं। श्री सिंह ने यह भी कहा कि अगर इन बिन्दुओं पर ठोस ढंग से कार्यवाही की जायेगी तो निष्चित रूप से झारखण्ड राज्य में पंचायत के कार्य-कलाप सषक्त होंगे और विकास एवं कल्याणकारी कार्यों के कार्यान्वयन में तेजी आयेगी। श्री सिंह ने परिचर्चा को समाप्त करते हुए सबों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
अन्त में सर्वश्री अजीत कुमार सिंह एवं डाॅ विष्णु राजगढि़या ने अगले दिन कार्यषाला में होने वाली चर्चा के संबंध में सभी लोगों को अवगत कराया।
कार्यषाला के दूसरे दिन के लिए समूह चर्चा के विषय का चयन किया गया एवं सभी समूहों को एक-एक विषय पर अपने विचार तैयार कर प्रस्तुत करने के लिए अनुरोध किया गया।
समूह सदस्य: 1. एलिस प्रभा तिर्की, 2. षिवषंकर उराँव, 3. सुजीत कुमार सिन्हा, 4. अनिल भगत, 5. दिलीप कुमार चैधरी एवं 6. कपिला

कार्यषाला का दूसरा दिन
दिनांक 23.08.2012 को कार्यषाला का कार्य-कलाप 10.00 बजे पूर्वाह्न में प्रारम्भ हुआ एवं सभी समूह अपने-अपने विषय के साथ अलग-अलग स्थानों पर चर्चा में सम्मिलित हो गये। इसके पूर्व निदेषक ने यह बताया कि समूह चर्चा के दौरान अगर किसी प्रकार की कठिनाई महसूस हो तो समूह के फेसिलिलेटर से विमर्ष एवं मार्गदर्षन प्राप्त किया जा सकता है।

समूह - 1
    पंचायतों, विषेषरूप से अनुसूचित क्षेत्र की पंचायतों को अपनी मूलभूत गतिविधियों यथा - ग्रामसभाओं की बैठक करने, योजना बनाने, सामाजिक अंकेक्षण हेतु, अभियान संचालन करने, संघों के निर्माण हेतु राजीव गाँधी पंचायत सषक्तीकरण अभियान के अन्तर्गत आवष्यक संसाधन:-
1.    ग्रामसभा की बैठक हेतु एक शेड, हाॅल तथा बैठक की सूचना के सम्प्रेषण हेतु सूचनाकर्मी की आवष्यकता।
2.    योजना निर्माण - संसाधनों के रिसोर्स मेपिंग हेतु एक तकनीकि विषेषज्ञ की आवष्यकता होगी।
3.    सामाजिक अंकेक्षण - एक तीन सदस्यों की टीम जिसमें एक सदस्य लाभुकों में से दूसरा, क्रियान्वयनकत्र्ताओं में से और एक सदस्य सरकारी प्रतिनिधि हो होना चाहिए।
4.    अभियान - गाड़ी, ध्वनि संयंत्र, विडियो सिस्टम, नुक्कड़ नाटक टीम।
5.    संघ निर्माण - बैठकों का आयोजन एवं यात्राव्यय हेतु राषि।
समूह सदस्य: 1. अनिता गाड़ी, 2. सिद्धनाथ राय, 3. राजीव रंजन तोपनो, 4. कमलेष्वर साहु, 5. विष्वासी हेम्ब्रम एवं 6. गौतम सागर


समूह - 2: स्पेषल सपोर्ट फाॅर ग्रामसभा इन पेसा
1.    अनुसूचित इलाकों के ग्रामसभाओं के गठन में हुई त्रुटियों को दूर करना, सही परम्परागत ग्राम प्रधान को मान्यता देना।
2.    अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं के सभी आठ स्थायी समितियों का गठन सुनिष्चित करना एवं अधिकार दायित्वों की पूरी जानकारी देना।
3.    पंचायती राज व्यवस्था के चयनित सभी जनप्रतिनिधियों - वार्ड सदस्य/ मुखिया/ पंचायत समिति सदस्य/ जिला परिषद् सदस्य एवं आमसभा के ग्राम प्रधान व समिति के सदस्यों को पंचायती राज अधिनियम की जानकारी देना।
4.    ग्रामसभा का सचिव गांव के योग्य एवं सक्षम व्यक्ति का चयन करना।
5.    ग्रामसभा की परिसीमा के तहत् मौजूद गौण खनिज पदार्थ के लीज का अधिकार एवं उससे होनेवाली आय-व्यय जनोपयोगी कार्य में लगाने का अधिकार।
6.    झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम के तहत् ग्रामसभा को प्रदत्त सभी अधिकारों पालन करना।
7.    ग्रामसभा के निर्णयों का पालन सुनिष्चित किया जाय।
8.    ग्रामसभाओं को सषक्त करने का प्रयास करना।
9.    प्रत्येक माह ग्रामसभा बैठक को सुनिष्चित करना।

समूह सदस्य: 1. एलिस प्रभा तिर्की, 2. षिवषंकर उराँव, 3. सुजीत कुमार सिन्हा, 4. अनिल भगत, 5. दिलीप कुमार चैधरी एवं 6. कपिला


समूह - 3: प्रोग्राम मैनेजमेंट
1.    पंचायत के तीनो स्तर एवं ग्रामसभा स्तर पर योजना की तैयारी, अनुश्रवण की क्षमतावृद्धि।
2.    प्रोग्राम मैनेजमेन्ट हेतु सामाजिक अंकेक्षण की व्यवस्था।
3.    प्रोग्राम मैनेजमेन्ट हेतु एक ऐसे इंस्टीच्यूट्षनल मैकेनिज्म का विकास किया जाए जो एकेडमिक एवं टेक्निकल सहयोग के साथ क्षमता निर्माण को भी बढ़ावा दें।
4.    योजना के निर्धारित लक्ष्यों के कार्यान्वयन का वार्षिक आकलन ग्रामसभा से जिला स्तर तक हो।
5.    माॅडल मैनुअल यथा एकाउण्ट मैनुअल, वर्क मैनुअल आदि का निर्माण हो।
6.    एकाउन्टेबिलिटी का निर्धारण एवं ट्रांसपेरेन्सी का पालन हो।
7.    योजना के अन्तर्गत उत्तम कार्य करनेवाले ग्रामसभा एवं त्रिस्तरीय पंचायतों को पुरस्कृत करने की व्यवस्था हो।
8.    योजनाओं के कार्यान्वयन में सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ गैर-सरकारी संस्थाओं को भी सम्मिलित करना।
9.    त्रिस्तरीय पंचायतों को ई-गर्वेनेन्स युक्त तथा उन्हें सूचनादायी बनाना।
10.    योजना के क्रियान्वयन हेतु फण्ड का ससमय एवं निर्बाध प्रबंध करना।
11.    प्रत्येक स्तर के लिए पंचायत प्रतिनिधियों / कर्मचारी/ पदाधिकारी के प्रषिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था हो।
12.    सूचना, षिक्षा एवं संचार के गतिविधि को बढ़ावा देना।
13.    दूसरे राज्य खासकर पड़ोसी राज्य प्रोग्राम मैनेजमेंट हेतु क्या कर रहे हैं, इसकी भी जानकारी दी जा सकती है।

समूह सदस्य: 1. दीपक डे, 2. दीपक कुमार पाठक, 3. पी. रंजन, 4. तेजी किसपोट्टा, 5. बी. के चैरसिया, एवं 6. सोनी चैरसिया

समूह - 4: सूचना, षिक्षा एवं संचार
1.    कानूनी प्रावधान, व्यवस्था और नियमावली: जानकारी, कौषल विकास, प्रेरणा।
2.    कार्यक्रम / योजनाऐं।
3.    कार्यनीति।
ग्रामसभा एवं चयनित प्रतिनिधियों के स्तर पर:-
1.    नुक्कड़ नाटक,
2.    स्थानीय भाषा में गीत-संगीत,
3.    चित्रयुक्त पोस्टर एवं पैम्पलेट्स, बुकलेट्स,
4.    मेला सह खेलकूद प्रतियोगिता,
5.    दीवार लेखन/ होर्डिंग,
6.    आॅडियो-विजुअल शो,
7.    सरकारी भवनों पर सूचनाओं का प्रदर्षन,
8.    कम्युनिटि रेडियो,
9.    शैक्षणिक परिभ्रमण,
10.    स्थानीय कला (जैसे छऊ नृत्य) के माध्यम से आई.ई.सी.
11.    कठपुतली प्रदर्षन
12.    ग्रामीण बैठक / नुक्कड़ सभा
13.    प्रषिक्षण
14.    आई.ई.सी. सेल।

समूह सदस्य: 1. राजेष कुमार मिश्रा, 2. सुरेष कुमार शक्ति,     3. कमलेष प्र. श्रीवास्तव, 4. डाॅ0 रचना कुमारी, 5. डी. मुण्डा एवं 6. किरण गुडि़या



समूह - 5: राज्य निर्वाचन आयोग का सषक्तिकरण

1.    राज्य निर्वाचन आयोग का स्वतंत्र:
    क.    भवन
    ख.    कोर स्टाॅफ (स्थायी)
    ग.    जिला स्तरीय कार्यालय हो,
    घ.    मानव संसाधन।
2.    काॅमन इलेक्ट्रीकल रोल (वोटर लिस्ट)
3.    वोटर जागरूकता प्रषिक्षण।
4.    वोटर लिस्ट इन्टरनेट पर उपलब्ध हो।
5.    निर्वाचित प्रतिनिधियों का डाटा अद्यतन उपलब्ध हो।
6.    ई.भी.एम. का क्रय सुनिष्चित करना।
7.    निष्चित अवधि पर चुनाव सुनिष्चित कराना।

समूह सदस्य: 1. श्री बादल, मुखिया, 2. श्री सुदर्षन, सदस्य, 3. श्री अषोक, सी.टी.आई., 4. श्री बसंत कुमार ओहदार, विकास भारती, 5. श्री ओम प्रकाष, यूनिसेफ, एवं
6. श्रीमति ऋचा चैधरी, यूनिसेफ।


    समूह चर्चा पर निदेषक, रिर्सोस परसन एवं प्रतिभागियों ने अपने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह स्वीकार किया कि समूह के द्वारा प्रस्तुत किये हुए बिन्दु काफी महत्वपूर्ण हैं और आगे की ‘‘राजीव गांधी पंचायती राज सषक्तिकरण अभियान’’ की योजना एवं रणनीति तैयार करने में ये विचार सहयोग कर सकेंगे। इसी क्रम में श्री राजगडि़या ने बताया कि समूह के द्वारा प्राप्त सुझाव महत्त्वपूर्ण हैं और सभी प्रतिभागी धन्यवाद के पात्र हैं। निदेषक ने यह स्पष्ट किया कि झारखण्ड राज्य में इस प्रकार की कार्यषाला पहली बार आयोजित की गई है, आगे भी इस प्रकार की कार्यषाला आयोजित कर जनप्रतिनिधियों, गैरसरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों एंव विषय विषेषज्ञों के विचार एवं सुझाव समय-समय पर प्राप्त किये जायेंगे।
    समापन सत्र में मुख्य अतिथि श्री मनजीत सिंह, सदस्य, विधानसभा बिहार ने प्रतिभागियों के बीच बिहार के परिप्रेक्ष्य में अपना अनुभव बांटते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान दिलाया। बिहार राज्य के अनुभव के आधार पर उन्होंने अपना अनुभव लोगों के बीच में रखा कि -
ऽ    जन प्रतिनिधियों को नेता के रूप में नहीं बल्कि मार्गदर्षक के रूप में काम करना चाहिए।
ऽ    तीनों स्तर के निर्वाचित - मुखिया, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् को स्वार्थ से ऊपर उठकर योजनाओं का चयन करना चाहिए और उसको सही ढंग से लागू करना चाहिए।
ऽ    सही ढंग से योजनाओं का चयन नहीं करने से असन्तोष बढ़ता है और अनियमितताऐं होती हैं। अतः इस पर रोक लगाने के लिए पारदर्षिता होना जरूरी है।
ऽ    काम को पूरा करने के लिए एक सिस्टम तैयार करने की जरूरत है। स्कीम का चयन और उसका संचालन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इस क्रम में श्री सिंह ने बिहार में चलाये जा रहे इंदिरा आवास योजना एवं नरेगा योजना का उदाहरण प्रस्तुत किया।
ऽ    पंचायत के सभी स्तर के प्रतिनिधियों की भूमिका की समझदारी प्रषिक्षण या गोष्ठी के द्वारा दिया जाना चाहिए ताकि नियम, अधिनियम एवं कानून का सही ढंग से पालन किया जा सके।
ऽ    क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति एवं सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर पंचायत प्रतिनिधि को विकास की योजना चलाकर विकास का एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
ऽ    जन प्रतिनिधि की नजर योजना कार्यान्वयन के हर स्तर पर होनी चाहिए ताकि वह सही ढंग से पूरा हो सके और उसका लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिल सकें।
समापन सत्र में राँची स्थित श्री रामकृष्ण मिषन आश्रम के सचिव श्री शषांकानन्द जी महाराज ने इस कार्यक्रम की सफलता की कामना करते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण बातों की ओर इंगित किया और कहा कि ‘‘गाँव के विकास के लिए ग्रामसभा के प्रत्येक सदस्य को एक प्रहरी के रूप में सावधानी से काम करने की जरूरत है। स्वामी जी ने यह भी कहा कि गांधी जी एवं विवेकानन्द जी का यह चिन्तन था कि गाँव स्वावलम्बी हो, गाँव का वातावरण स्वार्थ रूप से उपर उठे और सभी मिल-जुल कर अपने विकास की बात करें। इसके लिए यह जरूरी है कि जनप्रतिनिधि नई पंचायती राज व्यवस्था के बारे में पूरी जानकारी रखें, अपनी ज्ञान एवं कौषल में वृद्धि करें साथ ही साथ गाँव की दिक्कतों को, गाँव की कमियों को, गाँव की समस्याओं को सरकार के समक्ष निस्वार्थ भाव से प्रस्तुत करें। इस क्रम में स्वामी जी ने प्राचीन भारत की कुछ घटनाओं का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए यह कहा कि चूंकि गाँव का सामाजिक-आर्थिक गतिविधि कृषि पर निर्भर है। अतः कृषि पर काफी जोर देने के साथ-साथ पषुपालन एवं व्यापार का काम यानि लेन-देन का काम गाँव स्तर पर सच्चाई के साथ किया जाना चाहिए। प्राचीन भारत में मनु दर्षन का उल्लेख करते हुए स्वामी जी ने कहा कि गाँव का पाँच व्यक्ति मिलकर गाँव के विकास का काम ईमानदारी से करते थे और वहीं से पंच-परमेष्वर एवं ग्राम पंचायत का श्रीगणेष हुआ है।
अन्त में सभी प्रतिभागियों के द्वारा राजीव गांधी पंचायत सषक्तिकरण अभियान के लिए प्राथमिकता के आधार पर जो पाँच मुख्य सेक्टर/ गतिविधियों को आम सहमति से चुना वह इस प्रकार है:-
1.    ग्रामसभा को मजबूत करना,
2.    प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों का प्रषिक्षण,
3.    सूचना, संचार एवं प्रसार - सूचना प्रौद्योगिकी
4.    आधारभूत संरचना एवं मानव संसाधन की उपलब्धता
5.    प्रषासनिक एवं तकनीकि सहयोग।
इन पाँचों सुविधाओं की उपलब्धता होने पर पंचायती राज का सही रूप में सषक्तिकरण पूर्णतः संभव है।
अन्त में निदेषक ने सबों को आभार व्यक्त करते हुए इन पंक्तियों को कहा:-
वर्षों से एक ख्वाब को मुठ्ठी में लिये
चलते गये हम, बढ़ते गये हम।
                सागर से मोती लेकर, धरा को अपना मानकर
                चलते गये हम, बढ़ते गये हम।
छू रहे हैं आसमान की बुलंदियाँ आज,
आगे भी छूते रहेंगे हम, बढ़ते रहेंगे हम।